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ओलंपिक्स न्यूज़

ओलंपिक: वो भारतीय सितारे, जो पदक तो नहीं जीते पर अपनी चमक बिखेर गए

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कोरोना महामारी की वजह से ठीक एक साल के लंबे इंतजार के बाद आयोजित टोक्यो ओलंपिक अब खेल संपन्न हो गया है. भारतीय खिलाड़ियों ने ओलंपिक इतिहास में इस बार बेहद शानदार प्रदर्शन किया. अपने ऐतिहासिक प्रदर्शन के दौरान 1 स्वर्ण पदक समेत कुल 7 पदकों पर कब्जा जमाया. 7 पदकों की बदौलत भारत पदक तालिका में 48वें स्थान पर रहा. (PTI)

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भारत के कई खिलाड़ियों ने इस बार भी शानदार प्रदर्शन किया लेकिन पदक के करीब पहुंच कर भी जीत नहीं सके. ओलंपिक इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं जहां शानदार और ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद भी भारतीय खिलाड़ी पदक नहीं जीत सके. आज हम आपको उन बेहतरीन और बेहद शानदार भारतीय खिलाड़ियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने ओलंपिक में लाजवाब खेल दिखाया लेकिन मामूली अंतर से पदक चूक गए. बिना पदक के भी इन खिलाड़ियों के प्रदर्शन को याद किया गया. (PTI)

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मिल्खा सिंह (रोम ओलंपिक, 1960) : शुरुआत उड़न सिख यानी मिल्खा सिंह से करते हैं. 1960 के रोम ओलंपिक में पूरे देश को उम्मीद थी कि मिल्खा सिंह देश के लिए पदक जीतकर लौटेंगे और उन्होंने अपनी ओर से पूरा दमखम भी लगा दिया लेकिन कांस्य पदक के लिए वह एक सेकंड के सौवें हिस्से से चूक गए.

देश के लिए 3 ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले मिल्खा सिंह 400 मीटर रेस में आराम से फाइनल में पहुंच गए और रेस की शुरुआत में वह आगे भी निकले लेकिन फिर वो पिछड़ गए. बाद में उन्होंने वापसी की कोशिश तथा तीसरे और चौथे स्थान के लिए फोटो फिनिश से परिणाम निकाला गया जिसमें मिल्खा सिंह अनलकी साबित हुए और पदक उनके हाथ से छिटक गया. (Getty images)

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अमेरिकी धावक ओटिस डेविस को एक सेकंड के सौवें हिस्से से विजेता घोषित किया गया. मिल्खा सिंह का निकाला गया 45.73 सेकंड का समय तब एक ऐसा भारतीय राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना जो करीब 40 सालों तक अजेय रहा. (ITGD)

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श्रीराम सिंह (मॉन्ट्रियल ओलंपिक, 1976): मिल्खा सिंह की तरह श्रीराम सिंह भी ट्रैक एंड फील्ड में भारत के बेजोड़ खिलाड़ी रहे हैं और ओलंपिक में चमत्कारिक प्रदर्शन के बावजूद वह पदक जीत नहीं सके. उनके अंतरराष्ट्रीय करियर का शानदार साल रहा था 1976. इसी साल हुए मॉन्ट्रियल ओलंपिक में 800 मीटर रेस के फाइनल में पहुंच कर पदक की आस जगा दी थी.

फाइनल में पहुंचना बेहद शानदार रहा था क्योंकि क्वालीफाइंग राउंड, सेमीफाइनल और फाइनल तीनों मुकाबले लगातार 3 दिन खेले गए. पहली रेस में उन्होंने अपना ही एशियाई रिकॉर्ड तोड़ा और 1:45.86 मिनट का समय निकाला. सेमीफाइनल में वह चौथे स्थान पर आए. (PTI)

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पदक के लिए मुकाबले में श्रीराम सिंह पूरी तैयारी से आए थे और रेस शुरू होने के बाद उन्होंने जोरदार शुरुआत की. शुरुआती 300 मीटर तक वह रेस में सबसे आगे दौड़ते रहे. लेकिन उनका आगे बढ़ना क्यूबा के अलबर्टो जुआंटोरेना को पसंद नहीं आया. उन्होंने अपनी स्पीड तेज की और उनकी स्पीड इतनी तेज हो गई कि वर्ल्ड रिकॉर्ड ही बना डाला. अलबर्टो ने 1:43.50 मिनट का समय लिया जबकि श्रीराम 1:45.77 मिनट के समय के साथ सातवें स्थान पर रहे.

श्रीराम भले ही पदक से चूक गए लेकिन 3 मायनों में उनका यह सफर यादगार रहा. पहला, ओलंपिक चैंपियन बने अलबर्टो ने जीत का श्रेय श्रीराम की फ्रंट रनिंग को दिया. दूसरा, उनका एशियाई रिकॉर्ड 18 साल तक बरकरार रहा. 1994 में ली जिन इल ने तोड़ा. तीसरा, राष्ट्रीय रिकॉर्ड 42 साल तक कायम रहा और जून 2018 में जिनसन जॉनसन ने इसे तोड़ा. (सांकेतिक- PTI)

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पीटी उषा (लॉस एजिंलिस ओलंपिक, 1984): मिल्खा सिंह और श्रीराम सिंह के शानदार प्रदर्शन के बावजूद पदक चूकने के 8 साल बाद 1984 के लॉस एजिंलिस ओलंपिक से लोगों को ट्रैक एंड फील्ड से ओलंपिक में पदक जीतने की आस फिर लगी जब भारत की नई सनसनी पायोली एक्सप्रेस पीटी उषा अपनी चुनौती पेश करने उतरीं. 

पीटी उषा ने 400 मीटर की बाधा दौड़ के सेमीफाइनल रेस में लाजवाब प्रदर्शन किया और पहले नंबर पर आते हुए फाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया. वह ओलंपिक मुकाबले में फाइनल में पहुंचने वाली 5वीं भारतीय और पहली भारतीय महिला एथलीट थीं

देश फाइनल में पीटी उषा से बड़े पदक की आस लगाए हुए था. लेकिन पदक के लिए जब रेस शुरू हुआ तो मुकाबला कांटे का रहा. कांस्य पदक के लिए फोटो फिनिश के जरिए जब परिणाम घोषित किया गया तो वह सेकेंड के सौवें हिस्से से हार गईं और पदक से वंचित हो गईं. मिल्खा सिंह की तरह मुकाबले में उनका सफर भी चौथे स्थान पर खत्म हुआ. (File)

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शाइनी विल्सन (लॉस एजिंलिस ओलंपिक, 1984): 1984 के लॉस एजिंलिस ओलंपिक में पीटी उषा की तरह एक और महिला एथलीट ने शानदार प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया था. भारतीय खेल इतिहास में वह शाइनी विल्सन के नाम से जानी गईं जबकि उनका पूरा नाम था शाइनी अब्राहम विल्सन.

शाइनी विल्सन ने 800 मीटर रेस के सेमीफाइनल में पहुंचकर इतिहास रचा था. शाइनी किसी ओलंपिक मुकाबले के सेमीफाइनल में पहुंचने वाली देश की पहली महिला एथलीट बनी थीं. हालांकि सेमीफाइनल मुकाबले में वह अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा नहीं सकीं.

शाइनी ने 2:05.42 मिनट में अपना सेमीफाइनल मुकाबला पूरा किया था, लेकिन यह प्रदर्शन फाइनल के लिए नाकाफी साबित हुआ और वह मुकाबले में 16वें पायदान पर रहीं यानी सबसे नीचे. भले ही वह फाइनल में नहीं पहुंच सकी हों लेकिन सेमीफाइनल में पहुंचकर भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए जो रास्ता खोला वो आज भी बदस्तूर जारी है. (सांकेतिक-PTI)
 

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महिला रिले टीम (लॉस एजिंलिस ओलंपिक, 1984): ओलंपिक के इतिहास में 1984 के लॉस एजिंलिस ओलंपिक खेल भारतीय ट्रैक एंड फील्ड के लिए बेहद यादगार रहा. भारतीय एथलीटों ने गजब का खेल दिखाया लेकिन किस्मत उनके साथ नहीं रही और पदक के करीब पहुंचकर भी खाली हाथ लौटना पड़ा.

लॉस एजिंलिस ओलंपिक में पीटी उषा और शाइनी विल्सन के अलावा महिलाओं की रिले टीम ने भी लाजवाब प्रदर्शन कर दुनिया को चौंका दिया. 4 गुणा 400 मीटर की महिलाओं की रिले टीम में पीटी उषा और शाइनी विल्सन के अलावा एमडी वलसामा तथा वंदना राव शामिल थीं. 

रिले टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 4 गुणा 400 मीटर रिले दौड़ में फाइनल में जगह बना ली. फाइनल में भी टीम ने अच्छी शुरुआत की लेकिन रेस खत्म होते-होते टीम पिछड़ती चली गई और जब मुकाबला खत्म हुआ तो टीम सातवें स्थान पर थीं. टीम पदक से चार स्थान दूर रह गई. टीम ने 3:32.49 मिनट का समय निकाला. (सांकेतिक तस्वीर-पीटीआई)

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लिएंडर पेस (अटलांटा ओलंपिक, 1996): भारतीय टेनिस के महानतम खिलाड़ियों में से एक लिएंडर पेस 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में रमेश कृष्णन के साथ युगल स्पर्धा के सेमीफाइनल में नहीं पहुंच सके थे. अगर सेमीफाइनल में पहुंचते तो उनका एक पदक पक्का हो जाता क्योंकि तब कांस्य पदक के लिए अंतिम-4 में पराजित खिलाड़ियों के बीच मुकाबला नहीं होता था.

खैर, 4 साल बाद अमेरिका के अटलांटा शहर में ओलंपिक का आयोजन किया गया. लिएंडर पेस एकल मुकाबले में उतरे और इस बार चमत्कारिक प्रदर्शन करते हुए सेमीफाइनल में पहुंचे. सेमीफाइनल में नंबर एक खिलाड़ी आंद्रे आगासी के हाथों हारने के बाद कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में ब्राजील के फर्नांडो मेलिगिनी से मुकाबला हुआ. कांस्य के लिए हुए मुकाबले में एक सेट पिछड़ने के बाद वापसी करते हुए पेस ने मेलिगिनी को हरा दिया और पदक पर कब्जा जमा लिया. (File-REUTERS)

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लिएंडर पेस ने यहां कांस्य पदक भले ही जीत लिया, लेकिन उनका बेहद चर्चित मुकाबला रहा था सेमीफाइनल में आंद्रे आगासी के साथ. आगासी तब नंबर एक खिलाड़ी थे और लोकल खिलाड़ी होने की वजह से उनके समर्थक कहीं ज्यादा थे. 1 अगस्त को पेस और आगासी के बीच मुकाबला बेहद कांटे का रहा. पहले सेट में ही पेस ने बढ़त बना ली थी.

मुकाबला ट्राईब्रेकर तक पहुंचा. पेस लगातार आगासी को चुनौती दे रहे थे और जिस अंदाज में खेल रहे थे ऐसे में लग रहा था कि वह यह मुकाबला जीत जाएंगे. लेकिन स्टेडियम में बड़ी संख्या में मौजूद दर्शकों ने जमकर हूटिंग शुरू कर दी. इससे पेस का मनोबल टूट गया और वह यह सेट 6-7 से हार गए. इसके बाद थोड़े धीमे पड़े पेस पर आगासी हावी हो गए और दूसरा सेट आसानी से 6-3 से जीत लिया. पेस फाइनल में नहीं पहुंच सके लेकिन उनका यह प्रदर्शन तक सुर्खियों में रहा था. (File-REUTERS)

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जयदीप करमाकर (लंदन ओलंपिक, 2012): लंदन ओलंपिक भारतीय निशानेबाजों के लिहाज से शानदार रहा था क्योंकि भारत के खाते में एक रजत पदक और एक कांस्य पदक आ गए थे और देश को तीसरे पदक की आस थी निशानेबाज जयदीप करमारकर से. जयदीप बेहद शानदार प्रदर्शन कर रहे थे.

जयदीप ने 50 मीटर रायफल प्रोन इवेंट में शानदार प्रदर्शन करते हुए फाइनल में अपनी जगह तो पक्की कर ली लेकिन फाइनल मुकाबले में शानदार प्रदर्शन के बावजूद पदक के बेहद करीब आकर चूक गए. कांटेदार मुकाबले में जयदीप चौथे स्थान पर रहे और कांस्य पदक नहीं जीत सके.

करमारकर ने क्वालीफिकेशन राउंड ने 595 अंक हासिल करने के बाद फाइनल में 104.1 का स्कोर बनाया जिससे उनका कुल स्कोर 699.1 रहा जबकि तीसरे स्थान पर रहने वाले स्लोवेनिया के राजमंड डेबेवेक ने 701.0 का स्कोर किया और इस तरह से वह कांस्य पदक से मामूली अंतर से चूक गए. (Twitter)

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लिएंडर पेस-महेश भूपति (एथेंस ओलंपिक, 2004): इंडियन एक्सप्रेस के नाम से मशहूर लिएंडर पेस-महेश भूपति की जोड़ी एथेंस ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंचकरभी पदक से हार गई. पेस 1996 के अटलांटा ओलंपिक में एकल में कांस्य पदक जीत चुके और इससे पहले 1992 में रमेश कृष्णन के साथ युगल में पदक जीतने के बेहद करीब आ गए थे, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया.

2004 में पेस जब भूपति के साथ कोर्ट में उतरे तो ली-हैस ने बेहद शानदार खेल दिखाया और सेमीफाइनल तक पहुंच गए. पहले फाइनल के लिए हुए मुकाबले में भारतीय जोड़ी को हार मिली तो फिर जब कांस्य पदक के लिए मैच हुआ तो कड़े मुकाबले में क्रोएशिया की जोड़ी से 6-7, 6-4, 14-16 से हार गई. और इस तरह से चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा. इसी ओलंपिक में भारत्तोलन में कंजुरानी देवी भी पदक से चूक गईं और चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा. (File-REUTERS)

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दीपा कर्माकर (रियो ओलंपिक, 2016): रियो ओलंपिक 2016 में दीपा कर्माकर ने भी गजब का खेल दिखाया, लेकिन पदक नहीं जीत सकीं. 5 साल पहले 14 अगस्त के दिन देश की निगाहें जिम्नास्टिक्स के वॉल्ट फाइनल मुकाबलों पर लगी रहीं, लेकिन दीपा कर्माकर फाइनल में मामूली अंतर से पदक से चूक गईं. उनका औसत स्कोर 15.066 रहा. जिम्नास्टिक की महान खिलाड़ी और तब दो बार की ओलंपिक पदक विजेता अमेरिका की सिमोन बाइल्स (औसत स्कोर- 15.966) ने स्वर्ण पदक जीत लिया था. 

तब 52 साल बाद जिम्नास्टिक्स में दीपा ने देश की ओर से ओलंपिक में हिस्सा लिया था. फाइनल में पहुंचने का इतिहास तो रचा लेकिन पदक से थोड़े से अंतर से चूक गईं. 

रियो में ही बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा भी पदक के करीब पहुंच गए थे. लेकिन इस बार पदक नहीं जीत सके. 10 मीटर एयर राइफल में मुकाबला कड़ा रहा और वह चौथे स्थान पर रहते हुए कांस्य से चूक गए.

(REUTERS)

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अदिति अशोक (टोक्यो ओलंपिक, 2020): महिला गोल्फ में 200वीं रैंकिंग की भारतीय खिलाड़ी अदिति अशोक ओलंपिक में अपने खेल के आखिर तक पदक की दौड़ में बनी हुई थीं, लेकिन वह दो शॉट से इसे चूक गईं और चौथे स्थान पर रहीं. रियो ओलंपिक में वह 41वें स्थान पर रही थीं, लेकिन टोक्यो में उन्होंने शानदार खेल के दम पर देश का दिल जीत लिया. (PTI)

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भारत की महिला हॉकी टीम ने इस बार ओलंपिक में चमत्कारिक प्रदर्शन करते हुए सेमीफाइनल में पहली बार प्रवेश किया, लेकिन कांस्य पदक के लिए बेहद कड़े मुकाबले के बाद भी टीम नहीं जीत सकी. हालांकि शानदार प्रदर्शन के बावजूद टीम चौथे स्थान पर रही. महिला टीम का यह अब तक का बेस्ट प्रदर्शन है. (PTI)

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