यूरेनियम (Uranium) एक भारी, चांदी-सफेद रंग की रेडियोधर्मी धातु है, जो प्राकृतिक रूप से पृथ्वी की सतह पर पाई जाती है. यह न सिर्फ वैज्ञानिकों और ऊर्जा विशेषज्ञों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति, सुरक्षा और तकनीकी विकास में भी इसकी भूमिका अहम है.
यूरेनियम की खोज वर्ष 1789 में जर्मन रसायनशास्त्री मार्टिन क्लैप्रोथ ने की थी. उन्होंने इसे 'यूरेनियम' नाम ग्रह यूरेनस के नाम पर रखा. लेकिन इस धातु की असली शक्ति का पता 20वीं सदी में चला, जब वैज्ञानिकों ने यह जाना कि यूरेनियम विखंडन (nuclear fission) के जरिए विशाल मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है.
बात इसके भौतिक गुण की करें तो इसमें परमाणु संख्या- 92, परमाणु भार- लगभग 238, प्राकृतिक अवस्था में आइसोटोप- U-238 (सबसे अधिक), U-235 (ऊर्जा उत्पादन के लिए जरूरी), U-234 होता है. यह एक रेडियोधर्मी तत्व है, यानी यह समय के साथ विघटित होता है और विकिरण उत्सर्जित करता है.
यूरेनियम-235 का उपयोग नाभिकीय विद्युत संयंत्रों (Nuclear Power Plants) में किया जाता है. इससे बहुत कम मात्रा में ईंधन से बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है. यूरेनियम का अत्यधिक संवर्धन (enrichment) कर उसे परमाणु बमों में भी प्रयोग किया जाता है. इसी कारण इसका वैश्विक स्तर पर संवेदनशील उपयोग होता है.
कुछ यूरेनियम उत्पादों का उपयोग कैंसर की रेडियोथेरेपी जैसी चिकित्सीय प्रक्रियाओं में भी किया जाता है.
यूरेनियम के आइसोटोप का उपयोग डेटिंग (विशेषकर पुरातात्विक अवशेषों की उम्र ज्ञात करने में) और अनुसंधान प्रयोगशालाओं में होता है.
भारत में यूरेनियम की खनिज संपदा सीमित है लेकिन झारखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और मेघालय में यूरेनियम की खदानें स्थित हैं. भारत में यूरेनियम का खनन यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (UCIL) द्वारा किया जाता है.
यूरेनियम के खनन और परिवहन में रेडियोधर्मी उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. परमाणु हथियारों में इसके इस्तेमाल को लेकर वैश्विक स्तर पर संधियां, नियंत्रण और राजनीति बनी रहती है.
नेचर जर्नल में प्रकाशित एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि बिहार की 40 स्तनपान कराने वाली महिलाओं के ब्रेस्ट मिल्क में यूरेनियम का अत्यधिक उच्च स्तर पाया गया है. महावीर कैंसर संस्थान, एम्स दिल्ली और अन्य संस्थानों की संयुक्त टीम द्वारा किए गए इस शोध में भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा की महिलाओं के नमूनों में U-238 मिला, जिसमें खगड़िया और कटिहार में स्तर सबसे अधिक थे.
जॉर्जिया में भारी मात्रा में यूरेनियम मौजूद है. इसी वजह से यहां न्यूक्लियर मैटीरियल्स की ब्लैक मार्केटिंग होती है. 2019 में दो लोगों को 28 लाख डॉलर के यूरेनियम-238 की हैंडलिंग और बिक्री के लिए गिरफ्तार किया था.
400 किलोग्राम हथियार-ग्रेड यूरेनियम (90% U-235) से 7-14 परमाणु बम बन सकते हैं, जो डिज़ाइन पर निर्भर करता है. छोटे बम (0.1-10 किलोटन) 0.5-2 किमी तक तबाही मचाते हैं. मध्यम बम (10-100 किलोटन) शहर नष्ट करते हैं. बड़े थर्मोन्यूक्लियर बम (100 किलोटन-50 मेगाटन) 10-15 किमी तक विनाश करते हैं, लाखों की मौत का कारण बन सकते हैं.
IAEA का कहना है कि बॉम्बिंग के बाद उसके लिए ईरान के न्यूक्लियर साइट पर निरीक्षण मुश्किल हो गया है. क्योंकि वहां मलबा भरा पड़ा है, वहां बगैर फटे लाइव बम हो सकते हैं. वहीं अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ कहते हैं कि ईरान के पास अज्ञात संख्या में एक्स्ट्रा सेंट्रीफ्यूज है और गुप्त लोकेशन पर हैं. अगर ईरान अपने 400 किलो यूरेनियम को किसी तरह यहां ले गया तो पूरा परिदृश्य ही बदल जाएगा.
ईरान का यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम इसलिए विवादास्पद है, क्योंकि उसने 60% तक संवर्धन, गुप्त गतिविधियां और IAEA के साथ असहयोग किया है. इसके अलावा, क्षेत्रीय तनाव, इजरायल और अमेरिका के साथ दुश्मनी और गैर-कानूनी तकनीक हासिल करने का इतिहास इसे संदिग्ध बनाता है.
ईरान और इजरायल-अमेरिका के बीच चल रहे युद्ध के बीच एक बड़ा रहस्य सामने आया है. अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख के अनुसार, 408.6 किलोग्राम उच्च स्तर का संवर्धित यूरेनियम लापता हो गया है. इस यूरेनियम को आखिरी बार 10 जून 2025 को ईरान के परमाणु केंद्रों में देखा गया था. सवाल उठ रहे हैं कि क्या ईरान को हमले की जानकारी पहले से थी और क्या यूरेनियम ईरान के अंदर ही किसी भूमिगत बंकर में छिपाया गया है.