इस्लामिक दुनिया के नेता माने जाने वाले सऊदी अरब को लेकर ऐसी खबर आ रही है कि उसने इजरायल के साथ सभी तरह के संबंधों को खत्म करने को लेकर इस्लामिक-अरब शिखर सम्मेलन में पेश किए गए एक प्रस्ताव को पास होने से रोक दिया है. सऊदी अरब के साथ-साथ संयुक्त अरब अमीरात समेत 7 मुस्लिम देश इस प्रस्ताव के विरोध में खड़े हो गए जिसके बाद इजरायल के खिलाफ संपूर्ण बहिष्कार का प्रस्ताव पास नहीं हो पाया है.
प्रस्ताव में कहा गया कि इजरायल के साथ इस्लामिक देश सभी तरह के राजनयिक और आर्थिक संबंध खत्म कर लें और इजरायली उड़ानों को अरब हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल न करने दें. द टाइम्स ऑफ इजरायल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रस्ताव में कहा गया कि तेल उत्पादक मुस्लिम देश गाजा में युद्धविराम के लिए इजरायल को धमकी दें कि अगर वो युद्धविराम नहीं करता तो उसे तेल की आपूर्ति रोक दी जाएगी.
रिपोर्ट में अरब मामलों के विश्लेषक एहुद यारी के हवाले से कहा गया कि प्रस्ताव को सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), जॉर्डन, मिस्र, बहरीन, सूडान, मोरक्को, मॉरिटानिया और जिबूती ने अस्वीकार कर दिया.
हालांकि, 11 नवंबर को इस्लामिक-अरब शिखर सम्मेलन के बाद जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में ऐसे किसी प्रस्ताव को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई थी.
प्रस्ताव का विरोध करने वाले मुस्लिम देश क्या बोले?
शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले दो प्रतिनिधियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि अल्जीरिया ने इजरायल के साथ सभी संबंधों को खत्म करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया है. उन्होंने कहा कि अरब के कुछ देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है क्योंकि उन्होंने मौजूदा संकट के बीच इजरायल के साथ बातचीत जारी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया.
सऊदी अरब पहले 11 नवंबर को इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की बैठक और 12 नवंबर को अरब लीग शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला था. हालांकि, गाजा में मानवीय संकट को देखते हुए सऊदी ने 11 नवंबर को राजधानी रियाद में एक संयुक्त शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने का फैसला किया.
क्या बोले सऊदी क्राउन प्रिंस?
शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के दौरान सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ जो भी अपराध हो रहे हैं, उसके लिए इजरायल जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि संकट को समाप्त करने के लिए तत्काल युद्धविराम होना चाहिए.
शिखर सम्मेलन में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने भी हिस्सा लिया. यह पहली बार था जब किसी ईरानी राष्ट्राध्यक्ष ने सऊदी अरब की यात्रा की हो. सऊदी और ईरान के बीच चीन की मध्यस्थता की वजह से 8 महीने पहले शांति समझौता हुआ था जिसके बाद दोनों देशों ने अपने संबंधों को बहाल कर लिया है.
ईरानी राष्ट्रपति ने सम्मेलन के दौरान इस्लामिक देशों से कहा कि वो इजरायली सेना को 'आतंकवादी संगठन' घोषित करें.
सम्मेलन के दौरान तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने कहा कि इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का स्थायी समाधान खोजने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन बुलाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'गाजा में हमें कुछ घंटों के लिए विराम की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें एक स्थायी युद्धविराम की जरूरत है.'
इस्लामिक-अरब शिखर सम्मेलन में इस्लामिक सहयोग संगठन के सभी 57 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इस दौरान दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले मुस्लिम देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने कहा, 'इजरायल जिस तरह के मानवीय अत्याचार कर रहा है, उसे जिम्मेदार ठहराने के लिए ओआईसी को अपने सभी मोर्चों का इस्तेमाल करना चाहिए.'
संघर्ष की वजह से खटाई में पड़ गया सऊदी-इजरायल शांति समझौता
हमास ने 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमला कर दिया था जिसके बाद से इजरायल हमास नियंत्रित गाजा पर लगातार हमले कर रहा है. इस हमले से पहले ऐसी रिपोर्टें थीं कि सऊदी अरब जल्द ही इजरायल के साथ संबंध सामान्यीकरण समझौता करने वाला है. अमेरिका, इजरायल और सऊदी अरब के राजनयिकों ने अमेरिकी न्यूज वेबसाइट एबीसी को बताया था कि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, सभी ने एक समझौते के लिए समर्थन जताया है जिसके तहत सऊदी अरब कूटनीतिक रूप से इजरायल को मान्यता देगा.
राजनयिकों का कहना था कि अगर सऊदी अरब इजरायल को मान्यता देने पर सहमत हो गया तो अरब के बाकी देश भी इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य करने की कोशिश करेंगे. इजरायल के साथ अरब देशों के समझौतों से इजरायल और उसके पड़ोसियों के बीच 1948 से चली आ रही दशकों की शत्रुता खत्म हो जाएगी.
हालांकि, हमास और इजरायल के बीच चल रही लड़ाई के बाद से सऊदी अरब ने इजरायल के साथ चल रही शांति वार्ता को रोक दिया है. विश्लेषकों का कहना है कि भले ही सऊदी अरब ने मुस्लिम दुनिया से दबाव के बीच इजरायल के साथ शांति वार्ता को अभी के लिए रोक दिया है लेकिन भविष्य में यह समझौता तय है. सऊदी अरब ने यूएई के साथ मिलकर इजरायल के खिलाफ प्रस्ताव का विरोध किया जो इस बात का संकेत देता है कि इजरायल को लेकर उसके रुख में नरमी आई है.
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अब क्षेत्रीय झगड़ों में पड़कर देश के संसाधनों को बर्बाद होते नहीं देखना चाहते बल्कि उनका ध्यान अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट 'विजन 2030' की सफलता पर है.
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य सऊदी अरब की तेल आधारित अर्थव्यवस्था में बदलाव लाना है. सऊदी इस प्रोजेक्ट के जरिए विदेशी निवेश को तेजी से आकर्षित कर रहा है और अपनी रूढ़िवादी इस्लामिक छवि में भी सुधार कर रहा है. इस प्रोजेक्ट के जरिए सऊदी अपने पर्यटन को भी बढ़ावा दे रहा है. इसी क्रम में सऊदी ने ईरान और सीरिया के साथ अपने संबंधों को सामान्य किया है.