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बीजेपी-सपा-कांग्रेस-बसपा... यूपी में 10 सीटों के उपचुनाव में किसका क्या दांव पर? 7 points में समझिए

यूपी की 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव सत्ताधारी बीजेपी से लेकर विपक्षी समाजवादी पार्टी के लिए साख का सवाल बन गए हैं. इन दोनों दलों के साथ ही उपचुनाव में कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और आजाद समाज पार्टी, किस दल का क्या दांव पर है?

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अखिलेश यादव और सीएम योगी (फाइल फोटो)
अखिलेश यादव और सीएम योगी (फाइल फोटो)

यूपी की 10 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं. उपचुनाव के लिए चुनाव कार्यक्रम का ऐलान भी नहीं हुआ है कि सियासी तापमान बढ़ने लगा है. सूबे की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर से खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मोर्चा संभाल रखा है तो वहीं अखिलेश यादव भी एक्टिव मोड में आ गए हैं.

समाजवादी पार्टी (सपा) ने हरियाणा चुनाव नतीजे आने के एक दिन बाद अपनी ही धुन में 10 में से छह सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया तो वहीं कांग्रेस के सुर नरम नजर आए. मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और एडवोकेट चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी (एएसपी) भी उपचुनाव में उम्मीदवार उतारने को तैयार हैं. 10 सीटों के उपचुनाव में किस दल का क्या दांव पर लगा है?

1- साख

यूपी की 10 सीटों के उपचुनाव में बीजेपी से लेकर सपा और बसपा तक, राजनीतिक दलों की साख दांव पर है. हालिया लोकसभा चुनाव में सपा 37 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी तो वहीं बीजेपी का कारवां 33 सीटों पर ही रुक गया था. ऐसे में सपा के सामने यह साबित करने की चुनौती है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे तुक्का नहीं थे. वहीं, बीजेपी की रणनीति लोकसभा चुनाव में मिली हार से उबर उपचुनावों में इसका बदला लेने की है. यही वजह है कि खुद सीएम योगी उपचुनाव वाली सीटों पर रैलियां कर रहे हैं, बड़े नेता और यूपी सरकार के मंत्री लगातार इन सीटों के दौरे कर रहे हैं.

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2- जननेता कौन

इन उपचुनावों में एक लड़ाई जननेता यानी जनता के बीच लोकप्रियता के मोर्चे पर भी है. तमाम सर्वे में देश के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए ये उपचुनाव खुद की स्वीकार्यता और लोकप्रियता के लिटमस टेस्ट की तरह भी होंगे. वहीं, सपा की कोशिश उपचुनावों में अधिक सीटें जीतकर अखिलेश यादव के पक्ष में नैरेटिव सेट करने की है. बसपा के सामने हालिया लोकसभा चुनाव नतीजों में शून्य पर सिमटने के बाद यह साबित करने की चुनौती है कि मायावती यूपी की सियासत में अब भी प्रासंगिक हैं.

3- वोट बेस

बीजेपी से लेकर सपा, बसपा और एएसपी तक, हर दल का टेस्ट वोट बेस के मोर्चे पर भी होगा. सपा उपचुनावों में भी पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) के अपने समीकरण को निरंतरता देने की कोशिश में है. छह सीटों के लिए घोषित उम्मीदवारों की लिस्ट पर भी इसकी छाप स्पष्ट दिखाई देती है. वहीं, बीजेपी के लिए भी यह गैर यादव ओबीसी और सामान्य के साथ गैर जाटव दलित वोट के समीकरण का टेस्ट होगा. मायावती की पार्टी दलित-मुस्लिम समीकरण फेल होने के बाद सोशल इंजीनियरिंग के नए फॉर्मूले की तलाश में होगी.

4- असली नकली, अस्तित्व की लड़ाई

यूपी उपचुनाव में एक लड़ाई असली और नकली की भी है. बसपा खुद को अंबेडकरवादी आंदोलन की सच्ची पार्टी बता रही है तो वहीं एडवोकेट चंद्रशेखर की अगुवाई वाली आजाद समाज पार्टी भी दलित वोटबैंक पर ही दावा करती है. उपचुनाव से अमूमन दूर रहने वाली मायावती की पार्टी ने इस बार चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से काफी पहले ही उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया है तो इसके पीछे बसपा और एएसपी के बीच असली-नकली दलित पार्टी की लड़ाई को भी वजह बताया जा रहा है. कांग्रेस के लिए ये उपचुनाव आम चुनाव के नतीजों से मिले बूस्टर के बाद अस्तित्व साबित करने की लड़ाई भी होंगे.

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5- संगठन का टेस्ट

लोकसभा चुनाव नतीजों में बीजेपी, सपा से कम सीटें जीती थी. इसके लिए पीएम मोदी के चार सौ पार वाले नारे और संगठन की शिथिलता को जिम्मेदार बताया गया. उपचुनावों में बीजेपी के सामने संगठन को एक्टिव मोड में रखने, अधिक से अधिक मतदाताओं को घर से बूथ तक लाने और वोट पोल कराने की चुनौती भी होगी. बीजेपी के साथ ही सपा और बसपा जैसी पार्टियों के लिए भी ये उपचुनाव संगठन की शक्ति आंकने का अच्छा मौका माने जा रहे हैं.

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6- परसेप्शन की लड़ाई

यूपी की सियासत वर्षों तक अयोध्या के राम मंदिर मुद्दे के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आई है. राम मंदिर निर्माण के बावजूद हालिया लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उस फैजाबाद सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा था जिसमें अयोध्या नगरी आती है. सपा फैजाबाद की जीत के बाद से ही राम राजनीति की पिच पर बीजेपी को घेरने की कोशिश में जुटी है. फैजाबाद की हार के बाद परसेप्शन की लड़ाई में पिछड़ी बीजेपी की कोशिश अब सांसद अवधेश प्रसाद के इस्तीफे से रिक्त हुई मिल्कीपुर सीट जीतकर परसेप्शन की लड़ाई में एज लेने की है.

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7- मोमेंटम

लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित सपा जहां जीत की लय बरकरार रखने की कोशिश में है. वहीं, बीजेपी जीत का मोमेंटम वापस पाने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है. खुद सीएम योगी ने मिल्कीपुर सीट को अपनी साख का सवाल बना लिया है. बसपा की कोशिश भी अपना जनाधार खिसकने की रफ्तार पर ब्रेक लगा छोड़ गए वोटर्स को फिर से अपने पाले में लाने की है. एडवोकेट चंद्रशेखर भी यह साबित करने की कवायद में जुटे हैं कि चौतरफा चुनौतियों के बावजूद नगीना लोकसभा सीट से उनकी जीत कोई तुक्का नहीं थी.

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