केशव बलिराम हेडगेवार (K B Hedgewar) एक चिकित्सक थें. उन्हें डॉक्टरजी के नाम से भी जाना जाता है. हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की, जिसका मुख्य ध्येय हिंदू समुदाय को उसके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए संगठित करने और अखंड भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए था (K B Hedgewar Founder of RSS).
उनका जन्म 1 अप्रैल 1889 को कंदकुर्थी (अब तेलांगना में है) में हुआ था (K B Hedgewar Born). उन्होंने नागपुर के नील सिटी हाई स्कूल में अध्ययन किया, जहां 'वंदे मातरम' गाने की वजह से उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने निष्कासित कर दिया था. परिणामस्वरूप, उन्हें यवतमाल में राष्ट्रीय विद्यालय और बाद में पुणे से हाई स्कूल की पढ़ाई करनी पड़ी (K B Hedgewar Education).
1920 के दशक में हेडगेवार ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया, लेकिन उनकी नीतियों और राजनीति से उनका जल्द ही मोहभंग हो गया और उन्होंने आरएसएस की स्थापना की (K B Hedgewar Ideology).
वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, विनायक दामोदर सावरकर, बाबाराव सावरकर, अरविंद घोष और बी.एस. मुंजे के लेखन से गहरे प्रभावित थे (K B Hedgewar).
50 साल की उम्र में उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. अक्सर उन्हें कमर दर्द की शिकायत रहती थी (K B Hedgewar Health). उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को एम.एस. गोलवलकर को सौंपना शुरू कर दिया, जो बाद में आरएसएस के सरसंघचालक बनें.
जनवरी 1940 में, उन्हें हॉट-स्प्रिंग उपचार के लिए बिहार के राजगीर ले जाया गया. 21 जून 1940 की सुबह नागपुर में उनका निधन हो गया (K B Hedgewar Death). उनका अंतिम संस्कार नागपुर के रेशम बाग इलाके में किया गया, जिसे बाद में हेडगेवार स्मृति मंदिर के रूप में विकसित किया गया (K B Hedgewar Cremation).
1942 में गुरु गोलवलकर ने सभी स्वयंसेवकों से आह्वान किया कि सभी को परिवार छोड़कर संघ कार्य़ में जुटना होगा. लक्ष्य पूरा करने के लिए प्रचारक बनन होगा. इस पुकार पर भैयाजी दाणी की चेतना ने मंथन किया. उन्हें लगा कि इससे निकलना चाहिए. इस तरह वे पहले गृहस्थ प्रचारक बनें. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
डॉ हेडगेवार का स्मृति मंदिर बनाने की बात आई तो गुरु गोलवलकर ने कहा कि यह एक राष्ट्रीय स्मारक है, हर स्वयंसेवक की भावना इससे जुड़ी हुई है. ऐसे में देश के हर स्वयंसेवक का इसमें योगदान होगा. तय हुआ कि ‘एक स्वयंसेवक- एक रुपया’ का फॉर्मूला चलेगा. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
1925 में RSS ने जब एक संगठन के रूप में आकार लिया तो डॉ हेडगेवार के सामने चुनौती थी कि संघ के विचारों का देशभर में प्रचार प्रसार कैसे किया जाए. उन्हें समर्पित, पूर्णकालिक और संघ की भावना में दीक्षित कार्यकर्ताओं की तलाश थी. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है संघ को मिलने वाले पहले चार प्रचारकों की कहानी.
नागपुर में 1923 में दंगे हुए थे. दो साल बाद उसी शहर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई. ऐसे माहौल में संघ कार्यकर्ताओं पर दबाव बढ़ने लगा कि वे भी हिंदू बस्तियों को सुरक्षा दें. हिन्दू परिवार की रक्षा करें. इसी दौरान हेडगेवार को धमकी भरे पत्र आने लगे, उनके घर पर पथराव भी हुआ, इसके बाद स्वयंसेवक रात से पहरा देने लगे. इसके साथ ही बना संघ का सुपर सेवन. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है वही कहानी.
गुरु गोलवलकर अध्यात्म और राष्ट्र निर्माण को साथ-साथ लेकर चलते थे. यही वजह रही कि उनकी जीवन यात्रा में एक समय ऐसा आया जब वो सार्वजनिक जीवन को छोड़कर नागपुर से मीलों दूर बंगाल के रामकृष्ण आश्रम में आ गए. एक स्वामी की सेवा करने. ये वही समय है जब डॉ हेडगेवार संघ का नेतृत्व सौंपने के लिए एक ऊर्जावान और चरित्रवान शख्सियत खोज रहे थे. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है यही कहानी.
डॉ हेडगेवार की जिंदगी में एक ऐसा मौका आया जब सुभाषचंद्र बोस उनके पास अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का प्रस्ताव लेकर आए थे. हेडगेवार के लिए ये दुविधा की स्थिति थी. हेडगेवार ने इसका क्या जवाब दिया. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है वही कहानी.
प्लेग एक ऐसी महामारी थी जिसने 19वीं सदी के आखिरी 4 साल और 20वीं सदी के पहले दशक में हिन्दुस्तान में कहर बरपा दिया था. इस दौरान एक ऐसा मौका आया जब संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार का परिवार इस बीमारी की चपेट में आ गया. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है इसी से जुड़ी कहानी, जिसकी वजह से हेडगेवार को गहरा आघात पहुंचा.
आजादी के इतिहास का वो दौर याद कीजिए जब संघ के संस्थापक हेडगेवार जेल गए थे और उनकी रिहाई के बाद स्वागत के लिए आए नेताओं में मोतीलाल नेहरू, हकीम अजमल खान, विट्ठल भाई पटेल और सी राजगोपालाचारी जैसे कांग्रेसी शामिल थे. संघ की 100 साल की यात्रा पर 100 कहानियों की इस खास सीरीज में इस बार कहानी उस घटना की जब डॉ हेडगेवार ने अपने मुकदमे की पैरवी खुद की और अपने तर्कों से ब्रिटिश जज के पसीने छुड़ा दिए.
संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार को हर सजा मंजूर थी लेकिन राष्ट्रीय भावनाओं के साथ अंग्रेजों का खिलवाड़ करना कतई मंजूर नहीं था. संघ की 100 साल की यात्रा पर 100 कहानियों की इस खास सीरीज में इस बार वो कहानी जब स्कूली दिनों में वंदेमातरम के उदघोष पर तत्कालीन अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें स्कूल से निकाल दिया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस दिन आरएसएस की उपलब्धियों को लेकर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने वाले हैं, उसी दिन भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को भारत रत्न देने की मांग उठाई है.
ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के सिंहासन पर आने को 60 साल हो रहे थे. अंग्रेज पूरी दुनिया में उत्सव मना रहे थे. यही जश्न भारत के स्कूलों में भी होना था. लेकिन 9 साल के केशव का मन कुछ और कहता था. संघ के 100 साल के 100 कहानियों में इस बार उस घटना का वर्णन जब केशव का बालमन अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर उठा.
संघ के सदस्य आज भी आपदा में तो गणवेश पहनकर कार्य करते हुए दिखते हैं लेकिन आंदोलनों में नहीं. इसके पीछे 1930 में हुए आंदोलन की एक कहानी है. इस आंदोलन में शिरकत करने के लिए डॉ हेडगेवार ने सरसंघचालक पद से इस्तीफा दिया था. संघ के 100 साल के 100 कहानियों में इस बार कहानी उस घटना की जब डॉ हेडगेवार को सरसंघचालक पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
सहारनपुर में मुस्लिम संगठन जमीयत हिमायतुल इस्लाम के अध्यक्ष अबरार जमाल ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर RSS संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को 'भारत रत्न' देने की मांग की है. उनका मानना है कि डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्र निर्माण, एकता और अनुशासन के लिए अतुलनीय योगदान दिया है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने साल 2025 में अपनी स्थापना के 100 साल पूरे किए हैं. केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन इसकी स्थापना की थी. वर्तमान में यह भारत सहित 40 से अधिक देशों में फैला हुआ है, जिसके 1 करोड़ से अधिक स्वयंसेवक होने का दावा किया जाता है. देखें कहानी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना को 100 वर्ष पूरे हो गए हैं. संघ प्रारंभ से ही राष्ट्रभक्ति और सेवा का पर्याय रहा है. संघ के लिए देश की प्राथमिकता ही उसकी अपनी प्राथमिकता रही. अपनी 100 वर्षों की इस यात्रा में संघ ने समाज के अलग-अलग वर्गों में आत्मबोध जगाया. संघ ने हमेशा राष्ट्र निर्माण का मार्ग चुना.
शाखा आरएसएस की मूल इकाई है, जो सामुदायिक सेवा और शारीरिक व्यायाम जैसे गतिविधियों के लिए जानी जाती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने समय के साथ बदलाव अपनाए, लेकिन हिंदू एकता और चरित्र निर्माण इसके मूल में रहे. प्रत्येक सरसंघचालक ने आरएसएस को नई दिशा दी और इसे आधुनिक बनाया.
आजादी के पहले फिल्में अंग्रेज सरकारों की बेड़ियों में लिपटी हुई थी. कई फिल्मों पर अंग्रेज सरकार बैन लगा देती तो कई फिल्मों में भयंकर कांट-छांट करती. 1943 में आई फिल्म किस्मत का एक गाना इतना फेमस हुआ था, कि उनपर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई. देखिए आजादी के पहले देशभक्ति की फिल्मों ने अंग्रेजों की नाम में कैसे दम किया. video
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने वीर सावरकर नाम से एक किताब के विमोचन पर यह बात कही. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सावरकर और उनका परिवार जिन्होंने देश के लिए सबकुछ छोड़ दिया, उन्हें अपमान का सामना करना पड़ा. सावरकर ने कहा था कि हिंदुत्व जातिवाद और सांप्रदायिकता से मुक्त है. सावरकर सामाजिक सुधारक थे और वह हमारे लिए एक आदर्श हैं.
कर्नाटक सरकार में मंत्री दिनेश गुंडू राव ने इस मामले को उठाते हुए कहा था कि 'आरएसएस से जुड़े संस्थानों और संगठनों को राज्य सरकार की बहुत सारी संपत्तियां दी गई हैं. इस पूरे मामले की शुरुआत कर्नाटक सरकार के पाठ्यक्रम में बदलाव किए जाने की फैसले के साथ हुई थी. कांग्रेस ने आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार को कायर कहा था.
किताबें ज्ञान देती हैं, किताबें योग्य बनाती हैं, किताबे तर्कशाली बनने के लिए प्रेरित करती हैं लेकिन जब स्कूल में बच्चों को पढ़ाई जाने वाली किताबों के पाठ्यक्रम में सियासी विवाद दस्तक देने लगे तो चिंता जरूरी है. जैसे अब कर्नाटक में सरकार बनने केबाद कांग्रेस तैयारी कर रही है कि संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार का पाठ सिलेबस से हटा दिया जाए.