Janmashtami 2022: श्रीकृष्ण की छाती पर क्यों होता है पैर का निशान? हैरान कर देगी ये वजह

Janmashtami 2022: इस साल जन्माष्टमी का त्योहार कई जगहों पर 19 अगस्त को मनाया जा रहा है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के लड्डू गोपार स्वरूप की पूजा की जाती है. क्या आप जानते हैं श्रीकृष्ण के लड्डू स्वरूप की छाती पर एक पैर का चिह्न होता है. बाल गोपाल की छाती पर इस निशान को लेकर एक पुरातन कथा है.

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Janmashtami 2022: श्रीकृष्ण की छाती पर क्यों होता है पैर का निशान? हैरान कर देगी ये वजह Janmashtami 2022: श्रीकृष्ण की छाती पर क्यों होता है पैर का निशान? हैरान कर देगी ये वजह

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 12:02 PM IST

श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप की पूजा की जाती है. क्या आप जानते हैं श्रीकृष्ण के लड्डू स्वरूप की छाती पर पैर का एक चिह्न होता है. बाल गोपाल की छाती पर इस निशान को लेकर एक पुरातन कथा है.

जब ब्रह्मा जी से मिले महर्षि

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ऐसी मान्यताएं हैं कि एक बार महाऋषियों के बीच ब्रह्मा, विष्णु और महेश में श्रेष्ठता को लेकर चर्चा हो रही थी. जब इस चर्चा का कोई अंतिम परिणाम नहीं निकला तो ब्रह्माजी के पुत्र महर्षि भृगु को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई. महर्षि भृगु सबसे पहले ब्रह्माजी के पास गए. चूंकि महर्षि भृगु तीनों महादेवों की परीक्षा ले रहे थे, इसलिए ब्रह्माजी के पास जाकर उन्होंने ना तो उन्हें प्रणाम किया और ना ही उनके सामने सिर झुकाया. ये देख ब्रह्माजी क्रोधित हो गए. लेकिन महर्षि भृगु ने अपनी दिव्य शक्तियों से उनके क्रोध को दबा दिया.

भोलेनाथ को आया क्रोध

इस के बाद महर्षि भृगु कैलाश पर्व गए. महर्षि भृगु को आता देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने अपने स्थान से उठकर उन्हें गले लगाना चाहा. लेकिन महर्षि भृगु ने महादेव का अभिनंदन स्वीकार नहीं किया. महर्षि भृगु ने कहा, 'आप पापियों को वरदान देते हैं, उनसे देवताओं पर संकट आ जाता है. इसलिए मैं आपका आलिंगन कभी नहीं करूंगा.' ये सुनकर भगवान शिव भड़क उठे और उन्होंने अपना त्रिशूल उठा लिया. तब माता पार्वती के कहने पर शिवजी शांत हुए.

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शिव और ब्रह्मा की परीक्षा लेने के बाद भृगु मुनि वैकुण्ठ लोक पहुंचे, जहां भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे. महर्षि भृगु ने वहां जाते ही विष्णु की छाती पर पांव रख दिया. विष्णुजी उठे और उन्होंने महर्षि भृगु को प्रणाम करते हुए कहा, 'हे महर्षि! आपके पांव पर कहीं चोट तो नहीं लगी है? इन चरणों का स्पर्श तो तीर्थ धामों को पवित्र करने वाला है. आपके कोमल चरणों के स्पर्श से आज मैं धन्य हो गया हूं.'

यह सुनकर महर्षि भृगु की आंखों से आंसू छलक उठे. भृगु ऋषि मुनियों के पास पहुंचे और उन्होंने शिव, ब्रह्मा और विष्णु की पूरी कहानी  सुनाई. तब सभी ने माना कि भगवान विष्णु त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ माना. ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार लड्डू गोपाल की छाती पर भृगु के चरण का चिह्न छपा है.

 

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