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Adhik Maas 2026: नववर्ष 2026 में पड़ेगा अधिकमास! जानें कब से शुरू होगा यह महीना और महत्व

Adhik Maas 2026: हिंदू नववर्ष 2026 में अधिकमास का दुर्लभ संयोग बनेगा, जिसको पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है. इसे अत्यंत पावन महीना माना जाता है. इस मास में किए गए व्रत, पूजा और तप का विशेष फल प्राप्त होता है. इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान, भगवान विष्णु व श्रीकृष्ण की उपासना से भी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

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कब से शुरू होगा अधिक मास 2026 (Photo: Getty Images)
कब से शुरू होगा अधिक मास 2026 (Photo: Getty Images)

Adhik Maas 2026: नववर्ष 2026 हिंदू पंचांग के अनुसार एक विशेष संयोग लेकर आ रहा है, क्योंकि इस वर्ष अधिकमास पड़ेगा. शास्त्रों में अधिकमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है और इसे अत्यंत पावन माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह मास स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप से जुड़ा हुआ है. श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने पुरुषोत्तम मास को अपना ही स्वरूप बताया है. यही कारण है कि इस मास में किए गए व्रत, जप, तप और पूजा-पाठ को विशेष फलदायी माना गया है. पंचांग की गणना में जब एक वर्ष में सामान्य 12 महीनों के स्थान पर एक अतिरिक्त मास जुड़ जाता है, तब उसे अधिकमास कहा जाता है.

वर्ष 2026 में कब पड़ेगा अधिकमास?

पंचांग के अनुसार, साल 2026 में अधिकमास मास 17 मई 2026 से शुरू होकर 14 जून 2026 तक रहेगा. इस नए वर्ष 2026 में दो ज्येष्ठ मास होंगे. धार्मिक दृष्टि से अधिकमास की मान्यता इसी अवधि के दौरान मानी जाएगी और इस समय किए गए धार्मिक कार्यों को विशेष फल प्राप्त होगा.

अधिकमास का महत्व

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, अधिकमास को साधना, तप और भक्ति के लिए अत्यंत श्रेष्ठ समय माना गया है. इस पावन मास में व्रत और धार्मिक नियमों का पालन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने, तीर्थ स्थलों की यात्रा करने और भगवान विष्णु व श्रीकृष्ण की उपासना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यही कारण है कि अधिकमास को भगवान पुरुषोत्तम को समर्पित माना गया है और इसे पुरुषोत्तम मास कहा जाता है.

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अधिकमास क्यों और कैसे होता है?

पंचांग की गणनानुसार, सौर वर्ष और चंद्र वर्ष की अवधि समान नहीं होती है. जहां सौर वर्ष लगभग 365 दिनों का होता है, वहीं चंद्र वर्ष करीब 354 दिनों का माना जाता है. इस तरह हर वर्ष दोनों गणनाओं के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर बन जाता है. इसी अंतर को संतुलित करने के लिए पंचांग में अधिकमास की व्यवस्था की गई है, जिससे सूर्य और चंद्र की चाल में सामंजस्य बना रहे. यह अतिरिक्त मास सामान्यतः हर तीसरे वर्ष फाल्गुन से कार्तिक मास के बीच किसी भी समय पड़ सकता है. जिस चंद्र मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती, वही अधिकमास कहलाता है. इसी कारण जिस वर्ष अधिकमास पड़ता है, उस वर्ष 12 के स्थान पर 13 महीने होते हैं.

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