रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन गुरुवार (4 दिसंबर) को भारत आ रहे हैं. रूसी राष्ट्रपति का यह राजकीय दौरा बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बीच वो पहली बार भारत आ रहे हैं. पुतिन अपने दो दिवसीय भारत दौरे में भारत-रूस के 23वें वार्षिक शिखर सम्मेलन में भी हिस्सा लेंगे.
पुतिन के भारत दौरे की जानकारी देते हुए रूसी राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन की तरफ से जो बयान जारी किया गया है उसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति का भारत दौरा 'विशेषाधिकार प्राप्त स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप' के लिए बेहद अहम है.
इस दौरे से ठीक पहले रूस ने भारत के साथ सहयोग मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है. रूस की संसद (ड्यूमा) ने भारत के साथ एक महत्वपूर्ण रक्षा-सहयोग समझौता Reciprocal Exchange of Logistics Support, RELOS को मंजूरी दी है. दोनों ही देशों, खासकर भारत के लिए यह समझौता बेहद अहम माना जा रहा है.
यह समझौता संकेत है कि राष्ट्रपति पुतिन भारत के साथ संबंधों को गहरा करने के लिए पूरी तैयारी के साथ आ रहे हैं.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 2022 में यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार भारत आ रहे हैं. यूक्रेन के साथ युद्ध को लेकर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगा रखे हैं. अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद स्थिति और बिगड़ी है. ट्रंप ने रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों (भारत, चीन) को भी निशाना बनाया है.
रूसी कच्चे तेल की खरीद से नाराज होकर ट्रंप ने भारत पर अतिरिक्त 25% का टैरिफ लगाया है जिसके बाद भारत पर कुल टैरिफ बढ़कर 50% हो गया है. ट्रंप भारत पर रूस से रक्षा सहयोग कम करने का भी दबाव डाल हैं. ऐसे वक्त में पुतिन का भारत आना बेहद मायने रखता है.
पुतिन के भारत दौरे में कई व्यापार और डिफेंस डील भी होने हैं जिसे लेकर उनके दौरे की अहमियत और अधिक बढ़ जाती है.
राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे को भू-राजनीतिक एक्सपर्ट्स बड़े ही सकारात्मक नजरिए से देख रहे हैं. सामरिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. ब्रह्मा चेलानी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि प्रतिद्वंद्वी समूहों में बंटी दुनिया में पुतिन का भारत दौरा सामान्य कूटनीतिक दौरा नहीं बल्कि एक मजबूत भू-राजनीतिक बयान है.
वो लिखते हैं, 'यह यात्रा महत्वपूर्ण समझौतों को जन्म देगी जिनमें नए पेमेंट सिस्टम शामिल हैं, जो SWIFT प्रणाली को बायपास करने और अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. पुतिन का यह दौरा दर्शाता है कि रूस के पास अभी भी चीन के अलावा विकल्प हैं और वो खुद को बीजिंग का छोटा भागीदार बनने नहीं देगा.'
डॉ. चेलानी अंत में लिखते हैं, 'पुतिन की मेजबानी करके भारत यह साफ कर रहा है कि वो पश्चिम के थोपे गए- हमारे साथ या हमारे खिलाफ- के विकल्प को अस्वीकार करता है और अपनी खुद की राह चुनेगा.'
पॉलिटिकल रिस्क कंसल्टेंसी फर्म यूरेशिया ग्रुप के अध्यक्ष और संस्थापक इयान ब्रेमर कहते हैं, 'इस दौरे से संकेत मिलता है कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना चाहता है, खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका पर विश्वास नहीं किया जा सकता और चीन से दुश्मनी बनी हुई है.'
चैथम हाउस के एशिया-पैसिफिक प्रोग्राम में साउथ एशिया के लिए सीनियर रिसर्चर चितिज बाजपेई अमेरिका स्थित न्यूज वेबसाइट CNBC से बात करते हुए कहते हैं, 'हालांकि यह दौरा उस समय तय किया गया था जब अमेरिका-भारत संबंधों में कड़वाहट नहीं आई थी, लेकिन यह दिखाता है कि भारत सरकार ट्रंप प्रशासन की मनमानी की गुलाम नहीं है और वो स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखती है.'
पुतिन के दौरे की शुरुआत 4 दिसंबर, गुरुवार को पीएम मोदी के साथ डिनर से शुरू होगी. दोनों राष्ट्राध्यक्ष लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास पर डिनर करेंगे. द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 5 दिसंबर की सुबह राष्ट्रपति भवन में पुतिन के लिए औपचारिक स्वागत समारोह का आयोजन किया जाएगा. इसके बाद हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच द्विपक्षीय बातचीत होगी.
चार सालों बाद भारत आ रहे पुतिन एक विस्तृत एजेंडा साथ लेकर आए हैं. मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं के बीच व्यापार, रक्षा, आर्थिक सहयोग जैसे मुद्दों पर विस्तृत चर्चा होगी.
रूसी राष्ट्रपति के प्रेस सचिव दिमित्री पेस्कोव ने हाल ही में कहा कि बहुत से देश भारत-रूस के व्यापार के रास्ते में बाधाएं खड़ी कर रहे हैं लेकिन दोनों देश इसका सामना करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि दोनों देश आने वाले पांच सालों में द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
भारतीय थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में विजिटिंग फेलो अलेक्सी जखारोव कहते हैं, 'द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार इस शिखर सम्मेलन का प्रमुख फोकस होगा. इससे भारत को रूस के साथ अधिक संतुलित द्विपक्षीय व्यापार हासिल करने में मदद मिल सकती है.'
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरे में भारत से समुद्री खाद्य उत्पादों और फार्मा प्रोडक्ट्स को अधिक से अधिक रूसी बाजार में पहुंचाने पर बात होगी.
इस दौरान औद्योगिक सहयोग बढ़ाने, संयुक्त प्रोजेक्ट्स को लागू करने, उच्च तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और भारत से मानव संसाधन रूसी बाजार तक पहुंचाने पर भी बात होगी.
रूस से जब व्यापार की बात हो तो यह बातचीत कच्चे तेल पर चर्चा के बिना अधूरी मानी जाती है. रूस भारत का शीर्ष कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता है. ट्रंप के दबाव के बीच हाल के महीनों में रूसी तेल की खरीद में थोड़ी कमी आई है, बावजूद इसके भारतीय बाजार में रूसी तेल की अधिकता बनी हुई है.
रूस के राष्ट्रपति द्विपक्षीय वार्ता के दौरान यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि भारत रूसी तेल की खरीद जारी रखे. एक सरकारी सूत्र के अनुसार, पुतिन के साथ आने वाले प्रतिनिधिमंडल में रूस की प्रतिबंधित तेल कंपनियों, रॉसनेफ्ट और गजप्रोमनेफ्ट के प्रमुख शामिल हैं. इससे पता चलता है कि कच्चे तेल पर चर्चा पुतिन के एजेंडे में काफी अहम है.
मोदी-पुतिन के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने पर भी विस्तृत चर्चा की उम्मीद है. दोनों नेताओं के बीच रूस के सबसे उन्नत स्टेल्थ फाइटर जेट Su-57 की खरीद, तकनीक हस्तांतरण और संयुक्त उत्पादन पर भी बात होगी. इसके अलावा S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के नए डील और इसके अत्याधुनिक वर्जन S-500 मिसाइल डिफेंस डील पर भी चर्चा होगी. भारत के पास फिलहाल तीन S-400 मिसाइल सिस्टम हैं और डील के तहत बाकी दो डिफेंस सिस्टम के 2026 तक भारत आने की उम्मीद है.
रूस भारत को लंबी दूरी की मिसाइलें भी देगा.
दौरे से ठीक पहले रूसी संसद ने RELOS यानी रसद समझौते का पारस्परिक आदान-प्रदान को मंजूरी दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच बातचीत का यह अहम मुद्दा होगा. समझौते की बात करें तो, इसके अनुसार भारत और रूस की सेनाएं जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे की सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकेंगी. दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे का ईंधन या बेस का भी इस्तेमाल कर सकेंगी. इससे संयुक्त सैन्य अभ्यास और लंबी दूरी के मिशन अधिक प्रभावी और कम खर्चीले बन जाएंगे.
भारत के लिए RELOS समझौता सिर्फ सैन्य लॉजिस्टिक्स सपोर्ट के लिए ही फायदेमंद नहीं है बल्कि यह रणनीतिक रूप से भी फायदा पहुंचाएगा.
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (IDSA) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'रूस के साथ RELOS समझौता भारत को आर्कटिक क्षेत्र में रूसी नौसैनिक बंदरगाह फैसिलिटीज तक पहुंच देगा जिससे भारतीय नौसेना की पहुंच और ध्रुवीय जल क्षेत्रों में संचालन क्षमता बढ़ेगी.'
पीएम मोदी और पुतिन के बीच नागरिक परमाणु सहयोग पर भी विस्तृत चर्चा होने की उम्मीद है. इसके अलावा दोनों नेता रूस-यूक्रेन युद्ध, नौकरियों और भारत-रूस के लोगों के आपसी संबंधों को बढ़ाने पर भी बात कर सकते हैं.
पुतिन का भारत दौरान दौनों ही देशों के लिए फायदेमंद साबित होगा. रूस की बात करें तो इस दौरे से उसे रक्षा, व्यापार आदि क्षेत्रों में फायदा होगा. ट्रंप के बढ़ते दबाव के बीच पुतिन भारत को तेल और गैस सप्लाई बनाए रखने के लिए राजी करेंगे.
रक्षा के क्षेत्र में देखें तो S‑400, S‑500 और Su‑57 की बिक्री से रूस का रक्षा निर्यात बढ़ेगा. RELOS समझौते से रूस का सैन्य सहयोग मजबूत होगा.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि पुतिन के भारत दौरे से पश्चिमी दबाव के बीच रूस की अंतरराष्ट्रीय वैधता और सॉफ्ट पावर मजबूत होगी.
वहीं, भारत की बात करें तो पुतिन के भारत दौरे में कई डिफेंस डील होंगी जिससे भारत का डिफेंस सेक्टर मजबूत होगा. पश्चिमी तेल बाजार में असुरक्षा के बीच, रूस से तेल और ऊर्जा की सप्लाई भारत को सस्ती और भरोसेमंद एनर्जी दे सकती है.
लॉजिस्टिक और सामरिक मजबूती की बात करें तो, RELOS से भारत और रूस दोनों राष्ट्रों की नौसेना और वायुसेना की क्षमता बढ़ेगी, जिससे भारत को हिंद-प्रशांत और इंडियन महासागर क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिल सकती है.
इसके अलावा नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, और अन्य क्षेत्रों में साझेदारी भारत की दीर्घकालीन विकास योजना के लिए फायदेमंद हो सकती है.
पुतिन के भारत दौरे पर अमेरिका और चीन दोनों देशों की नजर बनी हुई है. पुतिन को स्टेट विजीट पर बुलाना अमेरिका और पश्चिमी देशों को यह संकेत है कि भारत अपनी विदेश नीति में पश्चिम की ओर नहीं झुका है बल्कि वो हमेशा की तरह रणनीतिक स्वायत्ता को प्राथमिकता दे रहा है.
रूस के साथ संबंधों को लेकर ट्रंप ने भारत पर भी दबाव बढ़ा दिया है. अतिरिक्त टैरिफ इसका उदाहरण है. ट्रंप के बढ़ते दबाव के बावजूद, भारत का पुतिन को होस्ट करना अमेरिका में चर्चा का विषय बना हुआ है.
रूस का सहयोगी चीन भी पुतिन के इस दौरे पर नजर बनाए हुए है. चीन के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर पुतिन के भारत दौरे की काफी चर्चा है. चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो पर पुतिन का भारत दौरा छाया हुआ है. एक वीबो यूजर ने लिखा, 'भारत के पास पहले से ही 200 रूसी विमान और कई S‑400 हैं. अब पुतिन Su‑57 और S‑500 लेकर आ रहे हैं. चीन-भारत और भारत‑पाकिस्तान की परिस्थितियों को देखते हुए, पुतिन कौन सा गेम खेल रहे हैं?'
चीन के राजनीतिक हलकों में भी भारत-रूस के बढ़ते रक्षा सहयोग पर चिंता है.