scorecardresearch
 

क्या चिराग और जीतनराम मांझी ही बिहार में दलित वोटों के सबसे बड़े दावेदार हैं? आंकड़े कुछ और कहते हैं

बिहार में दलित वोटों की दावेदारी में दो केंद्रीय मंत्रियों चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के दल आमने-सामने हैं. क्या चिराग और जीतनराम मांझी ही सूबे में दलित वोटों के सबसे बड़े दावेदार हैं?

Advertisement
X
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और जीतन राम मांझी (Photo: ITG)
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और जीतन राम मांझी (Photo: ITG)

बिहार में विधानसभा चुनाव की घड़ी अब करीब आ रही है. अक्टूबर-नवंबर तक सूबे में विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनावों से पहले राजनीतिक दलों में, गठबंधनों में दलित मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए संकेतों और संदेशों की सियासत की होड़ लगी हुई है. विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने लालू यादव के 78वें जन्मदिन पर दलित बस्तियों में पहुंचकर केक काटे और भोज आयोजित किया, बच्चों के बीच कॉपी, किताब और कलम बांटे.

कांग्रेस ने राजेश राम के रूप में दलित चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. वहीं, सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की दो बड़ी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल (यूनाइटेड) भी दलित पॉलिटिक्स की पिच पर एक्टिव हैं. एनडीए और महागठबंधन के बीच दलित वोटों को लेकर चल रही सियासी रस्साकशी के बीच सत्ताधारी गठबंधन के दो प्रमुख घटक दलों में जुबानी जंग छिड़ गई है.

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्यूलर) के प्रमुख जीतनराम मांझी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपने सहयोगी और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान पर निशाना साधा. इसके बाद चिराग पासवान की पार्टी के नेताओं ने भी मांझी और उनकी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

एनडीए के दो प्रमुख दलित नेताओं की पार्टियों के बीच दलित वोट को लेकर छिड़ी दावेदारी की जंग के बीच सवाल यह भी उठ रहा है कि बिहार में दलित वोटों का बड़ा दावेदार कौन है? चिराग पासवान की अगुवाई वाली एलजेपीआर और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा की दलित वोट पर कितनी पकड़ है?

Advertisement

बिहार चुनाव की विस्तृत कवरेज के लिए यहां क्लिक करें

बिहार विधानसभा की हर सीट का हर पहलू, हर विवरण यहां पढ़ें

बिहार में 19 फीसदी दलित

बिहार की कुल आबादी में दलितों की भागीदारी 19.65 फीसदी है और 243 में से 38 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं. सूबे में अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.68 फीसदी है और इस वर्ग के लिए दो सीटें आरक्षित हैं. दलित और अनुसूचित जनजाति, दोनों को मिला लें तो बिहार में एससी-एसटी वर्ग की कुल आबादी में भागीदारी का आंकड़ा करीब 21 फीसदी पहुंचता है.

और आरक्षित सीटों की संख्या 40. इस वर्ग के वोट बैंक पर चिराग की एलजेपीआर और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के साथ ही पशुपति पारस की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) भी दावेदारी करती है.

दलित वोट पर चिराग-मांझी की पकड़ कितनी?

चिराग और मांझी, दलित वोट पर दावेदारी दोनों करते हैं. कर भी रहे हैं, लेकिन आंकड़े क्या कहते हैं? 2020 के विधानसभा चुनाव की ही बात करें तो चिराग पासवान की पार्टी को 5.8 फीसदी वोट मिले थे और वह केवल एक सीट जीत सकी थी. इसी चुनाव में मांझी की पार्टी को एक फीसदी से भी कम वोट मिले थे, लेकिन पार्टी चार सीटें जीतने में सफल रही थी.

यह भी पढ़ें: 'मांझी और चिराग पीएम के कैबिनेट सहयोगी, मतभेद...', LJPR-HAM में खींचतान पर बोले जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार

Advertisement

आरक्षित सीटों की बात करें तो दलितों के लिए आरक्षित 38 सीटों में से एनडीए को 21 सीटों पर जीत मिली थी. विपक्षी महागठबंधन 17 सीटें जीता था. एससी-एसटी के लिए आरक्षित कुल 40 विधानसभा सीटों के नतीजे देखें तो एनडीए को 23 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी 11 सुरक्षित सीटें जीतने में सफल रही थी.

यह भी पढ़ें: विधानसभा चुनाव से बिहार में राजनीतिक घमासान, दलित वोट बैंक को लेकर चिराग और मांझी के बीच खींचतान शुरू

जेडीयू को आठ, जीतनराम मांझी की पार्टी ने तीन और तब एनडीए में शामिल रही मुकेश सहनी की अगुवाई वाली विकासशील इंसान पार्टी ने एक सीट जीती थी. 2020 के चुनाव नतीजे देखें तो जीतनराम मांझी की पार्टी ने तीन सुरक्षित सीटें जीती थीं और चिराग की पार्टी खाली हाथ रह गई थी.

दलित पिच पर 2015 में पिछड़ गया था एनडीए

बिहार विधानसभा के 2015 चुनाव में एनडीए के पास दलित पॉलिटिक्स के दोनों प्रमुख चेहरे- चिराग पासवा और जीतनराम मांझी थे. इसके बावजूद बीजेपी की अगुवाई वाला यह गठबंधन दलित पॉलिटिक्स की पिच पर पिछड़ गया था. आरजेडी और जेडीयू के महागठबंधन ने कुल 40 में से 24 सुरक्षित सीटें जीत ली थीं. बीजेपी पांच सीटें जीत सकी थी और मांझी की पार्टी केवल एक सीट ही जीत सकी थी.

Advertisement

यह भी पढ़ें: NDA के साथ भी, एनडीए के खिलाफ भी... आखिर चिराग पासवान बिहार में चाहते क्या हैं?

जीतनराम मांझी तब पार्टी के इकलौते विजयी उम्मीदवार थे. ऐसा तब था, जब मांझी ने खुद दो सीटों से चुनाव लड़ा था. मखदूमपुर विधानसभा सीट से वह चुनाव हार गए थे. 2010 विधानसभा चुनाव में जब जेडीयू ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए सौ से ज्यादा सीटें जीती थीं, तब भी एलजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस 18 सुरक्षित सीटें जीतकर दलित पॉलिटिक्स की पिच पर सबसे बड़े प्लेयर के रूप में उभरी थी.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement