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AAP और कांग्रेस में 'नेता-छीनो' होड़! दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले INDIA ब्लॉक के पार्टनर्स के बीच गजब खेल

INDIA ब्लॉक के दो घटक दलों- आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच एक दूसरे के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करवाने की अनूठी प्रतियोगिता चल रही है. दोनों पार्टियां यूं तो बीजेपी के खिलाफ लड़ने का दम भर रही हैं, लेकिन इस बीच कोशिश यही चल रही है कि कैसे एक-दूसरे को कमज़ोर किया जाए.

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AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे
AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे

दिल्ली विधानसभा चुनाव महज दो महीने बाद हैं, लेकिन इससे पहले दो सहयोगियों के बीच एक अनूठी लड़ाई चल रही है. INDIA ब्लॉक के दो घटक दलों- आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच एक दूसरे के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करवाने की अनूठी प्रतियोगिता चल रही है. दोनों पार्टियां यूं तो बीजेपी के खिलाफ लड़ने का दम भर रही हैं, लेकिन इस बीच कोशिश यही चल रही है कि कैसे एक दूसरे को कमज़ोर किया जाए. मजबूत नेताओं को पार्टी में शामिल करवाना यूं तो राजनीतिक रणनीति का हिस्सा माना जाता है, लेकिन जो कुछ दिल्ली में चल रहा है उससे सवाल ये पैदा हो गया है कि क्या ये पार्टियां वाकई एक-दूसरे को कमज़ोर कर बीजेपी से लड़ाई की तैयारी कर रही हैं?

शुक्रवार को कुछ घंटों के भीतर हुआ कुछ ऐसा खेल!

शुक्रवार को आम आदमी पार्टी दफ्तर में अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के पूर्व विधायक वीर सिंह धींगान को अपनी पार्टी में शामिल करवाया. दरअसल, वीर सिंह धींगान सीमापुरी से विधायक रह चुके हैं. सीमापुरी सुरक्षित सीट है और इसलिए आप ने दावा किया कि एक बड़े दलित नेता के कांग्रेस से आम आदमी पार्टी में आने पर पार्टी को फायदा होगा. 

गौरतलब है कि ये वही सीमापुरी है, जहां से अरविंद केजरीवाल ने झुग्गी बस्तियों में अपने एनजीओ के दिनों में संघर्ष की शुरुआत की. तब के समय शीला दीक्षित मुख्यमंत्री हुआ करती थीं और केजरीवाल ने राशन में करप्शन की बात वहीं से उठाई. लेकिन इधर आम आदमी पार्टी कांग्रेस के नेता को तोड़ रही थी तो वहीं कुछ घंटों बाद कांग्रेस ने भी आम आदमी पार्टी के एक पूर्व विधायक को अपने पाले में लाकर हिसाब बराबर कर लिया. 

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हाजी इशराक आम आदमी पार्टी के टिकट पर 2015 में उत्तर पूर्वी दिल्ली के ही सीलमपुर से चुनाव जीते थे. ऐसे में दलित नेता का हिसाब एक अल्पसंख्यक नेता को अपने पाले में लाकर कांग्रेस ने उसी दिन पूरा किया.

शुक्रवार के खेल की पृष्ठभूमि पहले ही लिखी जा चुकी थी

सीमापुरी और सीलमपुर का खेल पहले ही दोनों पार्टियों की तरफ से शुरू हो चुका था. आम आदमी पार्टी के पूर्व मंत्री और सीमापुरी से मौजूदा विधायक राजेंद्रपाल गौतम ने पिछले दिनों केजरीवाल का साथ छोड़ कांग्रेस का दामन थामा था. अब ये तो तय था कि सीमापुरी से चुनाव में कांग्रेस गौतम पर ही दांव खेलती तो वीर सिंह धींगान के पास बहुत ऑप्शन बचे ही नहीं थे. कुछ यही हाल हाजी इशराक का भी था. 

सीलमपुर से कांग्रेस के पांच बार के विधायक मतीन अहमद जो पिछली दो बार से चुनाव हार रहे हैं ने झाड़ू थाम ली. उनके साथ उनकी पार्षद बहू और बेटे ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया. हाजी इशराक जिन्होंने 2015 में मतीन अहमद को हराया था को लगा कि यही मौका है कि वो कांग्रेस के पाले में चले जाएं और अपनी टिकट पक्की कर लें.

तो क्या मुस्लिम-दलित वोट की है लड़ाई?

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दिल्ली में कांग्रेस अगले विधानसभा चुनावों में अपनी वापसी करना चाहती है. साल 2015 और 2020 में उसका विधानसभा चुनावों में खाता भी नहीं खुल पाया था. कांग्रेस की उम्मीद लगभग आधा दर्जन मुस्लिम बहुल सीटों और एक दर्जन दलित रिजर्व सीट हैं. अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं कि इन सीटों पर अगर कांग्रेस रिवाइव कर गई तो उनकी लगभग 20 सीटें सीधे खतरे में चली जाएंगी और ऐसे में एडवांटेज बीजेपी हो जाएगा. इसलिए बीजेपी से दो-दो हाथ हो उससे पहले आप और कांग्रेस ही आपस में दो-दो हाथ कर लेना चाहते हैं ताकि असली युद्ध में एडवांटेज उनका हो.

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