एक शख्स स्विट्जरलैंड में शर्टलेस होकर हरियाणवी गाने पर डांस करता है. बुर्ज खलीफा के स्काईडेक पर एक भारतीय गुजराती गाने "Chogada" पर नाचता है, जिससे दूसरे टूरिस्ट हैरान होकर दूर चले जाते हैं. गोवा के फोंटेनहास में सेल्फी लेने वाले टूरिस्ट स्थानीय लोगों की शांति भंग करते हैं. यही है फूहड़पन, जिसे कुछ लोग दिखा रहे हैं और दूसरों के पर्यटन का मजा खराब कर रहे हैं. इस असभ्य व्यवहार की वजह से दूसरे टूरिस्टों को भी अब नकारात्मक प्रतिक्रिया झेलनी पड़ रही है.
स्विट्जरलैंड की बर्फ में बिना शर्ट के 'मेरे बल्का की मां तन्ने आई लव यू' गाने पर नाचने वाला मशहूर इंफ्लुएंसर राजा गुज्जर है. हमें यह पता है क्योंकि यह डांस वीडियो गर्व के साथ यूट्यूब पर अपलोड किया गया. फुकेट में, एक भारतीय टूरिस्ट सेल्फी लेने के लिए बाघ के पिंजरे में घुस जाता है और जब बाघ उसकी ओर दौड़ता है तो चीखने लगता है. ये पल वायरल हो जाते हैं. ऐसा नहीं कि ये दुर्लभ हैं, बल्कि ये अब आम बात हो गई है.
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चाहे मशहूर इंफ्लुएंसर हो, व्लॉगर बनने की चाह रखने वाला हो या दोस्तों का ग्रुप, असभ्य व्यवहार यानी "हम तो ऐसे ही हैं" का रवैया भारत को शर्मिंदगी और बदनामी दिला रहा है. ऐसे टूरिस्ट स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए परेशानी का सबब हैं. यह भी अर्थव्यवस्था का हिस्सा है. पिछली पीढ़ियों ने बड़ी मेहनत से धन और सम्मान कमाया था. परिवार के साथ छुट्टियां मनाना एक विशेषाधिकार था. लोग स्थानीय संस्कृति में रम जाते थे, स्थानीय लोगों का सम्मान करते थे, उस समय पैसा शिक्षा के बाद आता था.
90 के दशक में उदारीकरण के बाद, सदी की शुरुआत तक चीजें बदल गईं. अब बहुत से नए अमीर लोग हैं, जिन्होंने बिना शिक्षा के ही बहुत पैसा कमा लिया है. असभ्य व्यवहार का मतलब गांव के लोगों से नहीं, बल्कि उस बदतमीजी से है, जो ढेर सारे पैसे और कम शिक्षा के साथ आती है. शोर मचाने वाले गांव के लोग नहीं, बल्कि एसयूवी चलाने वाले शहरवासी हैं, जो पर्यटक स्थलों पर हंगामा करते हैं.
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ये टूरिस्ट महिलाओं, बाकी पर्यटकों और स्थानीय लोगों को डराते हैं, इन्हें लगता है कि पैसे खर्च करने की वजह से वो जगह के मालिक हैं, और स्थानीय लोगों और उनके नियमों की कोई परवाह नहीं करते. ये सिर्फ बीयर की बोतलें, कचरा और परेशान स्थानीय लोग छोड़कर जाते हैं. अगर इस असभ्य व्यवहार को नहीं रोका गया, तो पर्यटकों का स्वागत सिर्फ ठंडी नजरों और गालियों से होगा. गोवा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में इसके संकेत पहले ही दिख रहे हैं.
महिला टूरिस्टों और स्थानीय लोगों के लिए असभ्य व्यवहार एक बुरा सपना गोवा से वियतनाम तक, भारतीय पुरुष पर्यटकों द्वारा उत्पीड़न की खबरें बढ़ रही हैं, जो असभ्य व्यवहार की गंभीर समस्या को दिखाती हैं. महिलाओं का पीछा करना, उनकी वीडियो बनाना, छेड़खानी करना गोवा के अरंबोल में उत्पीड़न आम हो गया है.
मई 2025 की हेराल्ड गोवा की रिपोर्ट बताती है कि विदेशी महिलाओं का पीछा किया गया, सनबाथिंग के दौरान उनकी वीडियो बनाई गई, और उनका पीछा किया गया. पुलिस का कहना है कि हर पीक सीजन में शिकायतें बढ़ जाती हैं.
नए साल की पूर्व संध्या पर, एक जर्मन रिसॉर्ट मालिक ने बताया कि कई महिलाओं को पुरुषों के ग्रुप ने परेशान किया. उसी हफ्ते, महिलाओं के हॉस्टल में सो रही टूरिस्ट महिलाओं के साथ छेड़खानी हुई. भारत के बाहर भी ये असभ्य व्यवहार करने वाले लोग कुछ कम नहीं हैं. फरवरी 2025 में थाईलैंड के पटाया से एक रेडिट पोस्ट में बताया गया कि दो भारतीय पुरुषों ने एक थाई महिला के साथ छेड़खानी की. एक ने उसे गलत तरीके से छुआ, दूसरा वीडियो बनाता रहा और जब रोकने की कोशिश की गई तो दोनों आक्रामक हो गए.
लोगों ने बताया कि स्विमिंग पूल और पब्लिक जगहों पर उन्हें घूरा जाता है और घेर लिया जाता है. वियतनाम में, एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें भारतीय पुरुष एक पारंपरिक पोशाक वाली महिला के साथ सेल्फी लेने के लिए कतार में खड़े थे, जबकि वह साफ तौर पर असहज थी. टूरिस्टों ने ये भी बताया कि पुरुष बच्चों, वेट्रेस, यहां तक कि अजनबियों को जबरदस्ती फोटो में खींच लेते हैं. हनोई के नाइट क्लबों में, बड़े भारतीय समूहों का शोर मचाने वाला और दखल देने वाला व्यवहार अब खतरे की घंटी बन गया है.
असभ्य व्यवहार का भूगोल से कोई लेना-देना नहीं, ये एक रवैया है, ये जोर-जोर से चिल्लाने, नियम तोड़ने और माहौल की परवाह न करने की बात है. ये हक जताने का अंदाज है, जो पैसा, कैमरा और बिना किसी जागरूकता के साथ दिखाया जाता है.
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जून 2025 की शुरुआत में, यूरोप में 40 से ज्यादा भारतीय टूरिस्टों का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वो पब्लिक सड़क पर गरबा म्यूजिक बजाकर नाच रहे थे.
जो लोग इसे सांस्कृतिक गर्व कहते थे, कई लोगों ने इसे बाधा डालने वाला हक जताना माना, जो स्थानीय कला को दबा रहा था और सार्वजनिक जगह का उल्लंघन कर रहा था. थाईलैंड के पटाया बीच पर, अधिकारियों ने हाल ही में भारतीय पर्यटकों को सार्वजनिक जगहों पर पेशाब करने और कचरे के ढेर छोड़ने के लिए रोका, वो भी परिवारों और अन्य बीच पर मौजूद लोगों के सामने. स्वच्छता और बुनियादी नागरिक व्यवहार की अनदेखी ने स्थानीय लोगों और साथी पर्यटकों से शिकायतों की बाढ़ ला दी है.
हिमाचल प्रदेश में, वीडियो में पर्यटक खूबसूरत झरनों के पास शराब पीते और कचरा फेंकते दिखे. रोहतांग पास के करीब सड़क पर कार के ऑडियो सिस्टम से तेज हरियाणवी और पंजाबी गाने बजाकर नाचना आम बात है, सड़क पर शराब पीना, कार की डिक्की को बार में बदलना, पहाड़ों में ये भी आम नजारा है. बीयर की बोतलें, खाने के रैपर और प्लास्टिक कचरा अब हिमाचल के जंगली रास्तों और नदी किनारों पर बिखरा पड़ा रहता है.
पर्यावरण अधिकारियों को अब गश्त बढ़ानी पड़ रही है, न कि वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए, बल्कि बेकाबू पर्यटकों को संभालने के लिए. उत्तराखंड के पर्यटक स्थल जैसे नैनीताल, मसूरी और देहरादून कचरे की बाढ़ का सामना कर रहे हैं.14 दिसंबर 2024 को, नैनीताल में पर्यटकों को केक के रैपर घाटी में फेंकते हुए फिल्माया गया. जब स्थानीय लोगों ने विनम्रता से कचरे को डिब्बे में डालने को कहा, तो उन्होंने जवाब दिया- अपने काम से काम रखो. ये वीडियो वायरल हुआ, न कि इसलिए कि ये चौंकाने वाला था, बल्कि इसलिए कि ऐसा व्यवहार अब आम हो गया है.
मसूरी और देहरादून में, सोशल मीडिया वाले पर्यटक अब नदी किनारों और झरनों के आसपास भीड़ लगाते हैं, पौधों को रौंदते हैं, पवित्र जगहों को नुकसान पहुंचाते हैं और प्लास्टिक के कप से लेकर कैमरा गियर तक सब कुछ छोड़ जाते हैं. स्थानीय गाइड्स कहते हैं कि इंफ्लुएंसर को काबू करना बंदरों से भी मुश्किल है. कम से कम बंदर व्लॉग तो नहीं करते.
गोवा के फोंटेनहास में, जो अपनी 18वीं सदी की पुर्तगाली विला और इमारतों के लिए मशहूर है, स्थानीय लोग कहते हैं कि वे घेराबंदी में जी रहे हैं. टूरिस्ट गेट पर लटकते हैं, बरामदों पर चढ़ते हैं, और बिना पूछे निजी घरों के सामने रील्स शूट करते हैं. एक स्थानीय ने, जो खिड़की के बाहर रिंग लाइट्स की चमक से तंग आ चुके थे, एक मीडिया रिपोर्ट में कहा, "हम सजावट की चीजें नहीं हैं."
ताजमहल में, गाइड्स अब विदेशियों को बिना इजाजत ली गई सेल्फी के बारे में चेतावनी देते हैं. भारतीय पर्यटक अक्सर बहुत करीब आ जाते हैं, बिना सहमति के फोटो खींचते हैं और मना करने पर भी अनदेखा करते हैं. मंगलौर में एक लिथुआनियाई महिला ने कुछ पुरुषों का वीडियो बनाया, जो समुद्र तट पर आराम करते वक्त उसकी रिकॉर्डिंग कर रहे थे. जब उनका सामना किया गया, तभी वे भागे. इसे लोगों ने सोशल मीडिया पर शेयर किया. कोवलम और गोकर्ण में भी ऐसी घटनाएं आम हैं, जहां अब अकेली महिलाएं सुनसान समुद्र तटों पर जाने से बचती हैं.
लोकल लोग, जो टूरिज्म पर निर्भर हैं, ऐसा व्यवहार नहीं करते. ये ज्यादातर असभ्य पर्यटक और बाहर से आए लोग हैं. ट्रेन और हवाई जहाज में भी कोई राहत नहीं. एक डच इंफ्लुएंसर ने दिल्ली-आगरा ट्रेन में बताया कि एक शख्स ने उसके मना करने के बावजूद बार-बार सेल्फी ली.
वियतनाम की घटना में, भारतीय पुरुषों को एक स्थानीय महिला के साथ, जो पारंपरिक पोशाक में थी, सेल्फी लेने के लिए कतार में खड़े देखा गया. वह सख्त और असहज दिख रही थी. वे हंसे, पोज़ दिए और चले गए. इस क्लिप ने ऑनलाइन गुस्सा भड़का दिया. ऐसे कई मामले हैं, जहां स्थानीय महिलाओं, बच्चों, और यहां तक कि बुजुर्गों को उनकी मर्जी के बिना फोटो में खींच लिया जाता है.
गोवा में कचरा फैलाना एक संकट बन गया है. 2025 के पहले चार महीनों में, गोमांतक टाइम्स, एक गोवा आधारित अखबार, के अनुसार 1,000 से ज्यादा पर्यटक-संबंधी उल्लंघन दर्ज किए गए, जिनमें से आधे से ज्यादा सार्वजनिक जगहों पर कचरा फैलाने की वजह से थे. बीयर के डिब्बे, खाने के रैपर और प्लास्टिक बैग अब समुद्र तटों, बाजारों और धरोहर स्थलों पर बिखरे पड़े हैं. फोंटेनहास में, स्थानीय लोग दिन की शुरुआत अजनबियों के इंस्टाग्राम शूट के बाद सफाई करके करते हैं. बारोट वैली के लपास वॉटरफॉल का एक वीडियो राष्ट्रीय गुस्सा भड़काने वाला था.
क्रिएटर सौम्या पाठक द्वारा शूट किए गए इस क्लिप में पर्यटकों ने खूबसूरत जगह को शोरगुल और कचरे से भरे पिकनिक जोन में बदल दिया. ये पैटर्न हिमाचल में हर जगह दिखता है. शांत जगहों को खुले बार में बदला जाता है, और फिर कचरे के ढेर की तरह छोड़ दिया जाता है.
मनाली और कुल्लू में भी बर्बादी का यही आलम है, ऑफ-सीजन में रोज 10 टन कचरा निकलता है, लेकिन पीक सीजन में ये 50 टन तक पहुंच जाता है, जो कचरा प्रबंधन सिस्टम के बस से बाहर है, ऐसा द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट कहती है. बाकी कचरा नदियों में बह जाता है, गैरकानूनी तरीके से जलाया जाता है, या पहाड़ियों पर सड़ता रहता है. पहले साफ पानी अब प्लास्टिक, स्टायरोफोम और केमिकल्स से भरा है.
न सिर्फ नदियां और झरने, भारत के समुद्र तटों पर प्लास्टिक का स्तर वैश्विक औसत से तीन गुना ज़्यादा है. तीर्थ स्थल भी इस बुरे हाल से नहीं बचे. ऋषिकेश में, 2024 में गंगा के किनारे बिखरी शराब की बोतलों की तस्वीर वायरल हुई. स्थानीय लोग कहते हैं, ये अब आम बात है. टूरिस्टों को स्थानीय लोगों का गुस्सा झेलना पड़ रहा है. पर्यटन कई लोगों के लिए जीविका का साधन है, और पर्यटकों का स्वागत जोड़कर हाथों से किया जाता है. ये रोज़गार और विकास का वादा करता है. भारत में, जहां "अतिथि देवो भव" का नारा है, ये सिर्फ व्यापार की बात नहीं.
लेकिन असभ्य व्यवहार की वजह से, भारत के शहरों और घाटियों ने जो गर्मजोशी से दरवाज़े खोले थे, वो अब बंद हो रहे हैं.
गोवा से ऋषिकेश तक, गुस्सा बढ़ रहा है. स्थानीय लोग पोस्ट कर रहे हैं, विरोध कर रहे हैं, और गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें इंसान के तौर पर देखा जाए, जिनके अपने घर और ज़िंदगी हैं.
गोवा के फोंटेनहास में, इंस्टाग्रामर गलियों में भीड़ लगाते हैं, घरों के बाहर पोज़ देते हैं. एक स्थानीय ने कहा, "ये हमारी निजता में दखल है, उद्यमी एलिशा मारिया लोबो ने एक वायरल पोस्ट में साफ कहा- "यहां का गोअन बोल रहा है, हमें पर्यटक नहीं चाहिए. उन्होंने नशे में झगड़े, शोर और बढ़ते असुरक्षा के भाव का ज़िक्र किया. "हमें ऐसे लोग चाहिए जो हमारी विरासत की कद्र करें, न कि सस्ता मजा और शराब.
हिमाचल प्रदेश में भी यही गुस्सा है- बारोट वैली में पर्यटकों द्वारा कचरा फैलाने का वीडियो देखकर ऑनलाइन गुस्से की बाढ़ आ गई. यूजर्स ने नियमों और भारी जुर्माने की मांग की. एक ने लिखा, "टूरिज्म ज़रूरी है, हां- लेकिन किस कीमत पर? कुछ बचेगा ही नहीं". लापरवाह ड्राइविंग और खतरनाक ओवरटेकिंग ने छोटे शहरों की सड़कों को खतरनाक बना दिया. हिमाचल और उत्तराखंड में, स्थानीय लोग अब डीएल, एचआर, यूपी नंबर प्लेट वाली गाड़ियों वालों की मदद करने से इनकार कर रहे हैं. उनके छोटे-छोटे जवाब और सख्त चेहरे कहते हैं- तुम्हारा स्वागत नहीं. ऐसा इसलिए, क्योंकि दिल्ली-एनसीआर के असभ्य व्यवहार वाले लोग पहले वहां जा चुके हैं और अपनी खराब छवि छोड़ आए हैं.
ऋषिकेश जो गंगा और योग के लिए जाना जाता है वहां भी गहरी निराशा है. एक रेडिट यूज़र ने कहा, "कैंप के बाद मां गंगा में शराब की बोतलें फेंकना अब आम है". दूसरे ने लिखा- "राफ्टिंग ने बाढ़ खोल दी, अब तेज़ म्यूज़िक से जानवर भी परेशान हैं."
केरल में, मज़ाक में लोग वो कह रहे हैं जो कई महसूस करते हैं. एक वायरल कमेंट था- "स्थानीय लोग काम पर जाते हैं, और पर्यटक देहाती आकर्षण के नाम पर केले के पत्तों और पंखे वाले कमरों के लिए पैसे देते हैं."
मज़ाक के पीछे हकीकत है. लोगों को महंगी चीज़ों, भीड़ और पृष्ठभूमि बनने की मजबूरी से जूझना पड़ रहा है. हर जगह यही भावना है. हमने इसके लिए साइन अप नहीं किया था. मेहमाननवाज़ी का मजा अब थकान में बदल गया है. गुस्सा अब एक स्वर में है, जो सभ्य व्यवहार, नियम और राहत की मांग कर रहा है. अगर पर्यटन को फलना-फूलना है, तो कुछ लोगों को नियम मानना और सुनना सीखना होगा. क्योंकि "हम तो ऐसे ही हैं" वाला असभ्य रवैया पर्यटन को मार रहा है.
(यह लेख मूल रूप से Indiatoday.in पर प्रकाशित हुआ था, जिसे प्रियांजली नारायण ने लिखा है)