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पाकिस्‍तान को सबक सिखाने से पहले भारत के राजनीतिक अखाड़े में ही दो-दो हाथ शुरू

पहलगाम हमले के बाद देश भर में पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग जोर शोर से हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आतंकवादियों को मिट्टी में मिलाने की घोषणा की है - लेकिन, पार्टी-पॉलिटिक्स का अपना अलग ही मिजाज है, और वो चालू है.

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सबक सिखाने की मांग के बीच पहलगाम हमले पर राजनीतिक बयानबाजी भी खूब हो रही है.
सबक सिखाने की मांग के बीच पहलगाम हमले पर राजनीतिक बयानबाजी भी खूब हो रही है.

पहलगाम अटैक पर, बड़े ही भावुक होकर उमर अब्दुल्ला ने कहा है, क्या जवाब दूं मैं उस नेवी अफसर की विधवा को, उस छोटे बच्चे को जिसने अपनी पिता को खून में लथपथ देखा है.

अब्दुल्ला ने कहा, 26 साल में पहली बार जम्मू-कश्मीर में किसी हमले के बाद मैंने लोगों को इस तरह बाहर आते देखा. कठुआ से श्रीनगर तक लोग बाहर आए और खुलकर बोले कि कश्मीरी ये हमले नहीं चाहते... ये हर कश्मीरी बोल रहा है.

पहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पेश प्रस्ताव के सपोर्ट में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कई महत्वपूर्ण बातें कही, और यहां तक बोला कि ये वक्त जम्मू-कश्मीर के लिए स्टेटहुड मांगने का नहीं है. हो सकता है, ये कुछ राजनीतिक दलों के लिए उमर अब्दुल्ला का कटाक्ष हो. 

जब पहलगाम को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ जब पूरे देश में गुस्सा है. हर कोई सबक सिखाये जाने की मांग कर रहा है, लेकिन राजनीतिक गलियारों से ऐसी बातें सामने आ रही हैं जिस पर दलगत राजनीति हावी लग रही है. 

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कहने को तो कांग्रेस सहित देश के सभी विपक्षी दलों ने पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के मामले में हर कदम पर केंद्र सरकार के सपोर्ट का भरोसा दिलाया है, लेकिन कुछ नेताओं के ऐसे भी बयान आ रहे हैं, अलग पॉलिटिकल लाइन दिखा रहे हैं. 

मिट्टी में मिलाने, और बची खुची जमीन खत्म करने का ऐलान

कुछ बड़ा होने वाला है. पहलगाम हमले के बाद से अक्सर ऐसी ही चर्चा चल रही है. पाकिस्तान के खिलाफ केंद्र सरकार ने सिंधु जल संधि और अटारी बॉर्डर को लेकर कुछ सख्त कदम भी उठाया है. 

सरहद पार से भी हर हलचल की खबर आ रही है. पाकिस्तान सरकार की तरफ से भी लगातार बयान आ रहे हैं. दिल्ली से लेकर बॉर्डर तक जगह जगह हाईअलर्ट भी देखने को मिल रहा है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आर्मी चीफ से मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिल कर अपडेट दिया है. गृह मंत्रालय हर गतिविधि पर कड़ी नजर रख रहा है.

केंद्र सरकार ने पहलगाम अटैक पर बीबीसी की कवरेज पर आपत्ति जताई है और भारत में बीबीसी के प्रमुख जैकी मार्टिन को पत्र भी लिखा है. बीबीसी को चेतावनी दी गई है, और ऐसे ही 17 पाकिस्तानी यू-ट्यूब चैनलों पर भी पाबंदी लगाई गई है. सरकार का कहना है कि ये चैनल देश और सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ झूठी और भ्रामक बातें कर रहे हैं. पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब अख्तर का यू-ट्यूब चैनल भी इनमें शामिल है. 

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अव्वल तो बीजेपी शासित राज्य असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी पहलगाम आपदा में राजनीतिक अवसर ढूंढ ही लिया है. हिमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई पर धावा बोल दिया है, और सितंबर तक उनके खिलाफ और भी चीजें सामने लाने का दावा कर रहे हैं.

बिहार चुनाव से पहले मधुबनी के मैदान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आतंकवादियों को मिट्टी में मिलाने की घोषणा की है - लेकिन, पार्टी-पॉलिटिक्स का अपना ही मिजाज है, और वो चालू है.

बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी ने चुनाव को देखते हुए मोदी के बिहार दौरे को गलत बताया है, और कहा है कि मोदी को बिहार की जगह पहले जम्मू-कश्मीर जाना चाहिये था. 

नेताओं के बयान क्या कांग्रेस के खाते में दर्ज नहीं होंगे

शुरुआत तो रॉबर्ट वाड्रा से हुई थी, लेकिन मणिशंकर अय्यर और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी उसी रास्ते पर चल पड़े. अब तो महाराष्ट्र के कांग्रेस विधायक विजय वेट्टीवार और जम्मू-कश्मीर के सैफुद्दीन सोज भी उस लिस्ट में शामिल हो चुके हैं. 

कांग्रेस की कर्नाटक सरकार में मंत्री आरबी तिम्मापुर तो आतंकवादियों के धर्म पूछ कर गोली मारने की बात को ही सिरे से खारिज कर दे रहे हैं. आरबी तिम्मापुर का कहना है, मुझे लगता है कि जब वे आतंकी हमला कर रहे थे, तब उन्होंने धर्म के बारे में नहीं पूछा… अगर उन्होंने पूछा भी होता तो धर्म के आधार पर मुद्दे का राजनीतिकरण करने के लिए इस तरह के बयान का इस्तेमाल करने का पागलपन नहीं होना चाहिये.

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राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे भले ही पहलगाम पर केंद्र सरकार के हर फैसले के साथ खड़े हों, लेकिन सिद्धारमैया का कहना है कि पाकिस्तान के साथ युद्ध की कोई जरूरत नहीं है… हम इसके पक्ष में नहीं हैं, हमें अपनी सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने चाहिये.

अपने बयान पर बवाल मचने के बाद अब सिद्धारमैया सफाई दे रहे हैं, मैंने कभी नहीं कहा कि भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध नहीं करना चाहिये… मैंने सिर्फ इतना कहा कि युद्ध समाधान नहीं है… पर्यटकों को सुरक्षा दी जानी चाहिये थी, जिम्मेदारी किसकी है? 

और अब कह रहे हैं, अगर जरूरत पड़े तो हमें जंग करनी चाहिये, और हमें पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाना चाहिये कि वे फिर कभी ऐसी लापरवाह हरकतें करने की हिम्मत न करें.

एक किताब के विमोचन के मौके पर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने 22 अप्रैल के पहलगाम अटैक को ‘विभाजन के अनसुलझे सवालों’ का नतीजा बताया था.
और, अय्यर की सलाह थी, हमें सवालों के जवाब खोजने चाहिये, किसी भी मुसलमान से पूछेंगे तब भी जवाब मिल ही जाएंगे.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज तो बाकियों से चार कदम आगे ही नजर आ रहे हैं. सैफुद्दीन सोज कहते हैं, अगर पाकिस्तान कह रहा है कि पहलगाम अटैक में वो शामिल नहीं है, तो हमें उसकी बात मान लेनी चाहिये. 

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बेशक इन नेताओं के बयान कांग्रेस के आधिकारिक बयान या राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की बातों से मेल नहीं रखते, लेकिन ये बातें आखिर कांग्रेस के अलावा किसके खाते में जमा होंगी?

शशि थरूर भी कांग्रेस के ही सांसद हैं, लेकिन वो ऐसी बातें नहीं कर रहे हैं. और यही वजह है कि कांग्रेस नेता उदित राज पूछ रहे हैं कि शशि थरूर बीेजेपी के प्रवक्ता हैं क्या?

थरूर और ओवैसी की भी बातें सुननी चाहिये

देखा जाये तो उरी हमले के बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल गांधी के मुंह से ‘जवानों के खून से होगी’ खेलने जैसी बातें भी सुनी जा चुकी हैं, जिसके सबूत आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल मांग रहे थे, लेकिन शशि थरूर को अपनी बात के लिए कांग्रेस के भीतर से ही खरी खोटी सुनाई जा रही है. 

शशि थरूर ने पहलगाम हमले पर इजरायल की तरह सरकार के एक्शन का इंतजार करने की सलाह दी है. कहते हैं, जाहिर है, पूरी तरह से कोई पुख्ता खुफिया जानकारी नहीं थी. कुछ नाकामियां थीं, लेकिन हमारे पास इजरायल का उदाहरण है, जिसके पास दुनिया की सबसे अच्छी खुफिया सेवा मानी जाती है… दो साल पहले 7 अक्टूबर को जो हुआ वो आश्चर्यजनक था… जिस तरह इजरायल के लोग आखिर तक इंतजार कर रहे हैं… मुझे लगता है कि हमें भी मौजूदा संकट को देखना चाहिये और फिर सरकार से जवाबदेही की मांग करनी चाहिये.

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और वैसे ही AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो को जवाब दिया है. बिलावल भुट्टो ने कहा था, मैं सिंधु दरिया के पास खड़े होकर साफ कहना चाहता हूं कि सिंधु नदी हमारी थी, है और हमारी ही रहेगी… या तो इस नदी से हमारा पानी बहेगा, या फिर उसका खून जो हमारी हिस्सेदारी छीनना चाहता है.

मीडिया के पूछने पर असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं, छोड़िये ना... बचपने की बातें नहीं करना... उनके नाना साहब के साथ क्या हुआ था, उन्हें नहीं मालूम? उनकी वालिदा से क्या हुआ था, उन्हें नहीं मालूम? उनकी वालिदा को दहशतगर्दों ने मार डाला था… आप किससे क्या बात कर रहे हैं? उन्हें कोई अंदाजा भी है क्या? 

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