scorecardresearch
 

अगर खामेनेई शासन का अंत होता है तो कौन लेगा ईरान की सत्ता अपने हाथ में? ये 3 संगठन एक्टिव

अगर खामेनई शासन का अंत होता है तो ईरान की सत्ता किनके हाथ जाएगी, ये एक बड़ा सवाल है. हाल के तीन दशकों में वहां के मौलवी शासन में परिवर्तन का भी प्रयास किया है. ऐसा करने वाले तीन प्रमुख ईरानी समूहों की पहचान की गई है.

Advertisement
X
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई (रायटर्स - फाइल फोटो)
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई (रायटर्स - फाइल फोटो)

ईरान और इजरायल में संघर्ष बढ़ता ही जा रहा है.  एक के बाद एक ईरान की सेना और इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉप्स (आईआरजीसी) के कई बड़े सैन्य अधिकारी मारे जा रहे हैं. इसी बीच इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामीन नेतन्याहू ने ईरान की जनता को वहां की शासन को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया है.

दूसरी ओर ईरान के सर्वोच्च नेता 85 वर्षीय अली खामेनेई, जो खराब स्वास्थ्य से पीड़ित हैं. उनकी नेतृत्व में इस्लामी शासन कई गंभीर समस्याओं से घिरा हुआ है. वहां की बढ़ती मुद्रास्फीति, मानवाधिकार और महिला अधिकार हनन के मामलों जैसे घरेलू परेशानियों सहित इजरायल के हालिया आक्रमण और परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका के आरोपों जैसी बाहरी दिक्कतों का भी सामना खामेनेई शासन को करना पड़ रहा है. 

ऐसे हालात में अगर खामेनई शासन का अंत होता है तो ईरान की सत्ता किनके हाथ जाएगी, ये एक बड़ा सवाल है. हाल के तीन दशकों में वहां के मौलवी शासन में परिवर्तन का भी प्रयास किया है. ऐसा करने वाले तीन प्रमुख ईरानी समूहों की पहचान की गई है. 

मोजाहिदीन-ए-खल्क या पीपुल्स मुजाहिदीन
पहला संगठनों में एक है - पीपुल्स मुजाहिदीन, जिसे मोजाहिदीन-ए-खल्क (एमईके) या पीपुल्स मोजाहिदीन ऑर्गनाइजेशन ऑफ ईरान (पीएमओआई) के नाम से भी जाना जाता है. इसकी शुरुआत 1960 के दशक में एक इस्लामिस्ट-मार्क्सवादी छात्र मिलिशिया के रूप में हुई थी. इसने 1979 की ईरानी क्रांति के दौरान शाह को गिराने में निर्णायक भूमिका निभाई थी.

Advertisement

MEK के गुरिल्ला झड़प ने खुमैनी के लौटने का बनाया रास्ता
पूंजीवाद विरोधी, साम्राज्यवाद विरोधी और अमेरिका विरोधी, MEK (एमईके) लड़ाकों ने 1970 के दशक में आत्मघाती झड़पों में शाह के पुलिस के कई जवानों को मार डाला था. इसी समूह ने अमेरिकी स्वामित्व वाले होटलों, एयरलाइनों और तेल कंपनियों को निशाना बनाया और ईरान में छह अमेरिकियों की मौत के लिए जिम्मेदार था. ऐसे ही हमलों और झड़पों ने निर्वासित अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी की वापसी का मार्ग प्रशस्त किया. बाद में खुमैनी ने एमईके को ईरान को मौलवियों के नियंत्रण वाले इस्लामी गणराज्य में बदलने की योजना के लिए एक गंभीर खतरा मानने लगा. 

MEK को ही खुमौनी ने रास्ते से हटाया
गुरिल्ला युद्धों में निपुण और सशस्त्र होने के बावजूद एमईके खुमौनी के संगठन का मुकाबला नहीं कर पाया. खुमैनी ने सुरक्षा सेवाओं, न्यायालयों और मीडिया का इस्तेमाल करके MEK के राजनीतिक समर्थन को खत्म कर दिया और फिर उसे पूरी तरह से कुचल दिया. जब उसने जवाबी कार्रवाई की और इस्लामिक गणराज्य के 70 से अधिक वरिष्ठ नेताओं - जिनमें राष्ट्रपति और ईरान के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल थे - को दुस्साहसिक बम हमलों में मार डाला, तो खोमैनी ने MEK के सदस्यों और समर्थकों पर हिंसक कार्रवाई का आदेश दिया और बचे हुए लोग देश छोड़कर भाग गए.

Advertisement

अब कहां हैं MEK के सदस्य 
2009 में, ब्रिटेन ने MEK को आतंकवादी समूह की सूची से हटा दिया. ओबामा प्रशासन ने भी 2012 में इस समूह को अमेरिकी आतंकवादी सूची से हटा दिया और बाद में इसे अल्बानिया में स्थानांतरित करने के लिए बातचीत में मदद की. हालांकि, अल्बानिया में, MEK अपने संगठन के अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रहा है. क्योंकि इसके कई सदस्यों नेदलबदल करना शुरू कर दिया है. कोई भी रणनीतिक विश्लेषक यह नहीं सोचता कि MEK के पास इस्लामी गणराज्य को उखाड़ फेंकने के लिए ईरान के भीतर क्षमता या समर्थन है.

दूसरा समूह है ग्रीन मूवमेंट
ग्रीन मूवमेंट 2009 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान उभरा था. यह कट्टरपंथी महमूद अहमदीनेजाद के धोखाधड़ी से दोबारा चुने जाने के साथ समाप्त भी हो गया.  शांतिपूर्ण प्रदर्शनों और लोकतांत्रिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने वाले इस आंदोलन का उद्देश्य ईरानी शासन को चुनौती देना और अधिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की वकालत करना था.

ऐसे फीका पड़ गया आंदोलन
ग्रीन मूवमेंट बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों और सविनय अवज्ञा के साथ 14 फरवरी 2010 तक तेजी से आगे बढ़ता रहा. तब उभरती अरब क्रांतियों के समर्थन में रैली आयोजित करने के इसके प्रयास को क्रूरतापूर्वक दबा दिया गया. इसके नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. लेकिन मीर हुसैन मौसवी, जिन्हें आंदोलन के प्रतीकात्मक नेता के रूप में जाना जाता था, बहादुरी से अपनी जमीन पर डटे रहे.बाद में उन्हें नजरबंद कर दिया गया और यह आंदोलन भी फीका पड़ गया. इसके कुछ समर्थकों ने कहा कि उन्हें इस्लामी गणराज्य की संस्थागत नींव में विश्वास है और वे केवल लोकतांत्रिक सुधार चाहते हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वे पश्चिमी शैली के लोकतंत्र की वकालत नहीं कर रहे हैं और ईरान की घरेलू राजनीति में पश्चिमी हस्तक्षेप को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे.

Advertisement

तीसरा विकल्प पूर्व शाह के बेटे और उनके समर्थक
तीसरे हैं, 1979 की क्रांति के दौरान देश छोड़कर भागे राजतंत्रवादी हैं.  उनमें से एक ईरान के पूर्व शाह के बेटे रजा पहलवी हैं. वह वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हैं और सैद्धांतिक रूप से अपने पिता की गद्दी वापस पाने के लिए ईरान लौट सकते हैं.जब डोनाल्ड ट्रम्प ने 2016 में पहली बार राष्ट्रपति पद जीता था, तो शाह ने उनसे ईरान में धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों के साथ जुड़ने को कहा था.पिछले वर्ष ट्रम्प के दूसरी बार चुनाव जीतने के तुरंत बाद, पहलवी ने न्यूज़वीक पत्रिका को एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें उन्होंने एक लोकतांत्रिक ईरान की परिकल्पना प्रस्तुत की थी, जो पश्चिम के साथ संबंधों से समृद्ध होगा, इजरायल के साथ शांतिपूर्ण रहेगा तथा अपने पड़ोसियों के साथ सद्भाव बनाए रखेगा.

यह भी पढ़ें: ईरान की सेना से कैसे अलग है IRGC? हिजबुल्ला और हमास के लड़ाकों की तरह होती है ट्रेनिंग, ये है इनका काम

रजा पहलवी ने इजरायल के हमले का किया समर्थन
अब इजरायल के हमले के बाद एक बार फिर रजा पहलवी ने वापस लौटने की बात कही है. उन्होंने इजरायल के हमले का समर्थन किया है और कहा कि ईरान में अभी भी कई ऐसे लोग हैं, जो इजरायल की इस कार्रवाई का समर्थन करते हैं और खानमेई के शासन को उखाड़ फेंकने के इच्छुक हैं. उन्होंने कहा कि अब हमारा समय आ गया है. 40 साल से हम ईरान के लिए जंग लड़ रहे हैं. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement