माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है ( Earth's Highest Mountain Peak). यह हिमालय पर्वत श्रृंखला के महालंगुर हिमाल उप-श्रेणी में स्थित है. यह चोटी चीन-नेपाल सीमा के पास है. एवरेस्ट की ऊंचाई 8,848.86 मीटर है (Elevation of Mount Everest). आमतौर पर, माउंट एवरेस्ट हमेशा से पर्वतारोहियों को आकर्षित करता रहा है. इसके लिए दो मुख्य चढ़ाई मार्ग हैं, एक नेपाल में दक्षिण-पूर्व से शिखर की ओर जाता है, जिसे मानक मार्ग माना जाता है, और दूसरा मार्ग तिब्बत में उत्तर की ओर से है (Climbing Routes for Mount Everest). 2019 तक, एवरेस्ट पर 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी थी, इनमें से कई अभी भी इसके बर्फ में दफन हैं.
एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचने के लिए सबसे पहला रिकॉर्डेड प्रयास ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने किया था. चूंकि नेपाल ने उस समय विदेशियों को देश में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी थी, लिहाजा अंग्रेजों ने तिब्बत की ओर इस पर चढ़ने की कोशिश की थी. 1921 में अंग्रेजों का पहला टोही अभियान उत्तरी कर्नल पर 7,000 मीटर तक पहुंचा, 1922 के अभियान ने उत्तरी रिज मार्ग से 8,320 मीटर तक पहुंतने में कामयाबी मिली. तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी (Tenzing Norgay and Edmund Hillary) ने 1953 में दक्षिण-पूर्व रिज मार्ग से एवरेस्ट की पहली आधिकारिक चढ़ाई की (First Official Ascent of Everest in 1953). 1952 स्विस अभियान के सदस्य के रूप में नोर्गे पिछले साल 8,595 मीटर तक पहुंचे थे. वांग फूजौ, गोंपो और क्व यिन्हुआ की चीनी पर्वतारोहण टीम ने 25 मई 1960 को उत्तरी रिज से चोटी की पहली चढ़ाई पूरी करने में कामयाबी पाई (Mount Everest Expeditions).
माउंट एवरेस्ट के सर्वे के बाद, ब्रिटिश सर्वेयर जनरल एंड्रयू वॉ ने पीक XV का नाम ब्रिटिश सर्वेक्षक सर जॉर्ज एवरेस्ट (Sir George Everest) के नाम पर रखने का सुझाव दिया था, जो उनसे पहले भारत के सर्वेयर जनरल थे. हालांकि खुद एवरेस्ट ने सुझाए गए नाम का विरोध किया, लेकिन 1865 में, रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी ने आधिकारिक तौर पर माउंट एवरेस्ट को दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत के नाम के रूप में अपना लिया. पहले इस पहाड़ का एक मूल नाम गौरीशंकर था, जो काठमांडू और एवरेस्ट के बीच का पहाड़ था (Mount Everest Naming).
1852 में, देहरादून में सर्वेक्षण मुख्यालय में तैनात एक भारतीय गणितज्ञ और बंगाल के सर्वेक्षक, राधानाथ सिकदर त्रिकोणमितीय गणनाओं का उपयोग करते हुए एवरेस्ट को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी के रूप में पहचानने वाले पहले व्यक्ति थे. 1955 में, माउंट एवरेस्ट की 8,848 मीटर की ऊंचाई पहली बार एक भारतीय सर्वेक्षण द्वारा निर्धारित की गई थी. इसे थियोडोलाइट्स का उपयोग करके पहाड़ के करीब बनाया गया था (Mount Everest Survey)
नेपाल सीमा से सटे बिहार के मधुबनी जिले के जयनगर शहर से लोगों ने साफ मौसम में माउंट एवरेस्ट और हिमालयन रेंज का नजारा देखा. मई 2020 के बाद एक बार फिर बिहार से दुनिया की सबसे ऊंची चोटी Mount Everest दिखने का दुर्लभ दृश्य सामने आया, जिसने लोगों को रोमांचित कर दिया.
तिब्बत के एवरेस्ट के पास बर्फीले तूफान से 200 ट्रेकर्स अब भी फंसे हुए हैं. रविवार से 350 को रेस्क्यू टीमों ने कुदांग सुरक्षित पहुंचाया. कर्मा घाटी में 19 किमी बर्फ पार कर निकले एरिक वेन ने कहा कि पैरों के निशान देखकर तूफान से निकले. पश्चिमी चीन में भी तबाही – किलियन में 1 मौत, शिनजियांग में हाइकिंग बंद.
तिब्बत के एवरेस्ट पर बर्फीला तूफान आने से सैकड़ों ट्रेकर्स फंस गए. रेस्क्यू टीमों ने 350 को कुदांग सुरक्षित पहुंचाया, बाकी 200 से संपर्क साध लिया है. कर्मा घाटी में शुक्रवार से भारी बर्फबारी हुई. ट्रेकर्स ने बताया कि अक्टूबर में कभी ऐसा नहीं देखा. जलवायु परिवर्तन का असर है.
तिब्बत के एवरेस्ट क्षेत्र में अचानक आए बर्फीले तूफान से सैकड़ों ट्रेकर्स फंस गए. रेस्क्यू टीमों ने 350 को सुरक्षित निकाला। विशेषज्ञों ने कहा— ये जलवायु परिवर्तन की चेतावनी है.
तिब्बत में माउंट एवरेस्ट पर अचानक बर्फीला तूफान आने से सैकड़ों ट्रैकर्स फंस गए. अब तक रेस्क्यू टीम ने 300 से अधिक पर्यटकों को बचा लिया है और 200 से ज्यादा ट्रैकर्स अभी भी फंसे हुए है. वहीं दूसरीं ओर गाजा पर हो रहें इजरायली हमलें के समर्थन में अलग-अलग देशों में सड़कों पर लोगों का जनसैलाब उमड़ रहा है.
तिब्बत में माउंट एवरेस्ट के पूर्वी ढलानों पर बेमौसम आए बर्फीले तूफान से हजारों ट्रेकर्स फंस गए. रेस्क्यू टीमों ने 350 ट्रेकर्स को सुरक्षित कुदांग पहुंचा दिया है और 200 से संपर्क में हैं. अन्य ट्रेकर्स को भी रेस्क्यू करने की कोशिश की जा रही है.
एयरबस और टाटा मिलकर कर्नाटक के वेमागल में H125 हेलीकॉप्टर का पहला निजी असेंबली प्लांट लगाएंगे. 2027 में पहला मेड इन इंडिया H125 तैयार होगा. सिविल और सैन्य H125M संस्करण बनेंगे, हिमालय के लिए उपयोगी. दक्षिण एशिया में निर्यात भी. आत्मनिर्भर भारत को मजबूती, नौकरियां बढ़ेंगी.
आईटीबीपी की 14 महिला कमांडोज ने 7,135 मीटर ऊंची माउंट नुन चोटी पर सफल चढ़ाई की है. इस ऐतिहासिक अभियान का नेतृत्व असिस्टेंट कमांडेंट भवनीता ने किया. टीम ने भीषण ठंड, ऊंचाई की बीमारी और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों का सामना करते हुए यह उपलब्धि हासिल की.
26 मई को इंसान की पकड़ से इतिहास फिसल गया था, जब साथी पर्वतारोही चार्ल्स इवांस और टॉम बॉर्डिलन चोटी के 300 फीट करीब पहुंच गए थे, लेकिन थकावट और खराब डिवाइस की वजह से उन्हें वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ा.
नेपाल की संसद के ऊपरी सदन में हाल ही में पेश किए गए 'इंटीग्रेटेड टूरिज्म बिल' के अनुसार एवरेस्ट (8,848.86 मीटर) पर चढ़ने के लिए अब पहले खुद को साबित करना अनिवार्य होगा. इस बिल में कई कड़े प्रावधान हैं. जैसे पर्वतारोही को 7000 मीटर से ऊपर की चढ़ाई का प्रमाण देना होगा. साथ ही हर पर्वतारोही को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मेडिकल संस्थान से चढ़ाई से एक महीने के भीतर जारी मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट देना अनिवार्य होगा.
हिमालय के ग्लेशियरों का पिघलना विनाशकारी बाढ़ के खतरे को बढ़ाता है. लगभग 200 करोड़ लोगों के लिए मीठे पानी के संसाधनों को कम करता है. भारत और नेपाल जैसे देशों में जलवायु अनुकूलन की चुनौतियां बहुत बड़ी हैं. ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों में पानी की कमी हो सकती है... और ये लगातार हो रहा है.
क्या Mount Everest हमेशा धरती का सबसे ऊंचा पहाड़ रहेगा? वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा नहीं है. एक दिन उसके पड़ोस का ही एक पहाड़ है, जो उसे पीछे छोड़ सकता है. इसकी ऊंचाई तेजी से बढ़ रही है. यह दुनिया का नौवां सबसे ऊंचा माउंटेन है.
Mount Everest लगातार ऊंचा होता जा रहा है. वैज्ञानिकों को एक विचित्र नदी मिली है, जो इसकी ऊंचाई बढ़ा रही है. लेकिन कहीं इसके पीछे भारत तो नहीं है, जो लगातार चीन को धकेल रहा है. यानी इंडियन टेक्टोनिक प्लेट. ये लगातार तिब्बतन प्लेट को धकेल रही है. चलिए जानते हैं पहले उस नदी की कहानी जो एवरेस्ट को ऊंचा कर रही है.
एवरेस्ट के नीचे बसे थमे गांव में भयानक आपदा आई है. एकदम केरल के वायनाड जैसी. बस यहां पर ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड की वजह से पूरा गांव कीचड़ और मलबे में दब गया है. सुंदर हरा-भरा गांव इस समय गंदे भूरे पीले रंग के मलबे में दबा हुआ है. थमे गांव के आधे से ज्यादा मकान कीचड़ में दब गए हैं. तबाह हो गए हैं.
नेपाली सेना ने अपने पर्वत सफाई अभियान 2024 के तहत एवरेस्ट क्षेत्र से चार इंसानों के शव, एक नरकंकाल और 11 टन कचरे को साफ किया है. नेपाली सेना ने अपने इस सफाई अभियान की शुरुआत साल 2019 में की थी और ये इसी से जुड़ा चौथा सफाई अभियान है.
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर को फतह करने हर एवरेस्ट सीजन में सैकड़ों पर्वतारोही जाते हैं. हर साल के साथ पर्वतारोहियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है जो कि हिमालय के लिए सही नहीं है. इस सीजन अब तक कई लोगों के मरने की खबरें आ चुकी है.
छत्तीसगढ़ पुलिस के जवान, एथलीट और साइकलिंग में रिकॉर्डधारी बंशीलाल नेताम की एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान मौत हो गई. उनकी करीब 6400 मीटर की ऊंचाई पर तबियत बिगड़ी. नीचे अस्पताल लाया गया. इसके बाद इलाज के दौरान उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली.
मध्य प्रदेश के भोपाल की दो वर्षीय सिद्धि मिश्रा माउंट एवरेस्ट बेस कैंप पर चढ़ने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय लड़की बन गई हैं. सिद्धि मिश्रा ने अपनी मां भावना मिश्रा के साथ यह चढ़ाई माइनस -16 डिग्री तापमान में पूरी की. आजतक से बातचीत में वो बेहद खुश दिखीं.
हर महीने आपको पाकिस्तान, जम्मू और कश्मीर, अफगानिस्तान या काराकोरम बेल्ट में भूकंप की खबरें मिलती हैं. वजह ये है कि हिमालय अब भी अपनी ऊंचाई बढ़ा रहा है. ऊंचाई बढ़ने और भूकंप आने की वजह है भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट की टक्कर. जो लगातार एकदूसरे को दबा रही हैं. या टक्कर मार रही हैं.
दुनिया की इस सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट में इतना कूड़ा जमा हो गया है की इसे "दुनिया का सबसे ऊँचा कचरे का ढेर" कहा जाने लगा है. इसके कुछ वीडियो भी सामने आ रहे हैं. एक वीडियो एवरेस्ट के कैंप 4 का है, जिसमें हर तरफ़ प्लास्टिक बिखरा पड़ा है. यहां इतनी मात्रा में कूड़ा है जितना किसी कूड़ा फेंकने वाली जगह पर होता है.
अब तक हम जानते रहे कि दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ एवरेस्ट पर सबसे पहले सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नॉर्गे ने फतह पाई थी. लेकिन जीत की ये कहानी थोड़ी उलझी हुई है. कई एक्सपर्ट मानते हैं कि इससे 30 साल पहले ही दो ब्रिटिश पर्वतारोही एवरेस्ट चढ़ चुके. लौटते हुए दोनों गायब हो गए. साल 1999 में इनमें से एक पर्वतारोही की लाश बर्फ की दरार में दबी मिली.