बिहार में हर तरफ चुनावी सरगर्मी तेज हो चुकी है. हर तरफ राजनीति की चौपालें सजी हुई हैं. ऐसे में हमने बिहार की जनता का मन भांपने की कोशिश की. जैसे ही हमारी फ्लाइट पटना एयरपोर्ट पर उतरी, सबसे पहले नजर पड़ी- बदलाव पर. नया टर्मिनल चमकदार था, चढ़ते ही छठ महापर्व की झलक दिखाने वाले पोस्टर स्वागत कर रहे थे. महसूस हुआ कि राजधानी जैसे अपनी पुरानी छवि को बदलने की कोशिश कर रही है.
बाहर टैक्सी में बैठते ही मैंने ड्राइवर से वही पुराना सवाल पूछा, 'माहौल कैसा है?'
वो मुस्कुराया और बोला, 'भैया, इस बार तो मोदी जी को ही लाएंगे... चाहे नमक-रोटी खाएं, पर मोदीया को जिताएंगे!'
मैं हंसा और दूसरा सवाल पूछ लिया, 'NDA को फिर से, क्यों?'
वो बोला, 'लालू के टाइम में क्या ऐसे साफ सड़कें थीं? डर का माहौल था. अब कम से कम सुकून से सफर तो कर लेते हैं.'
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शहर के भीतर भी महिलाओं की आवाज में भरोसा
अब हम होटल पहुंच चुके थे. यहां पहुंचते ही होटल की रिसेप्शन पर खड़ी युवती से मैंने पूछा, 'आप किसे वोट देंगी?'
वो मुस्कुराई, 'सर, भले ही नीतीश जी ने ‘महिला रोजगार योजना’ न चलाई होती, फिर भी मैं NDA को ही वोट देती क्योंकि आज मैं एक कामकाजी औरत हूं. पहले के जमाने में शायद मेरी शादी कर दी जाती.'
उसकी बात में गहराई थी. कई महिलाओं के लिए शासन का मतलब सिर्फ योजनाएं नहीं, बल्कि सम्मान और सुरक्षा है.
नाराजगी भी कम नहीं...
लेकिन ये उम्मीद हर जगह नहीं है. जब हम तेजस्वी यादव की नामांकन रैली कवर करने हाजीपुर पहुंचे तो यहां माहौल अलग था. कुछ नौजवानों ने कहा, 'विकास आधे रास्ते में रुक गया. सड़कें हैं, पर नौकरियां नहीं. महंगाई सब खा जाती है.'
यहां गुस्सा नहीं, बल्कि उबाऊपन था जैसे लोग एक ही वादे बार-बार सुनकर थक चुके हों.
पटना से सिर्फ 40 किमी दूर ‘विकास’ की सच्चाई
हम पहुंचे पुनपुन के देहरी गांव में जो महादलित और अति पिछड़े वर्गों का इलाका है. यहीं से कभी नीतीश कुमार की राजनीति की पहचान बनी थी. लेकिन 18 साल बाद भी यहां हालात कमोबेश वैसे ही हैं, न साफ पानी, न ड्रेनेज, न पक्के घर.
एक बुजुर्ग बोले, 'पैसे तो आते हैं, पर गांव तक पहुंचते नहीं. मुखिया तक ही खत्म हो जाते हैं.'
दूसरा बोला, 'हर घर जल के तहत पाइप तो बिछा दी, पर नल में पानी नहीं आता. नाली खोद दी, पर ढकी नहीं. अब गंदगी और बढ़ गई.'स्थानीय युवक रंजीत ने कहा, 'मोदी जी काम करते हैं पर सिस्टम खराब है. नीचे के अफसर और कर्मचारी सब बर्बाद कर देते हैं.'
भ्रष्टाचार: जो हर बात में झलकता है
हर बातचीत में एक शब्द बार-बार सुनाई दिया, वो है भ्रष्टाचार. लोग योजनाओं के बारे में जानते हैं, पर उनका सबसे बड़ा सवाल है कि लाभ पहुंचता किसे है?
दरभंगा के एक युवा वोटर बोले, 'पढ़ाई पूरी कर ली, पर यहां कुछ शुरू नहीं कर सकते. हर काम में घूस देनी पड़ती है. सर्टिफिकेट बनवाओ या बिजनेस खोलो, हर कदम पर कमीशन देना पड़ता है.'
ये किसी एक नेता के खिलाफ गुस्सा नहीं बल्कि हर चीज के बदले पैसा मांगने वाले सिस्टम से उकताए लोगों की हताशा है.
NDA में अंदरूनी खींचतान
NDA भले पूरे जोर-शोर से प्रचार कर रहा हो लेकिन अंदर तालमेल गड़बड़ है. 2020 में नीतीश कुमार से भिड़े चिराग पासवान अब उन्हीं के लिए वोट मांग रहे हैं, और ये काम आसान नहीं. कई बीजेपी और जेडीयू कार्यकर्ता मानते हैं कि आपसी प्रचार बहुत कम है. एक बीजेपी रणनीतिकार ने कहा, 'बिहार में जातीय गणित बहुत नाज़ुक है. छोटे मतभेद भी सीटें बिगाड़ सकते हैं. हम सबको एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मतभेद छिप नहीं रहे.'
बागियों की बगावत
NDA के लिए असली सिरदर्द है बगावत. करकट में बीजेपी स्टार पवन सिंह की पत्नी ज्योति सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा है. दिनारा में जेडीयू के वरिष्ठ नेता जय कुमार सिंह टिकट न मिलने पर अकेले लड़ रहे हैं. जेडीयू ने 16 नेताओं को निकाल भी दिया है जिनमें दो पूर्व मंत्री शामिल हैं. लेकिन नुकसान हो चुका है. यही बागी वोटों का बंटवारा कर सकते हैं जिससे मुकाबला और कठिन होगा.
बिहार का मूड
पटना से लेकर पुनपुन, हाजीपुर से दरभंगा तक घूमने के बाद एक बात साफ है कि बिहार के मतदाता सजग हैं, समझदार हैं और सब पर नजर रखते हैं. NDA को अभी भी महिलाओं और पहली बार लाभ पाने वालों का भरोसा हासिल है लेकिन नीचे सतह पर बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अंदरूनी फूट की नाराजगी भी है.
जाति, भावनाओं और शासन के इस संगम में बिहार का फैसला सिर्फ पार्टियों की परीक्षा नहीं होगा बल्कि लोगों और सत्ता के बीच भरोसे की कसौटी भी होगा. जैसा कि एक बुजुर्ग ने अधूरी नाली के पास खड़े होकर कहा, 'बिहार बदला है, पर पूरा नहीं.'