
मध्य पूर्व की मौजूदा स्थिति जितनी विस्फोटक है, उतनी ही पेचीदा भी हो चुकी है. ईज़रायली हमलों ने ईरान के भीतर व्यापक तबाही मचाई है, जहां सैकड़ों रणनीतिक ठिकानों पर भारी बमबारी की गई है. जवाबी कार्रवाई में ईरान ने भी इजरायल के कई प्रमुख शहरों को निशाना बनाते हुए मिसाइल हमले किए और बड़ा नुकसान पहुंचाया है.
इन सबके बीच अब ऐसी अटकलें तेज हो गई हैं कि अमेरिका इजरायल के समर्थन में सीधे युद्ध में शामिल हो सकता है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर हमले की योजना को मंजूरी दे दी है. उन्होंने अमेरिकी सेना से फाइनल आदेश के लिए रुकने को कहा है.
वहीं ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामनेई ने कहा कि हम अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की धमकियों से डरने वाले नहीं है. उन्होंने दो टूक कहा कि अगर अमेरिका ईरान-इजरायल जंग में शामिल होता है तो उसके बुरे परिणाम होंगे.
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50 हजार ताबूत तैयार रखे अमेरिका- नबवियान
ईरान ने साफ कर दिया है कि अगर वह इस जंग में शामिल होता है तो उसे भारी कीमत चुकानी होगी. कुछ दिन पहले ईरानी संसद की नेशनल सिक्योरिटी कमेटी के डिप्टी चेयरमैन महमूद नबवियान ने अमेरिका पर पलटवार करते हुए कहा, "हमारे लिए अमेरिका के सैन्य ठिकानों पर हमला करना, इजरायल पर हमले से भी आसान है. अगर अमेरिका ने ईरान पर हमला किया, तो उसे अपने सैनिकों के लिए 50,000 ताबूत तैयार रखने होंगे."

महमूद नबवियान का ये बयान कोई हवा में दिया गया बयान नहीं है, इसके लिए अगर हम तथ्यों पर गौर करेंगे तो काफी हद तक उनकी बात सही साबित होती दिखती है. अतीत में गंभीर से गंभीर हालातों में भी अमेरिका ने कभी ईरान पर कभी सीधा हमला नहीं किया है. उसने हमेशा ईरान पर प्रतिबंध ही लगाए हैं.
मध्य-पूर्व ईराक के असान टारगेट हैं अमेरिकी ठिकाने
दरअसल मिडिल ईस्ट में अमेरिका के कई सैन्य अड्डे हैं, अगर अमेरिका अब जंग में शामिल होता है तो ये सारे एयरबेस भी एक झटके में ईरान की जद में आ जाएंगे. यही वजह है कि ईरान ने कहा कि अमेरिका के सैन्य ठिकानों पर हमला करना इजरायल पर हमले से भी आसान है. आखिर क्यों ईरान के लिए अमेरिकी ठिकानों को इजरायल की तुलना में निशाना बनाना आसान है? इस सवाल का जवाब छुपा है भू-राजनीतिक रणनीति, सैन्य जोखिमों और तकनीकी चुनौतियों में. आइए तथ्यों के आधार पर समझते हैं:
अल उदीद एयर बेस (कतर): यह मध्य-पूर्व का सबसे बड़ा अमेरिकी सैन्य अड्डा है जो 1996 में बना था. जहां 10,000 सैनिक और 100 से ज्यादा विमान तैनात हैं. यह ईरान से महज 300 किलोमीटर की दूरी पर है.
इराक में अमेरिकी ठिकाने: इराक में 2,500 से ज्यादा अमेरिकी सैनिक हैं, जो इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ रहे हैं. ये ठिकाने ईरान की सीमा से सटे हैं. इन्हें निशाना बनाना ईराक के लिए बेहद आसान है.
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सीरिया- अमेरिका ने सीरिया के उत्तर-पूर्व में एक सैन्य अड्डे पर लगभग 2,000 सैनिक तैनात किए हैं, जबकि इराक में 2,500 से अधिक सैनिक इस्लामिक स्टेट और स्थानीय विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रहे हैं.
जॉर्डन- यहां अमेरिकी सैनिक स्थानीय सेना के साथ संयुक्त अभ्यास करते हैं और उन्हें आधुनिक प्रशिक्षण देते हैं. मध्य-पूर्व में दो अमेरिकी विमानवाहक पोत भी तैनात हैं, जो हजारों सैनिकों और दर्जनों विमानों को ले जाने में सक्षम हैं.
नेवल सपोर्ट एक्टिविटी (बहरीन): अमेरिकी नौसेना का यह अड्डा फारस की खाड़ी में है, जहां 9,000 सैन्य कर्मी तैनात हैं. यह अमेरिकी नौसेना के पांचवें बेड़े का घर का माना जाता है जहां विमानों, टुकड़ियों और रिमोट साइट्स हैं.
अन्य ठिकाने- UAE, कुवैत, बहरीन और कतर में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने ईरान की मिसाइल रेंज में हैं.
प्रॉक्सी संगठनों का साथ- इनमें से कई ठिकानों के नजदीक ईरान समर्थित मिलिशिया (जैसे कातिब हिज्बुल्ला, हूती, PMF) पहले से मौजूद हैं. इससे ईरान के लिए इन बेस को टारगेट करना ज़्यादा आसान और प्रभावी हो जाता है.

भारी-भरकम सैनिकों की तैनाती- काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2024 तक मध्य-पूर्व में करीब 40,000 अमेरिकी सैनिक तैनात थे. कतर के साथ-साथ बहरीन, कुवैत, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में भी हजारों अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं.
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प्रॉक्सी वॉर का फायदा
ईरान खुद सीधा हमलावर नहीं बनता है बल्कि वह अपनी इन प्रॉक्सी सेनाओं के जरिए भी हमले करवाता है:
ईरान जानता है कि इजरायल से सीधे युद्ध लड़ना मुश्किल, महंगा और खतरनाक है. इसके उलट, अमेरिका के करीब बसे बेस कमज़ोर कड़ियां हैं, जहां वह सीमित लेकिन प्रतीकात्मक हमले करके दुनिया को संदेश दे सकता है- “हम अब भी खिलाड़ी हैं और अमेरिका को भी टक्कर दे सकते हैं.”