नवरात्र का पर्व चल रहा है. कल यानी 30 सितंबर को दुर्गा अष्टमी की पूजा की जाएगी. उसके ठीक एक दिन बाद नवमी की पूजा की जाएगी. नवरात्र की अष्टमी को दुर्गा मां के महा गौरी रूप की पूजा होती है, वहीं नवमी को दुर्गा माता के महिषासुरमर्दिनी रूप की पूजा होती है. अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन का विधान है. इस दिन उपासक कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत करते हैं. दुर्गाष्टमी और नवमी पर इन कन्याओं का स्वागत किया जाता है और इन्हें देवी का स्वरूप मानकर इनकी पूजा की जाती है. इस दौरान कन्याओं के साथ एक लड़का भी बिठाया जाता है, जिसे लांगूर या लांगुरिया कहा जाता है.
क्यों बिठाया जाता है लांगूर?
कन्याओं के साथ बैठे इस 'लांगूर' को बटुक भैरव का रूप माना जाता है. ऐसी मान्यताएं हैं कि जिस तरह वैष्णों देवी के दर्शन के बाद भैरो के दर्शन करना जरूरी होता है. ठीक उसकी तरह कन्या पूजन के दौरान लांगूर को कन्याओं के साथ बैठाने पर ये पूजा सफल मानी जाती है. नवरात्र के अष्टमी और नवमी के दिन जो भोग आप इन कन्याओं की थाली में परोसते हैं, वही भोग लांगूर की थाली में परोसना भी अनिवार्य है.
कन्या पूजन की विधि
कन्या पूजन और भोज के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर लेना चाहिए. पूजन के दिन जब वे घर आएं, तो पुष्पवर्षा कर उनका स्वागत करें और माता दुर्गा के नौ रूपों के जयकारे लगाएं. इसके बाद उन्हें स्वच्छ और आरामदायक स्थान पर बैठाकर, दूध से भरे थाल में उनके चरणों को अपने हाथों से धोएं, फिर उनके माथे पर अक्षत, पुष्प और कुमकुम का तिलक करें. मां भगवती का स्मरण करते हुए इन कन्याओं को भोजन कराएं. भोजन में कन्याओं को हलवा, पूरी और चना खिलाएं, इलके बाद उन्हें उपहार दें. फिर उनके चरण स्पर्श कर आशीष लें.