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कामयाबी का प्रेशर, सुसाइड थॉट और जिंदगी बचाने की जंग... कोटा में खून से सने पन्नों में बयां छात्रों का दर्द!

अपने सपनों को आकार देने देश भर से कोटा पहुंचने वाले कोचिंग स्टूडेंट्स के हिम्मत हार जाने की कहानियां थम नहीं रही. इधर, बच्चों का हौसला टूटता है और उधर सांसों की डोर टूट जाती है. पिछले साल यानी साल 2023 में कोटा में सुसाइड के बेशुमार मामले सामने आए थे. अब नए साल में भी ये सिलसिला फिर शुरू हो गया.

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नए साल में भी कोटा में छात्रों के सुसाइड का सिलसिला चल पड़ा है
नए साल में भी कोटा में छात्रों के सुसाइड का सिलसिला चल पड़ा है

कामयाब और नाकाम जिंदगी के बीच जारी जंग में जिंदगी लगातार हार रही है. कोटा में छात्रों की मौत का सिलसिला जारी है. डॉक्टर और इंजीनियर बनने या बनाने के लिए कोटा पहुंचे या फिर भेजे गए बच्चे लगातार हार रहे हैं. पिछले 26 दिनों में वहां 4 बच्चों ने जान दे दी और तीन ने जान देने की कोशिश की. और ये सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है.

नए साल में भी दर्द भरी कहानियों का सिलसिला
अपने सपनों को आकार देने देश भर से कोटा पहुंचने वाले कोचिंग स्टूडेंट्स के हिम्मत हार जाने की कहानियां थम नहीं रही. इधर, बच्चों का हौसला टूटता है और उधर सांसों की डोर टूट जाती है. पिछले साल यानी साल 2023 में कोटा में सुसाइड के बेशुमार मामले सामने आए थे. ये शहर अभी इस मुश्किल से मुकाबला कर ही रहा था कि नए साल में भी ऐसी दर्द भरी कहानियों का सिलसिला फिर से शुरू हो गया. पिछले चंद दिनों में 8 छात्रों का मौत को गले लगाने की कोशिश, कोटा के छात्रों पर छाए अवसाद यानी डिप्रेशन का सबूत है. इन 8 में से चार छात्रों की जिंदगी तो खत्म हो गई, लेकिन आम लोगों की चौकसी से प्रशासन तीन छात्रों की जिंदगी बचाने में कामयाब रहा. मगर इतना होने के बावजूद एक लड़का अब भी लापता है. और अपने कलेजे के टुकड़े की वापसी की आस में घरवाले हर रोज़ मर रहे हैं.

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खून से सने कुछ पन्नों पर बयां किया दर्द
कोटा में रह कर पढ़ाई कर रहा रचित सौंधिया रविवार, 11 फरवरी को टेस्ट देने के लिए अपने हॉस्टल से निकला था. लेकिन इसके बाद वो वापस नहीं लौटा. घरवालों को जब इस बात की खबर मिली, तो उन्होंने जवाहरनगर पुलिस स्टेशन में इसी खबर दी. बच्चे की तलाश शुरू की गई. इस बीच पता चला कि बच्चा कोटा के चंबल नदी के किनारे गरड़िया महादेव मंदिर की तरफ गया है. अब भागे-भागे घरवाले महादेव मंदिर की तरफ गए, जहां उन्हें बच्चे का मोबाइल पोन, बैग, चप्पल और दूसरी चीज़ें मिलीं. और इन चीज़ों ने घरवालों की सांसें हलक में अटका दीं. लेकिन इसके आगे रचित के घरवालों ने जो कुछ देखा उसने उनकी परेशानी और भी बढ़ा दी. उसके कमरे पुलिस और घरवालों को खून से सने कुछ पन्ने मिले और टुकड़ों में लिखी कई बातें मिलीं, जिन्हें देख कर ये साफ था कि वो बहुत ज्यादा परेशान है.

मूड फ्लैक्चुएशन की शिकायत
रचित ने एक पन्ने पर कथित तौर पर ये लिखा है, आई रियली वान्ट टू डाई. व्हाय आई एम फाइन? यानी मैं वाकई मरना चाहता हूं. आखिर मैं ठीक क्यों हूं? जाहिर है एक लड़के की लिखी ये पंक्तियां उसके डिप्रेशन में होने की तरफ इशारा करती हैं. और ऐसे लोगों को अक्सर मूड फ्लैक्चुएशन की शिकायत होती है, जो एक पल को सही रहते हैं और अगले ही पल उनके दिलों-दिमाग में सुसाइड थॉट आते हैं यानी वो मर जाना चाहते हैं. रचित के मामले में पुलिस और विशेषज्ञों को शक है कि वो शायद किसी वीडियो गेम की लत का शिकार हो चुका था, जिसके बाद डिप्रेशन में आ गया.

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उसने एक जगह लिखा- 'मैं अपनी पसंद से इस कमरे (Hostel room) में आया हूं पर किताब नहीं खोली है. मैं केवल मोबाइल फोन पसंद करता हूं और पढ़ाई के बारे में हमेशा झूठ बोलता हूं. आपकी मेरे प्रति सहानुभूति से मैं पहले से ही जानता हूं कि आप मेरे झूठ के बारे में बहुत कुछ जानते हैं.' उसकी इन पंक्तियों को पढ़ कर लगता है कि ये बातें उसने शायद अपने घरवालों के लिए कही हैं. फिलहाल, गोताखोरों की टीम गरड़िया महादेव मंदिर के पास चंबल नदी की गहराई में रचित सौंधिया को ढूंढने की कोशिश कर रही है. 6 दिनों का वक़्त गुजर चुका है और घरवालों का दिल बैठा जा रहा है.

सरकारी अभियान भी बेअसर
कोटा में पिछले साल 29 स्टूडेंट्स ने खुदकुशी कर ली थी. जिसके बाद कोटा के स्थानीय शासन प्रशासन के साथ-साथ पूरे देश में जबरदस्त हलचल हुई. इस बीच राजस्थान में सरकार बदल गई और नई सरकार ने छात्रों को खुदकुशी करने से रोकने के लिए कई अभियानों की शुरुआत की. लेकिन हकीकत यही है कि इसका असर फिलहाल जमीन पर कहीं नजर नहीं आ रहा है.

ये है नई उम्र के बच्चों के मरने की वजह!
उड़ान भरने से पहले ही हौसला हार जाने की ये सिर्फ कोई इक्की-दुक्की कहानियां नहीं हैं, बल्कि कोचिंग सेंटर्स के लिए विख्यात राजस्थान का शहर कोटा और अब सुसाइड के लिए कुख्यात हो चुका है. पढ़ाई का प्रेशर, घरवालों की उम्मीदें, दोस्तों के साथ इगो क्लैश और फ्यूचर यानी भविष्य को लेकर मन में पलता खौफ नए उम्र के लड़के-लड़कियों को बेमौत मार रहा है. उनकी जान ले रहा है. 

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कोटा में हर साल सामने आती हैं ऐसी कहानियां
जाहिर है इन मौत यानी सुसाइड के पीछे की वजहों की खबर तो हर किसी को है, लेकिन शायद इसे रोकने का तरीका किसी के पास नहीं. या फिर ये कह सकते हैं कि शायद ये तरीके अब तक सही मायने में अमल में नहीं लाए गए. और यही वजह है कि कोटा से साल दर साल स्टूडेंट्स की खुदकुशी की ऐसी कहानियों के आने का सिलसिला कम ही नहीं होता.

लगातार बढ़ रहे हैं सुसाइड के मामले
इससे पहले कि हम स्टूडेंट्स की सुसाइड की वजहों की और गहराई से पड़ताल करें, इसे रोकने के तौर तरीकों की बात करें, आईए एक नजर कोटा में पढ़नेवाले स्टूडेंट्स के आंकड़ों और सुसाइड के लगातार बढ़ते मामलों पर डाल लेते हैं, जिससे कहानी काफी हद तक साफ हो जाए.

3 हज़ार करोड़ का है कोचिंग का सालाना कारोबार
एक आंकड़े के मुताबिक कोटा में कोचिंग का सालाना कारोबार करीब 3 हज़ार करोड़ रुपये का है. कोटा में इंजीनियर और मेडिकल की तैयारी समेत अलग-अलग परीक्षाओं के लिए ढाई लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स रहते हैं. इनमें सबसे ज्यादा तादाद उत्तर प्रदेश और बिहार के स्टूडेंट्स की है. कोटा में इन स्टूडेंट्स के लिए जहां सात नामी और बडे कोचिंग सेंटर्स हैं, वहीं यहां पढ़ाई के लिए आनेवाले स्टूडेंट्स के रहने के लिए शहर में साढे तीन हजार से ज्यादा हॉस्टल और पीजी हैं. शहर के कुछ इलाके तो स्टूडेंट्स की आबादी के चलते ही अलग से पहचाने जाते हैं. इनमें सबसे ज्यादा लैंडमार्क इलाके में करीब 60 हजार स्टूडेंट्स रहते हैं, जबकि तलवंडी, जवाहरनगर, विज्ञान विहार, दादा बाड़ी, वसंत विहार जैसे इलाकों में करीब पौने दो लाख स्टूडेंट्स की रिहाइश है. इसी तरह कोर पार्क और बोरखेड़ा का इलाका भी स्टूडेंट्स की बसावट की वजह से जाना जाता है. 

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IIT JEE में नंबर वन है राजस्थान
अब सवाल ये है कि आखिर कोटा में पढ़ने से क्या होता है? सच पूछिए तो इसका जवाब किसी के पास नहीं है। लेकिन ये शायद कोटा के कोचिंग सेंटर्स का ही कमाल है कि आईआईटी और जेईई की परीक्षाओं में सबसे ज्यादा 15.82 परसेंट रेट के साथ राजस्थान का नंबर ही सबसे ऊपर है. इसके बाद उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश समेत दूसरे राज्यों का नंबर आता है, जहां से 8 से 10 फीसदी स्टूडेंट्स इन प्रतियोगी परीक्षाओं में बाजी मारते हैं. लेकिन सबसे ज्यादा खतरनाक आंकड़ा कोटा में साल दर साल होते सुसाइड के मामलों का है, जो लगातार बढ़ रहे हैं. 

कोटा पुलिस के सूत्रों की मानें तो यहां साल-

2012 में 11
2013 में 13 
2014 में 8
2015 में 17 
2016 में 18 
2017 में 14 
2018 में 20 
2019 में 18 
2020 में 20 
2021 में 0 
2022 में 15 और 
2023 में अब तक 29 छात्रों ने खुदकुशी की है. 

और भी हैं कई कारण
अब सवाल ये है कि आखिर कोटा में बढ़ते सुसाइड के पीछे की अहम और बड़ी वजहें क्या हैं? तो इसके जवाब को इन प्वाइंटर्स के जरिए समझा जा सकता है. खुदकुशी की सबसे बड़ी वजह तो पढ़ाई का दबाव ही है इसके अलावा कोचिंग इंस्टीट्यूट के बीच चलती रेस, हॉस्टल और पीजी का माहौल, पुलिस प्रशासन की काहिली, स्टडी ग्रुप का प्रेशर, घरवालों की उम्मीदों का दबाव, कोचिंग सेंटर्स का तेज बच्चों पर ज्यादा ध्यान देना और औसत बच्चों की अनदेखी करना, क्लासेज की टाइमिंग और शेड्यूल, छुट्टियों और बेक्स की कमी और घरवालों से दूरी जैसी वजहें भी बच्चों की जान ले रही हैं.

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अब किए गए हैं ऐसे इंतजाम
अब सवाल ये है कि आखिर इस प्रेशर को हैंडल कैसे किया जाए, जिससे बच्चे सुसाइड ना करें? तो मनोवैज्ञानिकों की मानें तो बच्चों पर से पढ़ाई का प्रेशर कम करके, उन पर अनावश्यक उम्मीदों का बोझ ना डाल कर, जरूरत के मुताबिक उनकी काउंसिलिंग करके, उनमें पॉजिटिविटी ला के और जिंदगी की अहमियत समझा के उन्हें सुसाइड करने से रोका जा सकता है. इसके अलावा स्टूडेंट्स के हॉस्टल और पीजी में भी अब कोटा में ऐसे इंतजाम किए जाने लगे हैं, जिससे सुसाइड करने की गुजाइंश कम हो जाए. 

सीसीटीवी से स्टूडेंट्स की मॉनिटरिंग
मसलन हॉस्टल के पंखे अब स्प्रिंग के सहारे लगे होते हैं, ताकि अगर कोई उससे लटकने की कोशिश करे, तो फैन नीचे चले आए. ठीक इसी तरह बॉलकोनी में ऊपर से लेकर नीचे तक ग्रिल लगे होते हैं, ताकि कोई ऊपर से कूद ना सके. इसी तरह जगह-जगह लगे सीसीटीवी कैमरों से भी अब स्टूडेंट्स की मॉनिटरिंग की जाने लगी है.

(दिल्ली से मनीषा झा का इनपुट)

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