
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि ईरान और इजरायल ने 12 दिनों से चले आ रहे युद्ध को बंद करने की घोषणा की है. राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि दोनों देशों ने 'पूर्ण और संपूर्ण युद्धविराम' की घोषणा की है. दोनों देशों के बीच ये सीजफायर लागू हो गया है. इसी के साथ ही एक ऐसी जंग बंद हो गई है जिसके भड़कने पर दुनिया के कई हिस्से लड़ाई की चपेट में आ सकते थे.
ट्रंप ने इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों को बधाई देते हुए कहा कि इन दोनों देशों ने सहनशक्ति, साहस और बुद्धिमत्ता दिखाई और इस वजह से जो जंग कई वर्षों तक चल सकता था वो अब समाप्त हो गया है. दरअसल राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से घोषित ये संघर्ष विराम ईरान-इजरायल और स्वयं अमेरिका के लिए विन विन सिचुएशन लेकर आया है. क्योंकि यह सीजफायर हर पक्ष के रणनीतिक हितों को कुछ हद तक संबोधित करता है.
आइए इसे समझते हैं.
इजरायल के लिए कैसे विन विन सिचुएशन है युद्धविराम
परमाणु खतरे की चिंता से मुक्ति
ईरान पर हमले का इजरायल का प्राथमिक लक्ष्य ईरान की आणविक शक्ति को नष्ट करना था. इस जंग में इजरायल ने ईरान की परमाणु बम बनाने की शक्ति को गंभीर नुकसान पहुंचा. 13 जून से शुरू हुए हमलों में इजरायल ने फोर्डो, नतांज, और इस्फहान जैसे प्रमुख परमाणु स्थलों को निशाना बनाया. सैटेलाइट तस्वीरों और अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कई साल पीछे धकेल दिया.
पिछले रविवार को फोर्डो, नतांज, और इस्फहान परमाणु केंद्रों पर अमेरिकी बी-2 विमानों से बंकर बस्टर के हमलों ने इन परमाणु केंद्रों के इंफ्रास्ट्रक्चर को और भी तहस-नहस कर दिया.
यह इजरायल के लिए एक बड़ी रणनीतिक जीत है, क्योंकि इस हमले ने ईरान के परमाणु बम बनाने की क्षमता को तत्काल रूप से सीमित करता है.
पश्चिम एशिया में फिर से इजरायल का दबदबा
12 दिनों तक चले इस जंग से इजरायल को पश्चिम एशिया में अपनी सैन्य और नेतृत्व श्रेष्ठता फिर से साबित करने का मौका मिला, इजरायल ने अपने
स्टेल्थ F-35I विमानों, मिसाइल रक्षा प्रणालियों (आयरन डोम, एरो-3) से ईरान को गंभीर चोट पहुंचाई और इस बात को साबित किया कि अभी भी पश्चिम एशिया में उसकी ताकत का मुकाबला करना किसी के बस की बात नहीं है.
इस जंग में इजरायल के मिसाइल डिफेंस सिस्टम जबर्दस्त कारगर साबित हुए. इस वजह से इजरायल में जान की हानि कम हुई. इस जगं में जहां ईरान के लगभग 1000 लोगों की मौत हुई वहीं इजरायल में मरने वालों की संख्या 30 के आस पास ही रही.

हालांकि इजरायली डिफेंस सिस्टम ईरानी हमलों के सामने कई बार गच्चा खा गया. लेकिन इसकी सफलता का दर काफी उच्च रहा. ईरान ने इस जंग में 500 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, ड्रोन से हमले किए, इजरायली डिफेंस सिस्टम इससे होने वाले नुकसान को कम से कम करने में सफल रहा. इससे पश्चिम एशिया समेत पूरी दुनिया में इजरायल की रक्षा क्षमता की विश्वसनीयता बढ़ी.
इस जंग ने इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद को फिर कवर्ट ऑपरेशन का बॉस साबित कर दिया. 13 जून को ईरान पर शुरुआती हमले के बाद खबर आई कि इनमें से कई हमले इजरायल ने ईरान के अंदर से ही किए थे. निश्चित रूप से ये मोसाद की उच्च कोटि के कवर्ट ऑपरेशन का उदाहरण था. जहां इजरायल ने दुश्मन की जमीन पर ही अपना बेस बना लिया था.
नागरिक और आर्थिक स्थिरता
जैसे जैसे जंग आगे बढ़ रहा था. इस जंग में इजरायल की सामरिक और रणनीतिक कमियां भी सामने आ रही थीं. धीरे धीरे इजरायल के आसमान उतने सुरक्षित नहीं रह गए थे. ईरानी हाइपर सोनिक मिसाइल अब बेधड़क इजरायली एयरस्पेस में आकर हमले कर रहे थे. युद्ध के दौरान तेल अवीव, यरुशलम, और बेयर शेवा जैसे शहरों पर ईरानी मिसाइल हमलों (विशेष रूप से क्लस्टर बमों) से नागरिक हताहत हुए. कई इमारतें ध्वस्त हो गईं. इससे ये साबित हुआ कि इजरायल भी ईरानी हमले से पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है. ऐसी स्थिति में इजरायल ने सीजफायर पर सहमति जताकर
ईरान के इन हमलों से निजात पाया. जिससे इजरायल की अर्थव्यवस्था और नागरिक जीवन को और नुकसान से बचाया गया.
सीजफायर से ईरान को क्या फायदा
"रैली अराउंड द फ्लैग" का प्रभाव
इस युद्ध ने ईरान में "रैली अराउंड द फ्लैग" का प्रभाव पैदा किया. "रैली अराउंड द फ्लैग" का मतलब अंतरराष्ट्रीय संकट या युद्ध के समय किसी देश के नेताओं के प्रति जनता की स्वीकृति में बढ़ोतरी है. यह परिघटना बताती है कि नागरिक ऐसी घटनाओं के दौरान अपनी सरकार और उसकी नीतियों के पीछे एकजुट खड़े होते हैं और सरकार का समर्थन करते हैं.
ईरान में इजरायली हमले के दौरान ऐसा देखने को मिला. मुल्क में कई रैलियां हुई, लोग जंग में मारे गए जनाजे में शामिल हुए और अमेरिका और इजरायल के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया.
इससे सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के नेतृत्व को आंतरिक समर्थन मिला. सीजफायर ने इस समर्थन को बनाए रखने में मदद की, क्योंकि लंबा युद्ध ईरान की अर्थव्यवस्था और जनता के धैर्य को और कमजोर कर सकता था. इसी शुरुआत भी हो गई थी जब राजधानी तेहरान से लोग जंग से बचने के लिए निकलने लगे थे.
अधिक सैन्य और सिविलियन नुकसान से बच गया ईरान
अगर ईरान जंग के इस मोड पर सीजफायर के लिए सहमत नहीं होता तो उसे और भी नुकसान उठाना पड़ सकता था. अमेरिका और इजरायल के रुख से ये जाहिर हो गया था. ईरान का मिसाइल डिफेंस सिस्टम शुरू से ही पंगु रहा और यह न तो इजरायल के विमानों को रोक पा रहा था और न ही अमेरिका के बी-2 बॉम्बर विमानों को कोई चुनौती दे पाया.
जंग के शुरुआत के साथ ही ईरान का एयर स्पेस 'दुश्मन' के हाथों चला गया था. सीजफायर के बाद ईरान ने इस मोर्चे पर अपनी और जगहंसाई कराने से खुद को रोक लिया.
सैन्य शक्ति का प्रदर्शन
ईरान ने इजरायल और कतर में अमेरिकी अल उदेइद एयर बेस पर मिसाइल और ड्रोन हमले करके अपनी जवाबी क्षमता दिखाई. सीजफायर से ऐन पहले कतर में अमेरिकी एयर बेस पर हमला करके ईरान को अपना चेहरा बचाने का मौका मिल गया. हालााकि ये हमले सीमित थे लेकिन इससे ये साबित हुआ कि ईरानी मिसाइलों की शक्ति और पहुंच मध्य पूर्व तक है. अगर ऐन मौके पर सीजफायर न होता तो अमेरिकी एयरबेस पर हमले के बाद ईरान को तगड़े अमेरिकी जवाब का सामना करना पड़ सकता था.
सीजफायर ने ईरान को अपनी सैन्य और कूटनीतिक स्थिति को पुनर्गठित करने का मौका दिया, विशेष रूप से रूस और चीन जैसे सहयोगियों के साथ.
सीजफायर से अमेरिका क्यों खुश
ईरान और इजरायल के बीच सीजफायर करवाकर ट्रंप अपनी डिप्लोमेसी की एक और जीत का दावा दुनिया के सामने कर सकते हैं.
ट्रंप की कूटनीतिक जीत
ट्रंप भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जंगबंदी कराने का क्रेडिट बार बार लेते रहे हैं. ईरान और इजरायल के बीच की लड़ाई रुकवाकर ट्रंप ने इसे अपनी कामयाबियों में शामिल करवा लिया है.
इससे उनकी घरेलू और वैश्विक छवि को मजबूती मिली. कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी के साथ उनकी बातचीत और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ समन्वय ने उनकी मध्यस्थता की क्षमता को प्रदर्शित किया.
यह सीजफायर ट्रंप की नीतियों के अनुरूप है. क्योंकि ट्रंप दूसरे की किसी भी लड़ाई में सीधे अमेरिकी दखल से बचने की बात करते हैं. इस सीजफायर ने उनकी इस नीति को पोषित किया.
ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश
अमेरिका के लिए ईरान का परमाणु कार्यक्रम एक दीर्घकालिक खतरा रहा है. ईरान 'डेथ टू अमेरिका' का नारा देकर यूएस को भड़काता रहा है. अमेरिका को लंबे समय बाद ईरान की इन गीदड़ भभकियों का जवाब देने का मौका मिला.
सीजफायर से ऐन पहले अमेरिकी हमलों ने ईरान के परमाणु बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचाया. सैटेलाइट तस्वीरों में ईरान के फोर्डो न्यक्लियर प्लांट को देखकर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यहां ईरान को अपूरणीय क्षति हुई है. इस्फहान और नतांज में भी परमाणु संयंत्रों को गंभीर नुकसान हुआ है.
अपना मकसद हासिल करने के बाद अमेरिका ने तुरंत सीजफायर कर अपनी भूमिका सीमित रखी. क्योंकि लंबा युद्ध क्षेत्रीय अस्थिरता और अमेरिकी सैन्य संसाधनों की मांग बढ़ा सकता था.
क्षेत्रीय स्थिरता और तेल आपूर्ति
युद्ध के दौरान तेल कीमतों में उछाल ($100/बैरल से ऊपर) आया और इसने अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला. तुरंत सीजफायर ने तेल आपूर्ति को स्थिर करने में मदद की, क्योंकि सऊदी अरब और UAE जैसे सहयोगियों ने तेल उत्पादन बढ़ाने का आश्वासन दिया. यह अमेरिका के लिए आर्थिक और रणनीतिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण था. अगर युद्ध लंबा खींचता और ईरान स्ट्रेट ऑफ हार्मूज पर रोक लगा देता.
सीजफायर ने क्षेत्र में व्यापक युद्ध को रोका, जिससे अमेरिकी सैन्य अड्डों और हितों की रक्षा हुई.
ईरान-इजरायल का ये युद्ध तीनों पक्षों के लिए एक लंबा और विनाशकारी युद्ध होता. इससे इजरायल को नागरिक और आर्थिक नुकसान, ईरान को इससे बढ़कर शासन और अर्थव्यवस्था का जोखिम उठाना पड़ता. जबकि अमेरिका को क्षेत्रीय अस्थिरता और तेल संकट का खतरा था. अगर रूस या चीन इस युद्ध में कूदते तो इसका व्यापक असर हो सकता था. सीजफायर ने इस जोखिम को कम किया.
कतर की मध्यस्थता ने सभी पक्षों को 'चेहरा बचाने' और 'गर्व महसूस' का मौका दिया. इजरायल ने परमाणु खतरे को कम किया, ईरान ने जवाबी कार्रवाई कर अपनी ताकत दिखाई, और अमेरिका ने कूटनीतिक नेतृत्व का प्रदर्शन किया.