नवरात्रि के दूसरे दिन माता दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है. "ब्रह्म" का अर्थ है तपस्या और "चारिणी" का अर्थ है आचरण करने वाली. अर्थात्, ब्रह्मचारिणी देवी वह हैं जो कठोर तपस्या और साधना का पालन करती हैं. यह स्वरूप तप, त्याग, और संयम का प्रतीक है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी. हजारों वर्षों तक उन्होंने केवल फल-फूल खाए और फिर कई वर्षों तक निर्जल रहकर तप किया. उनकी इस घोर तपस्या के कारण ही उन्हें "ब्रह्मचारिणी" कहा जाता है. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया.
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और शांतिपूर्ण है. वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके एक हाथ में जपमाला तथा दूसरे हाथ में कमंडल रहता है. उनका स्वरूप ज्ञान, भक्ति और आत्मसंयम का प्रतीक है.
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में विशेष रूप से दूध, दही, शहद, और चीनी का भोग अर्पित किया जाता है. पूजा करते समय सफेद फूल चढ़ाए जाते हैं और मां की कृपा पाने के लिए
इनकी उपासना से साधक को संयम, तप और ज्ञान की प्राप्ति होती है. जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए इनकी आराधना विशेष लाभकारी मानी जाती है. माता की कृपा से व्यक्ति को आत्मबल और सफलता प्राप्त होती है.
मां ब्रह्मचारिणी मंत्र
ओम देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
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