करोड़ों की प्रॉपर्टी और सड़कों पर नाव चलाने की नौबत, दिल्ली-एनसीआर की बदहाली की ये कहानी हर बारिश की है. सुबह से हो रही बारिश से पूरा शहर पानी-पानी हो गया है. सड़कें तालाब बन गई हैं, लोग गाड़ियों में बैठे ट्रैफिक में चंद मिनटों का सफर घंटों में पूरा कर रहे हैं. दिल्ली और एनसीआर के लिए बारिश में ये नजारा आम बात हो गई है.
जहां एक छोटा सा घर खरीदने के लिए लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, वो शहर बारिश की एक ही बौछार में पानी-पानी हो जाता है. जिस शहर में रियल एस्टेट का कारोबार आसमान छू रहा है, वहां बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर इतनी बदहाल क्यों हैं? यह केवल एक असुविधा नहीं, बल्कि एक गंभीर समस्या है जो हर साल मानसून में इस महानगर की पोल खोल देती है.
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दिल्ली, देश की राजधानी, जहां देश के सबसे प्रभावशाली और शक्तिशाली लोग रहते हैं, मॉनसून की एक ही बारिश में अपनी बदहाली की कहानी खुद बयां करती है. वीआईपी इलाकों और पॉश कॉलोनियों की सड़कें भी तालाब में तब्दील हो जाती हैं, जिससे इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी जलभराव की समस्या का सामना करना पड़ता है.
जिस शहर की पहचान देश की सत्ता और भव्यता से होती है, वहां की सड़कें जल निकासी के अपर्याप्त सिस्टम के कारण हर साल डूब जाती हैं. यह स्थिति दिखाती है कि भले ही दिल्ली में करोड़ों की संपत्तियां और शानदार बंगले हों, लेकिन बुनियादी नागरिक सुविधाएं और बेहतर शहरी योजना का अभाव एक ऐसी समस्या है, जो वीआईपी और आम जनता के बीच कोई फर्क नहीं करती.
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गुरुग्राम, जो हरियाणा के आयकर संग्रह में 65% का योगदान देता है और गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों यहां मौजूद हैं, वहां की सड़कें अक्सर पानी-पानी हो जाती हैं. शहर की सड़कें नहरों में बदल जाती हैं, मैनहोल खुले पड़े रहते हैं, और बिजली के तार खतरनाक तरीके से लटकते रहते हैं. इससे यातायात व्यवस्था चरमरा जाती है और लोगों को घंटों तक जाम में फंसना पड़ता है. ये उस शहर का हाल है जहां देश के सबसे मंहगे घर बिक रहे हैं, जिनकी कीमत 100 करोड़ से ऊपर है.
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नोएडा जहां लोग बेहतर करियर और सुनहरे भविष्य की तलाश में आते हैं. नोएडा ने खुद को एक आईटी और कॉर्पोरेट हब के रूप में स्थापित किया है, जहां बड़ी-बड़ी भारतीय और विदेशी कंपनियां निवेश कर रही हैं. गगनचुंबी इमारतें, शानदार मॉल और एक्सप्रेसवे इस शहर के विकास की कहानी कहते हैं. लेकिन, इस चमक-दमक के पीछे एक कड़वी हकीकत भी है. भारी बारिश के दौरान जलभराव, खराब बुनियादी ढांचा और अनियोजित शहरीकरण यहां के लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती है. करोड़ों की संपत्ति वाले इस शहर में लोगों को सड़कों पर चलने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, जो इसकी बदहाली की एक दुखद तस्वीर पेश करता है.

दिल्ली-एनसीआर में जलभराव का सबसे बड़ा कारण अनियोजित शहरीकरण है. पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र का विकास बहुत तेजी से हुआ है, लेकिन बिना किसी योजना के. विकास के नाम पर, प्राकृतिक जल निकासी के रास्ते, जैसे कि झीलें, तालाब और गड्ढे, बंद कर दिए गए हैं और उन पर कंक्रीट की इमारतें खड़ी कर दी गई हैं. इसका सीधा परिणाम यह हुआ है कि बारिश का पानी जमीन में रिसने की बजाय सड़कों पर जमा हो जाता है.
इसके साथ ही, ड्रेनेज सिस्टम भी आज की जरूरतों के हिसाब से बहुत पुराना और अपर्याप्त है. ये नालियां भारी बारिश के पानी को संभालने में सक्षम नहीं हैं. नियमित सफाई की कमी के कारण ये नालियां कचरे, प्लास्टिक और मलबे से जाम हो जाती हैं, जिससे पानी का बहाव पूरी तरह से रुक जाता है. सड़कों, इमारतों और पार्किंग स्थलों के कारण जमीन का एक बड़ा हिस्सा ठोस सतहों से ढक गया है, जिससे पानी जमीन में नहीं जा पाता.
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जलभराव के बावजूद, दिल्ली-एनसीआर में भूजल स्तर का लगातार गिरना एक बड़ी चिंता है. अगर जल निकासी की उचित व्यवस्था हो, तो यह बारिश का पानी भूजल को रिचार्ज कर सकता है, लेकिन मौजूदा हालात में ऐसा नहीं हो पाता. इसके अलावा, कचरा प्रबंधन की कमी इस समस्या को और गंभीर बनाती है. लोग अक्सर कचरा नालियों और सड़कों पर फेंक देते हैं, जिससे ये जाम हो जाती हैं. प्लास्टिक की थैलियां और बोतलें जल निकासी प्रणाली को पूरी तरह से अवरुद्ध कर देती हैं.
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जलभराव के कारण दिल्ली-एनसीआर में यातायात जाम एक आम समस्या बन गई है. घंटों तक लोग गाड़ियों में फंसे रहते हैं, जिससे उनका समय और ईंधन दोनों बर्बाद होता है. इसके अलावा, जलभराव से कई तरह की बीमारियां भी फैलती हैं, जैसे डेंगू, मलेरिया और टाइफाइड. सड़कों पर जमा गंदा पानी मच्छरों के प्रजनन के लिए एक आदर्श जगह बन जाता है. यह स्थिति न केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा है, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाती है.
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