अयोध्या में रामलला जन्मभूमि मंदिर का फाइनल उद्घाटन 25 नवंबर को होना तय हुआ है. संभावना है कि मंदिर पर ध्वजारोहण का कार्यक्रम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के कर कमलों से संपन्न होगा. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर की माने तो मंदिर से जुड़ा ट्रस्ट आरएसएस और वीएचपी की मदद से इस समारोह के अतिथि सूची को अंतिम रूप देने का काम कर रहा है.
इस रिपोर्ट के अनुसार मंदिर के इस समापन कार्यक्रम का थीम होगा समरस समाज, जिसमें आमंत्रितों में मुख्य रूप से अयोध्या के आसपास के 24 जिलों के जमीनी स्तर के चेहरे शामिल होंगे. जैसे अवध, गोरखपुर और कानपुर क्षेत्र के लोग शामिल होंगे. बताया जा रहा है कि इस समारोह में स्थानीय और वंचित समूहों को शामिल करने पर जोर होगा. अतिथि सूची में 24 पड़ोसी जिलों के ग्राम प्रधानों के साथ-साथ अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदायों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे. ये आमंत्रित लोग चर्चित चेहरे नहीं होंगे. ऐसे लोगों को आमंत्रित किया जाएगा जो अपने तरीके से समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. जाहिर है कि यह सब कहीं न कहीं एक रणनीति के तहत ही हो रहा है.
बिहार चुनावों की तारीख और राम मंदिर का मुख्य समारोह
अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट के अधिकारियों के अनुसार, ध्वजारोहण की रस्में 23 नवंबर से शुरू होंगी, और मुख्य समारोह 25 नवंबर को होगा, जो विवाह पंचमी का भी दिन है, जब भगवान राम और माता सीता के विवाह का उत्सव मनाया जाता है. जाहिर है कि सेलिब्रेशन करीब 15 दिन पहले से ही शुरू हो जाएगा. मतलब माहौल बनाना शुरू हो जाएगा. 161 फीट ऊंचे मुख्य मंदिर के शिखर पर पहले से ही 42 फीट लंबा ध्वज स्तंभ स्थापित किया जा चुका है, जिस पर ध्वज फहराया जाएगा. उसी दिन मंदिर परिसर में बने अन्य देवी-देवताओं के छोटे मंदिरों पर भी ध्वज फहराए जाएंगे.
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि जब ध्वजारोहण एक आदिवासी महिला जो भारत की सर्वोच्च नागरिक पद पर हैं के हाथों संपन्न होगा तो इसका संदेश दूर-दूर तक जाएगा. और इसका असर बिहार चुनाव पर भी होगा ही. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए वोटिंग तिथियां अभी आधिकारिक रूप से घोषित नहीं की गई हैं. लेकिन उम्मीद की जा रही है कि चुनाव नवंबर में ही संपन्न होगा.
बिहार में एससी-एसटी, अति पिछड़ा और पिछड़ा वोट कितना अहम
रामलला मंदिर का कार्यक्रम भले यूपी में हो, लेकिन उसमें समाहित समरसता वाले बिंदु को बिहार में भी प्रचारित तो किया जाएगा ही. बिहार की राजनीति जातिगत समीकरणों पर आधारित रही है. विशेषकर एससी, एसटी, अति पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग के वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं. 2023 के बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य की कुल आबादी 13.07 करोड़ है, जिसमें ईबीसी 36.01%, ओबीसी 27.13%, एससी 19.65% और एसटी 1.68% हैं. कुल मिलाकर, ये समूह कुल आबादी का करीब 84.47% हो जाता है. जाहिर है कि बिहार विधानसभा चुनाव जीतने के लिए इन वर्गों का समर्थन अति जरूरी है. ईबीसी और ओबीसी को मिलाकर पिछड़े वर्ग 63.13% हैं, जो बिहार की राजनीति का केंद्र हैं.
ईबीसी में 113 छोटी-छोटी जातियां (जैसे निषाद, केवट, तेली, कुम्हार) शामिल हैं, जो आर्थिक-सामाजिक रूप से सबसे अधिक वंचित हैं. अयोध्या के राम मंदिर के फाइनल उद्घाटन समारोह में इन जातियों के आम लोगों को निमंत्रित करने की तैयारी है. जाहिर है कि इसका संदेश बिहार तक ही नहीं पूरे देश में जाएगा.
2020 विधानसभा चुनाव में एससी आरक्षित 38 सीटों पर एनडीए ने 24 जीतीं, जबकि महागठबंधन को 14 मिलीं. ईबीसी और ओबीसी ने एनडीए को बढ़त दी, जहां जेडीयू ने ईबीसी को 21 टिकट दिए. कुल 243 सीटों में एनडीए ने 125 जीतीं, जिसमें पिछड़े वोटों की भूमिका प्रमुख थी. एसटी वोट कम (1.68%) हैं, लेकिन आदिवासी क्षेत्रों (जैसे संथाल) में प्रभावी हैं. जाहिर है कि एनडीए इस बार न केवल अपनी सफलता को दोहराना चाहेगी बल्कि और बड़े लेवल पर सफलता का स्वाद लेना चाहेगी.
विपक्ष के कई सवालों का जवाब
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के ध्वजारोहण समारोह भारतीय जनता पार्टी की एक सुनियोजित रणनीति को दिखाती है. यह विपक्ष के उन सवालों का जवाब देने का प्रयास भी है जो राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोहों (22 जनवरी 2024 और जून 2024) के दौरान उठाए गए थे. विशेष रूप से, विपक्ष ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को प्राण प्रतिष्ठा में आमंत्रित न करने और केवल उच्च-प्रोफाइल हस्तियों को बुलाने के लिए बीजेपी की आलोचना की थी. यह समारोह इन सवालों को संबोधित करने का एक रणनीतिक कदम प्रतीत होता है.
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों, विशेष रूप से समाजवादी पार्टी (सपा) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित न करने पर तीखी आलोचना की थी. विपक्ष ने इसे एक जानबूझकर किया गया अपमान बताया, यह दावा करते हुए कि एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति को मंदिर के उद्घाटन से बाहर रखा गया, जो सामाजिक समावेशिता के खिलाफ है. कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने ट्वीट किया था कि आदिवासी महिला को अपमानित करना बीजेपी की मानसिकता दर्शाता है, और सपा नेता अखिलेश यादव ने इसे जातिवादी मानसिकता का प्रतीक बताया था. अब जब ध्वज फहराने का काम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों संपन्न होगा तो जाहिर है कि विरोधियों को उनका जवाब मिल जाएगा.
प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने केवल अंबानी और बच्चन जैसे हस्तियों को बुलाने पर सवाल उठाया था. राहुल गांधी ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह को मोदी का इवेंट करार देते हुए दावा किया था कि इस समारोह में आम लोग, विशेष रूप से दलित, पिछड़े और स्थानीय समुदाय, उपेक्षित रहे. राहुल ने इसे सामाजिक असमानता का प्रतीक बताया और कहा कि मंदिर का उद्घाटन केवल अमीरों के लिए था.
अब जैसी खबर आ रही है कि ट्रस्ट ने अयोध्या के आसपास के 24 जिलों (अवध, गोरखपुर, कानपुर क्षेत्र) से ग्राम प्रधानों, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित करने का निर्णय लिया है. इतना ही नहीं अतिथि सूची में चर्चित चेहरे नहीं, बल्कि वे लोग होंगे जो समाज में अपने तरीके से महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. लगभग 5,000 अतिथियों में स्थानीय और वंचित समूहों को प्राथमिकता दी जाएगी.
इतना ही नहीं ट्रस्ट में पूर्व आईएफएस अधिकारी और आरएसएस पदाधिकारी कृष्ण मोहन की नियुक्ति में भी संदेश देने की कोशिश है. कृष्णमोहन अनुसूचित जाति से आते हैं. मोहन हरदोई के हैं और प्राण प्रतिष्ठा में यजमान दंपति थे. उनका मंदिर ट्रस्ट में होना दलित समुदाय को प्रतिनिधित्व देने जैसा है. उनकी नियुक्ति कामेश्वर चौपाल (दलित) की जगह हुई है, जिनकी कुछ दिनों पहले ही मृत्यु हुई है.
पूर्वी यूपी बीजेपी के लिए रामबाण साबित होगा ये कार्यक्रम
बीजेपी के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश में 2027 विधानसभा और पंचायत चुनावों की रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है. पूर्वांचल, जिसमें गोरखपुर, बनारस, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर जैसे 24 से अधिक जिले शामिल हैं, बीजेपी का पारंपरिक गढ़ रहा है, लेकिन 2024 लोकसभा चुनावों में पार्टी को यहां भारी झटका लगा.
2022 विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने पूर्वांचल की लगभग 70% सीटें जीतीं, जहां योगी आदित्यनाथ की छवि और हिंदुत्व एजेंडे ने दलित और ओबीसी वोटों को एकजुट किया. लेकिन 2024 लोकसभा में पूर्वांचल के 14 लोकसभा क्षेत्रों में से सपा-कांग्रेस गठबंधन ने 10 से अधिक जीते. यहां तक कि फैज़ाबाद (अयोध्या) में बीजेपी हार गई, जहां राम मंदिर के बावजूद स्थानीय असंतोष (जैसे राम पथ निर्माण से बेदखली) ने वोट शेयर घटाया. पूर्वांचल में यादव (14%), कुर्मी (8%), दलित (21%) और मुस्लिम (19%) वोट सपा की ओर शिफ्ट हुए, जबकि बीजेपी का वोट शेयर 45% से घटकर 35% रह गया.
अगले यूपी में होने वाले पंचायत चुनावों के लिए भी यह फैसला कारगर साबित हो सकता है. पिछड़ा-दलित के लिए ये फैसला निर्णायक साबित होगा. दलित-ओबीसी पर फोकस सपा के PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) नैरेटिव को चुनौती देगा. इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने 70 नए जिला अध्यक्ष नियुक्त किए, जिनमें 25 ओबीसी और 6 एससी हैं.