ओडिशा की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो चुकी है. इस रथयात्रा को देखने के लिए देश ही नहीं दूर-दूर देशों से भी लोग पहुंचते हैं और पुरी के सागरतट पर स्थित श्रीमंदिर के विशाल परिसर से लेकर जिस रास्ते रथयात्रा होती है, वहां आस्था और भक्ति का विशाल जनसमुद्र उमड़ पड़ता है.
रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा सभी अपने-अपने रथ पर सवार होकर नगर दर्शन के लिए निकलते हैं और देवी गुंडिचा के मंदिर तक जाते हैं. भगवान देवी गुंडिचा को मौसी कहते हैं और इसीलिए उनका धाम गुंडिचा तीर्थ कहलाता है. 9 दिन तक यहां विश्राम करने के बाद भगवान की श्रीमंदिर में वापसी होती है और उनका रथ फिर से खींचकर लाया जाता है, जिसे बाहुदा रथयात्रा कहते हैं. बाहुदा यानी श्रीमंदिर में श्रीभगवान की वापसी.
रथ में जुते हैं प्रतीकात्मक घोड़े
ये परंपरा ओडिशा और पुरी की सांस्कृतिक पहचान है और धरोहर की तरह पुरानी से नई पीढ़ी में मिलती हैं, लेकिन सवाल उठता है कि अगर रथ है तो उसे हाथ से क्यों खींचा जाता है, उसके घोड़े कहां हैं?
बता दें कि भगवान का रथ भले ही श्रद्धावश हाथ से खींचा जाता है और श्रद्धालु इस रथ को बड़ी भक्ति और चाव से खींचते हैं, लेकिन तीनों रथों पर अलग-अलग घोड़े भी जुते होते हैं. ये घोड़े भगवान के रथ के साथ ही रहते हैं और इन्हें प्रतीकात्मक तरीके से बनाया जाता है. तीनों रथों के घोड़ों के अलग-अलग नाम भी हैं.
जगन्नाथ प्रभु के रथ में जुते घोड़े
जैसे भगवान जगन्नाथ के रथ में चार घोड़े जुते होते हैं. इन चारों के नाम बहुत ही आकर्षक हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ के चारों घोड़े सफेद रंग के होते हैं. इनके नाम हैं शंख, बालाहक, श्वेत और हरिदाश्व. पहले घोड़े को शंख नाम भगवान के पांचजन्य शंख से मिला है. यह घोड़ा शुभारंभ का प्रतीक है और इसकी हिनहिनाहट सकारात्मकता लाती है. बालाहक तेज दौड़ने वाला घोड़ा है. श्वेत, सौम्यता का प्रतीक है और हरिदाश्व हर तरह के संकट का नाशक है. इनके ये नाम भगवान के स्वयं अपने चार गुणों से लिए गए हैं. जिनमें वह सत्य, व्रत, सौम्य और ऊर्जा को न सिर्फ नियंत्रित करके रखते हैं, बल्कि जीवन को भी इसी के आधार पर सुचारु रूप से चलाते हैं. भगवान के जिस रथ में ये घोड़े जुते हुए होते हैं, उसका नाम नंदीघोष है.
बलभद्र के रथ के घोड़ों के नाम
इसी तरह भगवान के बड़े भाई बलभद्र के रथ में भी चार घोड़े हैं. उनके नाम हैं तीव्र, घोर, दिघ्श्रमा और स्वमनवा. तीव्र घोड़ा समय की तीव्रता का प्रतीक है. घोर नाम का घोड़ा पल-पल बदलती प्रकृति के स्वरूप का प्रतीक है. दिघ्श्रमा इस बात का प्रतीक है कि श्रम ही जीवन का आधार है और स्वमनवा अपने आत्म नियंत्रण का प्रतीक है.
देवी सुभद्रा के रथ में भी हैं चार घोड़े
देवी सुभद्रा के रथ में भी चार घोड़े जुते हैं, लेकिन चूंकि देवी सुभद्रा नारी जाति और स्त्री शक्ति का स्वरूप हैं और स्वयं योगमाया हैं तो उनके रथ में जुते घोड़े भी स्त्री शक्ति का ही प्रतीक लगते हैं. ये उनके नाम में भी स्पष्ट है. शायद ये घोड़े नहीं बल्कि घोड़ियां हैं. पहली घोड़ी का नाम है, रोचिका. रोचिका जीवन की रोचकता का प्रतीक है. दूसरी है मोचिका, जो इस जीवन से परे मोक्ष का प्रतीक है. तीसरी है जीता, जो विजय का प्रतीक है और चौथी है अपराजिता, जो कभी हार न मानने वाली शक्ति का प्रतीक है, जिसे जीता नहीं जा सकता है. तीनों ही रथ में जुते हुए घोड़े हमें जीवन से जोड़ते हैं और इसकी परिभाषा को सामने रखते हैं.