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रथयात्रा में रथ खींचने वाली रस्सियों का क्या है महत्व... जानिए उनके नाम से जुड़ीं पौराणिक कथाएं

रथ को खींचने के लिए भी श्रद्धालु उमड़े चले आते हैं और लालायित रहते हैं कि वह कम से एक बार रथ खींचे जाने वाली रस्सी ही छू लें. रथ को खींचने वाली ये रस्सियां भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि इनका महत्व रथ के बराबर ही है

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भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी का नाम शंखचूड़ है
भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी का नाम शंखचूड़ है

ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जा रही है.भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहनों के साथ रथयात्रा पर निकलते हैं और फिर देवी गुंडिचा के घर जाते हैं. यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक कार्यक्रम या उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक जीवटता का प्रतीक भी है. यहां रहने वाले करोड़ों लोगो जो अलग-अलग समुदाय और जातिगत खांचों में बंटे होते हैं, रथयात्रा उन्हें एक कर देती है. यहां ऊंच-नीच का भेद मिट जाता है और सभी सिर्फ भगवान को ही नहीं देखते हैं, बल्कि भगवान भी उन्हें देखते हैं. तभी तो कहते हैं कि पुरी में भगवान जगन्नाथ की बड़ी-बड़ी आंखें हैं और ऐसा लगता है कि वह सबको नैन भरकर देख रहे हैं. 

रथ के बराबर रथ की रस्सियों का है महत्व
खैर, रथयात्रा शुक्रवार शाम को चार बजे शुरू हुई और पहले दिन भगवान बलभद्र का रथ 200 मीटर खींचा गया. सूर्यास्त के बाद रथ नहीं खींचे जाते हैं इसलिए बची हुई यात्रा शनिवार को शुरू हुई है. इस रथ को खींचने के लिए भी श्रद्धालु उमड़े चले आते हैं और लालायित रहते हैं कि वह कम से एक बार रथ खींचे जाने वाली रस्सी ही छू लें. रथ को खींचने वाली ये रस्सियां भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि इनका महत्व रथ के बराबर ही है और खुद भगवान को ही स्पर्श कर लेने जैसी अनुभूति इन रस्सियों को खींचकर होती है. 

भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी का नाम शंखचूड़
रथों की ये रस्सियां अपने-अपने अलग और खास नामों से जानी जाती हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी का नाम शंखचूड़ है. पुरी में एक किवदंति है कि एक बार शंखचूड़ नामके राक्षस ने भगवान जगन्नाथ को अधूरी प्रतिमा समझकर उनका हरण करने का प्रयास किया. ऐसा करके वह लोगों के ईश्वर पर होने वाले विश्वास को डिगाना चाहता था, लेकिन अपने छोटे भाई के साथ ऐसा व्यवहार होता देख भगवान बलभद्र नाराज हो गए और उन्होंने शंखचूड़ का वध कर दिया. शंखचूड़ ने भगवान से कामना करते हुए कहा- वह भी आपकी सेवा में रहना चाहता है. तब बलराम ने उसकी नाड़ी, रीढ़ आदि से एक रस्सी बनाई तब से, इस रस्सी का उपयोग भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने के लिए किया जाता है. 

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शंखचूड़ भले ही एक राक्षस था, लेकिन मोक्ष पा लेने से वह भी पवित्र हो गया. उसके नाम की यह रस्सी मोक्ष का ही प्रतीक है. रस्सी खींचना भक्तों की भक्ति और समर्पण का प्रतीक है. वे भगवान जगन्नाथ को उनके रथ में खींचने में मदद करते हैं, जो उनके प्रति उनके प्रेम और श्रद्धा का प्रकटीकरण है. भगवान जगन्नाथ का रथ शंखचूड़ रस्सी से खींचना धार्मिक और पारंपरिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यह भक्तों की भक्ति, ओडिशा की संस्कृति और रथ यात्रा के त्योहार के महत्व का प्रतीक है.

शंखचूड़ नाम के राक्षस की एक और कथा है. भगवान शिव का विरोध करने वाला असुर जलंधर, शंखचूड़ का मित्र था. शंखचूड़ के पास हरिकवच था और वह इसके सहारे ही जलंघर की सहायता कर रहा था. भगवान विष्णु ने ब्राह्मण बनकर अपना ही कवच उससे मांग लिया. इसके बाद शिवजी मे शंखचूड़ का वध कर दिया. तब भगवान विष्णु ने शंखचूड़ को कलियुग में अपने काम आने और अपनी भक्ति पाने का वरदान दिया. इसलिए उनके रथ की रस्सी का नाम शंखचूड़ है.

इसी तरह ज्योतिष में शंखचूर्ण कालसर्प दोष नाम का एक कालसर्प दोष भी होता है. जब जन्म कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच स्थित होते हैं, तब यह दोष बनता है. यह दोष व्यक्ति के जीवन में कई बाधाएं और संघर्ष ला सकता है, खासकर भाग्य, शिक्षा, और रिश्तों के क्षेत्र में. रथयात्रा की रस्सी छूने भर से इस दोष से मुक्ति मिलती है, ऐसा माना जाता है.

भगवान बलभद्र के रथ की रस्सी का नाम वासुकि

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इसी तरह भगवान बलभद्र के रथ की रस्सी का नाम वासुकि (बासुकि) है, वासुकि भगवान शिव के गले में कंठहार हैं. पौराणिक कथाओं के आधार पर वासुकि शेष और अनंत नाग के छोटे भाई हैं. कहते हैं कि एक दिन वासुकि अपने भाई शेष नाग के पास आए और बोले कि आपने लक्ष्मण की तरह छोटे भाई बनकर जो उदाहरण सामने रखा है, उसका कोई जोड़ नहीं है, लेकिन मैं कभी छोटे भाई की तरह आपकी सेवा का अवसर नहीं पा सका हूं.

तब शेषनाग जी बोले, वासुकि- तुम चिंता मत करो, जब मैं बलदाऊ बलभद्र बनकर, नारायण का भी बड़ा भाई बनकर इस संसार में आऊंगा तब तुम मेरी सेवा जरूर करोगे. वही वासुकि जगन्नाथ रथयात्रा में बलभद्र के रथ की रस्सी बने हुए हैं और इस रस्सी को खींचकर भक्त अपना सौभाग्य समझते हैं.

माया के बंधन से मुक्ति का प्रती है सुभद्रा देवी के रथ की रस्सी
इसी तरह सुभद्रा देवी के रथ की रस्सी का नाम स्वर्णचूड़ है. यह रस्सी कुछ और नहीं माया का बंधन है और मोह की फांस है. इस रस्सी के जरिए तो मनुष्य संसार में कर्म, संबंध और अपने भाग्य के बंधनों के बीच बंधा और फंसा है. देवी सुभद्रा के रथ की रस्सी आत्मा का परमात्मा से मिलन का प्रतीक है.

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