जगन्नाथ मंदिर, पुरी
जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा राज्य (Odisha) के पुरी (Puri) में श्रीकृष्ण के जगन्नाथ रूप को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है. यह मंदिर हिंदुओं के चार धाम तीर्थ स्थलों (Char Dham Pilgrimage Sites) में से एक है. पुरी मंदिर अपनी वार्षिक रथ यात्रा (Rath Yatra) के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें तीन प्रमुख देवताओं, भगवान जगन्नाथ (Jagannath), उनके बड़े भाई बलभद्र (Balbhadra) और भगिनी सुभद्रा (Subhadra) को विशाल और विस्तृत रूप से सजाए गए तीन अलग-अलग रथों पर विराजमान कराया जाता है और उनकी यात्रा निकाली जाती है. अधिकांश हिंदू मंदिरों से अलग जगन्नाथ मंदिर में तीनों देवताओं की मूर्ति पवित्र नीम की लकड़ी (Sacred Neem Logs) से बनी है और इसे हर बारह साल बाद औपचारिक रूप से बदल दिया जाता है.
यह वैष्णव परंपरा वाला मंदिर (Vaishnava Traditions) है. रामानुजाचार्य, माधवाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभाचार्य और रामानंद (Ramanujacharya, Madhvacharya, Vallabhacharya and Ramananda) जैसे कई महान वैष्णव संत इस मंदिर से जुड़े रहे थे. रामानुज ने मंदिर के पास एमार मठ (Emar Mutt) की स्थापना की और आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) ने गोवर्धन मठ (Govardhan Math) की स्थापना की, जो चार शंकराचार्यों में से एक की पीठ है. गौड़ीय वैष्णववाद (Gaudiya Vaishnavism) के अनुयायियों के लिए भी इसका विशेष महत्व है. इसके संस्थापक, चैतन्य महाप्रभु (Chaitanya Mahaprabhu) भगवान जगन्नाथ की भक्ति में लीन होकर कई सालों तक पुरी में रहे थे.
10वीं शताब्दी के बाद वर्तमान मंदिर का निर्माण गंग वंश ( Eastern Ganga Dynasty) के पहले राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव (Anantavarman Chodaganga Deva) ने शुरू कराया था. साल 1197 में राजा अनंग भीम देव (Anangabhima) ने इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा किया और 1558 तक यहां पूजा – अर्चना की जाती रही. इसी साल, अफगान आततायियों ने ओडिशा पर हमला किया और मंदिर के कुछ हिस्से को तोड़कर यहां पूजा – अर्चना बंद करा दी. बाद में, रामचंद्र देब ने मंदिर और मूर्तियों की पुनर्स्थापना कराई.
गैर-हिंदुओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है (Non-Hindus Are Not Permitted to Enter the Temple). मंदिर सुबह 5:00 बजे से आधी रात तक खुला रहता है. कई अन्य मंदिरों के विपरीत, भक्त मूर्तियों के चारों ओर और पीछे जा सकते हैं.
पुरी का विशाल मंदिर परिसर 400,000 वर्ग फुट (400,000 Square Feet) से अधिक के क्षेत्र को कवर करता है, और एक ऊंची दीवार से घिरा हुआ है. यह 20 फीट ऊंची दीवार मेघनाद पचेरी (Meghanada Pacheri) के नाम से जानी जाती है. मुख्य मंदिर के चारों ओर एक और दीवार है जिसे कुरमा बेधा (Kurma Bedha) के नाम से जाना जाता है. इसमें कम से कम 120 मंदिर हैं. अपनी अद्भुत मूर्तिकला और मंदिर वास्तुकला की उड़िया शैली के कारण यह भारत के सबसे शानदार स्मारकों में से एक है.
अगर आप भी साल 2025 के अंत में यात्रा करना चाहते हैं तो यह आपके लिए एक सुहावना अवसर हो सकता है, IRCTC आपको पुरी गंगासागर और काशी की यात्रा का मौका दे रहा है. आइए जानते हैं इस यात्रा में आपको क्या सुविधाएं मिल सकती हैं.
मीटिंग के दौरान में फाइनल किया गया है कि मंदिर के अंदर केवल आपात या जरूरी संदेश के लिए मोबाइल इस्तेमाल की अनुमति होगी. कार्तिक मास के बाद क्यू-आधारित दर्शन प्रणाली का अनुभवात्मक प्रयोग भी शुरू होगा.
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ऐतिहासिक क्षण आने वाला है. 12वीं शताब्दी के कीमती हीरे-जवाहरात और भगवान जगन्नाथ के आभूषण 23 सितंबर को वापस मूल रत्न भंडार में शिफ्ट किए जाएंगे. यह खजाना बेहद सावधानी के साथ मरम्मत के लिए चार दशक बाद खोला गया था. अब मरम्मत पूरी हो चुकी है तो खजाना फिर से अपनी जगह पर शिफ्ट किया जा रहा है.
पुरी के एसपी पिनाकी मिश्रा ने बताया कि मंदिर के बेहराना द्वार के पास तैनात सुरक्षाकर्मियों को कैमरे की लाइट चमकने पर शक हुआ और करीब से जांच करने पर पता चला कि वह कैमरा लगे चश्मे के साथ परिसर में दाखिल हुआ था.
ममता बनर्जी अपनी खास रणनीति से पश्चिम बंगाल में बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे को चैलेंज करने लगी हैं. जगन्नाथ धाम से लेकर दुर्गा आंगन तक, और बंगाली अस्मिता से लेकर मुस्लिम वोटबैंक तक - वो धीरे-धीरे बीजेपी को पांव जमाने से रोकने में प्रभावी नजर आ रही हैं. बंगाली भाषा का मुद्दा उठाकर तो ममता बीजेपी पर 'बाहरी' होने का स्थायी ठप्पा लगा देना चाहती हैं.
Balarama and Revati Vivah: रैवती का जन्म सतयुग में हुआ था, जिस कारण वे कहीं ज्यादा लंबी चौड़ी थीं. इसके विपरीथ बलदेव द्वापरयुग में जन्म थे और इस युग के लोगों की लंबाई कम होती थी.
कानपुर के पास एक ऐसा प्राचीन मंदिर मौजूद है, जो मानसून के आने से पहले ही बारिश की स्थिति का संकेत दे देता है. सदियों पुरानी इस परंपरा में लोगों की गहरी आस्था है और हर साल यहां का यह अनोखा नज़ारा लोगों को चकित कर देता है. बेहटा और आसपास के गांव के लोगों का दावा है कि करीब 4 हजार साल पुराने इस मंदिर से संकेत मिल जाता है कि इस साल कैसे बारिश होगी.
Rath Yatra 2025: पुरी की गलियों में सालबेग भक्त का नाम बहुत ही महान भक्तों में भक्ति भाव से लिया जाता है. कहते हैं कि पुरी मंदिर से गुंडिचा मंदिर मार्ग पर ही भक्त सालबेग की मजार है. महाप्रभु जगन्नाथ का रथ उनकी मजार के सामने जाकर रुक जाता है.
रथ को खींचने के लिए भी श्रद्धालु उमड़े चले आते हैं और लालायित रहते हैं कि वह कम से एक बार रथ खींचे जाने वाली रस्सी ही छू लें. रथ को खींचने वाली ये रस्सियां भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि इनका महत्व रथ के बराबर ही है
भगवान का रथ भले ही श्रद्धावश हाथ से खींचा जाता है और श्रद्धालु इस रथ को बड़ी भक्ति और चाव से खींचते हैं, लेकिन तीनों रथों पर अलग-अलग घोड़े भी जुते होते हैं. ये घोड़े भगवान के रथ के साथ ही रहते हैं और इन्हें प्रतीकात्मक तरीके से बनाया जाता है. तीनों रथों के घोड़ों के अलग-अलग नाम भी हैं.
त्रिदेवों- भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ को 12वीं शताब्दी के मंदिर से पहांडी में बिठाकर मंदिर के सिंह द्वार के सामने खड़े उनके संबंधित रथों तक ले जाया जाता है. इस दौरान भव्य जुलूस निकलता है. सिंह द्वारा से भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के रथों को खींचकर श्री गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है, जो पुरी जगन्नाथ मंदिर से लगभग 2.6 किलोमीटर दूर है.
रथ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले एक मोड़ पर रथ को खींचने में काफी कठिनाई हुई, जिसके कारण जुलूस की गति धीमी हो गई. रथ के रुकने से मौके पर काफी ज्यादा तादाद में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा हो गई.
पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी को यम शिला कहा जाता है. मान्यता है कि इस पर मृत्यु के देवता यमराज का वास है, इसलिए दर्शन के बाद इस पर पैर नहीं रखा जाता. जानें इसका रहस्य और धार्मिक महत्व.
जानें पुरी के जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी रथ यात्रा, यमशिला, हवा के विपरीत लहराता ध्वज, छाया रहित मंदिर और नीलचक्र जैसे रहस्यमयी तथ्यों के बारे में.
Secrets Of Jagannath Temple: पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश के लिए कुल 22 सीढ़ियां हैं. इन सीढ़ियों में नीचे से तीसरी सीढ़ी को खास माना गया है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस सीढ़ी पर मृत्यु के देवता यमराज का वास है.
ओडिशा में समुद्र किनारे बसा तीर्थ नगरी पुरी शुक्रवार को होने वाली वार्षिक रथ यात्रा के लिए पूरी तरह तैयार है. इसके अलावा गुजरात के अहमदाबाद और पश्चिम बंगाल के दीघा में भी आज ही भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाएगी. इसे लेकर प्रशासन पूरी तरह सतर्क है. आधुनिक तकनीक, एआई निगरानी और व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की गई है, ताकि आस्था के इस महापर्व में श्रद्धालु श्रद्धामय वातावरण में भगवान के दर्शन कर सकें.
आज से भगवान जगन्नाथ की 148वीं रथ यात्रा का शुभारंभ हुआ है. अहमदाबाद और पुरी में भव्य आयोजन किया गया है, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह मंगला आरती में शामिल हुए और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने पाहिन्द विधि करवाई. यह 16 किलोमीटर लंबी यात्रा है और परंपरा के अनुसार भगवान स्वयं अपने भक्तों को आशीर्वाद देने शहर की सड़कों पर रथ में सवार होकर निकलते हैं.
सोने की मूठ वाली झाड़ू से मार्ग बुहारने की इस प्रक्रिया और रीति को 'छेरा पहरा' नाम से जाना जाता है. दरअसल, सोना एक पवित्र धातु है, जिसे लक्ष्मी माना जाता है और झाड़ू को भी देवी लक्ष्मी का ही स्वरूप कहते हैं. झाड़ू सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होती है, जो सिर्फ गंदगी ही नहीं बल्कि नकारात्मकता को भी बुहार देती है.
Jagannath Rath Yatra 2025: हर साल आआषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी आते हैं. इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को विशाल और भव्य रथों पर बिठाकर श्री गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है.
रांची के बड़कागढ़ रियासत में स्थित जगन्नाथ मंदिर की स्थापना 1691 में हुई थी, जिसकी रथ यात्रा पुरी के समान निकलती है. मंदिर के पुजारी के अनुसार, भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में राजा को आदेश दिया था कि जो लोग तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते और आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं, उनके लिए यहीं पूजा का उतना ही फल प्राप्त हो जितना पुरी जाने पर होता है.
जानिए कब शुरू होगी जगन्नाथ रथ यात्रा 2025, इसकी पूजा विधि, पौराणिक महत्व और रथों की खास बातें. 27 जून से शुरू होकर 5 जुलाई तक चलने वाली यह आध्यात्मिक यात्रा भक्तों को मोक्ष और पुण्य प्रदान करती है.