Shattila Ekadashi 2024 Date: माघ का महीना भगवान विष्णु का महीना माना जाता है. एकादशी की तिथि विश्वेदेवा की तिथि होती है. श्री हरि की कृपा के साथ समस्त देवताओं की कृपा का यह अद्भुत संयोग केवल षटतिला एकादशी को ही मिलता है. इसलिए इस दिन दोनों की ही उपासना से तमाम मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं. इस दिन कुंडली के दुर्योग भी नष्ट किए जा सकते हैं. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो इस दिव्य तिथि पर किए गए तिल के विशेष प्रयोग से आपके जीवन में ग्रहों के कारण आ रही बाधाएं दूर हो सकती हैं. इस बार षटतिला एकादशी 6 फरवरी को है.
तिल का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
तिल एक पौधे से प्राप्त होने वाला बीज है. इसके अंदर तैलीय गुण पाए जाते हैं. तिल के बीज दो तरह के होते हैं. सफेद और काले तिल स्वभाव से भारी, रोगनाशक, वातनाशक, केशवर्धक होते हैं. तिल के दाने संतानोत्पत्ति की क्षमता और कैल्शियम के तत्व को मजबूत करते हैं. धार्मिक महत्व की बात करें तो पूजा के दीपक और पितृ कार्य में तिल के तेल का प्रयोग उत्तम होता है. शनि की समस्याओं के निवारण के लिए भी काले तिल का प्रयोग किया जाता है.
षटतिला एकादशी व्रत के नियम
यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है- निर्जला व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. सामान्यतः निर्जला व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए. सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए. इस व्रत में तिल स्नान और तिल युक्त उबटन लगाना चाहिए. इस दिन तिल युक्त जल और तिल युक्त आहार ग्रहण करें. यह एकादशी कष्टों को हरने वाली है.
षटतिला एकादशी की पूजा विधि
प्रात:काल स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पुष्प, धूप आदि अर्पित करें. षटतिला एकादशी व्रत के पूजा के समय भगवान विष्णु को तिल से बने खाद्य पदार्थों का भोग लगाएं. व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की आराधना करें. साथ ही रात्रि में जागरण और हवन करें. द्वादशी पर सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं.
किस प्रकार करें विशेष स्नान?
प्रातः काल या संध्याकाळ स्नान के पूर्व संकल्प लें. पहले जल को सिर पे लगाकर प्रणाम करें. फिर स्नान करना आरम्भ करें. स्नान करने के बाद सूर्य को तिल मिले जल से अर्घ्य दें. साफ वस्त्र धारण करें. फिर श्री हरि के मंत्रों का जाप करें. मंत्र जाप के बाद वस्तुओं का दान करें. जल और फल ग्रहण करके उपवास रख सकते हैं.