जब-जब बिहार में 5% से ज्यादा बढ़ी वोटिंग, बदल गई सरकार... पहले चरण में 8% का इजाफा किसके लिए टेंशन

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर गुरुवार को मतदान हुआ. इस बार बिहार के मतदाताओं ने वोटिंग के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. पहली बार 64.69 फीसदी वोटिंग हुई है, जो पिछले चुनाव से करीब साढ़े आठ फीसदी ज्यादा है. बिहार में जब-जब पांच फीसदी से ज्यादगा वोटिंग हुई है, तब-तब सरकार बदल गई है.

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बिहार के पहले चरण की वोटिंग पैटर्न क्या कहती है (Photo-ITG) बिहार के पहले चरण की वोटिंग पैटर्न क्या कहती है (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:38 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के 18 ज़िलों की 121 सीटों पर उतरे 1314 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है. गुरुवार को पहले चरण में मतदाताओं का उत्साह ज़बरदस्त देखने को मिला. पहले फेज की 121 सीटों पर 64.69 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जो पिछले चुनाव से करीब साढ़े आठ फीसदी मतदान ज्यादा हुआ है.

बिहार की सियासत में इस बार के मतदान को अभूतपूर्व माना जा रहा है, क्योंकि प्रदेश के इतिहास में यह सर्वाधिक वोटिंग है. साल 2020 में पहले चरण में 56.1 फीसदी वोटिंग हुई, लेकिन उस समय पहले फेज में 71 सीटों पर चुनाव हुए थे जबकि इस बार 121 सीट पर चुनाव हुए हैं. 

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चुनाव आयोग के मुताबिक पहले फेज की 121 सीटों पर 64.69 फीसदी मतदान रहा जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर 56 फीसदी के करीब मतदान रहा। इस लिहाज़ से देखें तो वोटिंग पैटर्न कहता है कि पिछले चुनाव से करीब साढ़े आठ फ़ीसदी वोटिंग ज़्यादा हुई है। इस बार चुनाव में जिस तरह से मतदान बढ़ा है, उससे सियासी दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं.

बिहार चुनाव में कहां कितना मतदान

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बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 18 ज़िलों की 121 सीटों पर वोटिंग हुई, जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर और समस्तीपुर जिले में सबसे ज़्यादा मतदान रहा तो पटना में सबसे कम वोटिंग हुई है। मुजफ़्फरपुर में 70.96 फीसदी, समस्तीपुर में 70.63 फीसदी, मधेपुरा में 67.21 फीसदी, वैशाली में 67.37 प्रतिशत हुआ.

सहरसा में 66.84 फीसदी, खगड़िया में 66.36 फीसदी, लखीसराय में 65.05 फीसदी, मुंगेर में 60.40 फीसदी, सीवान में 60.31 फ़ीसदी, नालंदा में 58.91 फीसदी और पटना जिले में 57.93 प्रतिशत वोटिंग हुई। इस तरह से बिहार के पहले चरण में 64.69 फीसदी कुल मतदान रहा.

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बिहार में साढ़े 8 फीसदी मतदान रहा

2020 में पहले फेज में 3.70 करोड़ कुल वोटर थे, जिसमें से 2.06 करोड़ ने वोट किया था. लेकिन अबकी बार पहले फेज में कुल 3.75 करोड़ वोटर हैं, जो पिछली बार से 5 लाख अधिक हैं. इस बार की पहले चरण में 64.69 फासदी वोटिंग हुई. अब सियासी दल इस बढ़े वोटिंग पैटर्न को अपने-अपने लिहाज से मुफीद बता रहे हैं.

बिहार में इससे पहले 1951-52 से 2020 तक सबसे अधिक 2000 के विधानसभा चुनाव में 62.57 फीसदी वोट पड़े थे जबकि 1951-52 से 2024 तक हुए लोकसभा चुनाव में बिहार में सबसे अधिक 1998 में 64.60 फीसदी मतदान हुआ था, जो कि इस बार बिहार में पहले चरण की सीटों पर हुए वोटिंग ने इसे भी पछाड़ दिया.

बिहार का वोटिंग पैटर्न के क्या संकेत

वोटिंग फीसदी के घटने-बढ़ने का सीधा-सीधा असर चुनाव के नतीजों पर भी पड़ता है. भारत के चुनावी इतिहास में आमतौर पर माना जाता है कि जब वोटिंग ज़्यादा होती है, तो जनता बदलाव (एंटी इंकम्बेंसी) चाहती है. लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता.

चुनाव में देखा गया है कि कई बार अधिक मतदान का मतलब सरकार के प्रति समर्थन (प्रो इंकम्बेंसी) भी रहती है.  मतलब साफ  है कि वोटर्स की ये सक्रियता किस दिशा में जाएगी, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी.

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एसआईआर के बाद पहली बार चुनाव हुए हैं. एसआईआर में तमाम वोट काटे गए हैं तो कुछ नए वोट जोड़े गए हैं. इस तरह फर्जी वोटर हटाए जाने की वजह से भी वोटिंग बढ़ने का कारण माना जा रहा है,  लेकिन बिहार में जब-जब वोटिंग बढ़ी है तो सत्ता बदल जाती है. 

बिहार में वोटिंग बढ़ने से बदली सरकार

बिहार में विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो 1951-52 से 2020 तक केवल तीन बार ही 60 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई. 1990 में 62.04, 1995 में 61.79 और अब से पहले सबसे अधिक रिकॉर्ड 2020 में 62.57 वोट पड़े थे, लेकिन इस बार सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. अभी पहले चरण में 64.69 फ़ीसदी वोटिंग रही है. ऐसे ही अगले चरण में वोटिंग हुई तो बिहार के इतिहास में यह अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा. बिहार में अभी तक सबसे कम 42.60 फ़ीसदी भी 1951-52 में ही वोट पड़े थे.

आजादी के बाद से लेकर अभी तक बिहार में जितने चुनाव हुए हैं, उसके वोटिंग पैटर्न को देखते हैं तो साफ जाहिर होता है कि बिहार में जब-जब मतदान में 5 फीसदी से ज़्यादा इजाफा हुआ है, उसका असर चुनाव पर पड़ा है. बिहार में सरकार बदल गई है, तीन बार देखा गया है कि वोटिंग बढ़ने से कैसे सत्ता पर सियासी असर पड़ा है. 

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बिहार में 5% से कैसे बदल जाती है सरकार

बिहार में सबसे पहले 1967 के चुनाव में वोटिंग में इजाफा हुआ तो सरकार बदली. 1962 में 44.5 फ़ीसदी वोटिंग के मुकाबले 1967 में 51.5 फीसदी मतदान रहा.  इस तरह 7 फ़ीसदी वोटिंग ज़्यादा हुई थी और कांग्रेस के हाथों से सरकार निकल गई थी बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेसी दलों ने मिलकर सरकार बनाई थी.

1967 के बाद 1980 में भी यही पैटर्न दिखा. वर्ष 1980 में 57.3 फीसदी मतदान हुआ था जबकि 1977 के चुनाव में 50.5 फ़ीसदी वोटिंग रही. इस तरह 6.8 फ़ीसदी ज़्यादा मतदान हुआ, जिसका नतीजा रहा कि सरकार बदल गई. जनता पार्टी को हार झेलना पड़ा और कांग्रेस वापसी कर गई.

1980 के बाद 1990 के विधानसभा चुनाव में मतदान में ज़बरदस्त इजाफा हुआ. 1990 में 62 फीसदी मतदान हुआ था जबकि उससे पहले 1985 में 56.3 फीसदी मतदान रहा. इस तरह 5.8 फीसदी ज़्यादा मतदान की बढ़ोतरी ने बिहार की सत्ता परिवर्तन कर दिया था.

कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा था और जनता दल ने सरकार बनाई थी. इसके बाद बिहार में सत्ता परिवर्तन नवंबर 2005 में हुआ, जब 16 फीसदी वोटिंग कम हुई थी. इस बार बिहार के पहले चरण के चुनाव में साढ़े आठ फीसदी वोटिंग ज़्यादा हुई है, जिसके नफा-नुकसान का आकलन किया जा रहा है.

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बिहार की वोटिंग किसकी बढ़ा रही टेंशन

बिहार के पहले चरण में मिथिलांचल, कोसी, मुंगेर डिवीजन, सारण, भोजपुर बेल्ट की 121 सीटों पर चुनाव हुए हैं. बिहार में इस बार दो चरण में चुनाव हो रहा है. पहले चरण की 121 सीटों पर 1314 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई जबकि बाकी 122 सीटों पर 11 नवंबर को मतदान है. पहले चरण में जिस तरह से मतदान में इज़ाफ़ा हुआ है, उसे पिछले वोटिंग पैटर्न के लिहाज़ से देखें तो नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार के लिए सियासी टेंशन बढ़ा सकती हैं.

बिहार में पिछले चार चुनाव के वोटिंग पैटर्न को देखें तो 2010 के चुनाव में टर्नआउट 52.1 फीसदी था जो 2015 में 55.9 फ़ीसदी और 2020 में बढ़कर 56.1 फ़ीसदी पर पहुंच गया था, इस बार पहले चरण का वोटिंग पैटर्न देखें तो 64.69 फ़ीसदी मतदान है. पिछले तीन चुनाव में वोटिंग बढ़ने का लाभ देखें तो नीतीश कुमार को मिला है, लेकिन उसमें इज़ाफा दो से तीन फासदी का था. इस बार साढ़े 8 फीसदी का अंतर है. 

पहले चरण से ही तय हो जाएगी सत्ता

पहले चरण की जिन 121 सीट पर गुरुवार को चुनाव हुए हैं, उन इलाक़ों में पिछली बार महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे की टक्कर रही थी. इन 121 सीटों में महागठबंधन 61 सीटें जीती थी तो एनडीए को 59 सीटें मिली थी. आरजेडी ने 42 सीटों पर जीत का परचम फहराया था जबकि 32 सीटें बीजेपी ने जीती थीं.

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जेडीयू को 23 सीटें मिली थी और कांग्रेस 8 सीटें जीती थी. इसके अलावा माले के 7, वीआईपी के चार, सीपीआई और सीपीएम के दो-दो सीटें जीती थी. इसके अलावा एलजेपी एक सीट जीती थी.  इस लिहाज से देखें तो महागठबंधन और एनडीए दोनों के लिए पहला चरण काफी अहम है. 

बिहार में इस बार समीकरण बदल गए हैं

हालांकि, इस बार समीकरण बदल गए हैं. 2020 में एनडीए से अलग चुनाव लड़ने वाले चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा इस बार एनडीए के साथ थे तो मुकेश सहनी इस बार महागठबंधन के साथ हैं। इस बार 104 सीटों पर सीधा मुकाबला है, जबकि 17 सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई दिख रही है.

पहले चरण में आरजेडी 72 सीट पर है तो उसके सहयोगी कांग्रेस 24 और सीपीआई माले 14 सीट पर किस्मत आजामा रहे हैं. वीआईपी और सीपीआई छह-छह सीट पर चुनाव लड़ रही हैं, जबकि सीपीएम तीन और आईपी गुप्ता की इंडियन इंक्लूसिव पार्टी (आईआईपी) ने दो सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में थे। इस तरह छह सीटों पर महागठबंधन की फ्रेंडली फाइट है.

वहीं, एनडीए की तरफ से जेडीयू पहले फेज़ में 57 सीट मैदान में है तो बीजेपी ने 48 सीट पर थी। चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) ने 13 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम के दो प्रत्याशी मैदान में हैं और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) भी एक सीट पर चुनाव लड़ रही है. 

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असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी पहले चरण की 8 सीटों पर किस्मत आज़मा रही है। जन सुराज पार्टी ने पहले चरण की 114 सीटों पर मैदान में है. ऐसे में देखना है कि पहले चरण की सियासी बाजी किसके नाम होती? 

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