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राहुल गांधी के बेगूसराय दौरे से पहले कांग्रेस नेताओं ने लालू-तेजस्वी से मुलाकात क्यों की?

राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी के बेगूसराय दौरे के तीन दशक बाद वहां पहुंचे थे. कन्हैया कुमार और अन्य साथी कांग्रेस नेताओं के साथ करीब एक किलोमीटर तक पदयात्रा में भी शामिल हुए - सवाल है कि राहुल गांधी का ये दौरा कन्हैया कुमार के सपोर्ट में था या लालू यादव के खिलाफ?

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राहुल गांधी का कन्हैया कुमार के साथ बेगूसराय में पदयात्रा ही लालू यादव को सबसे सख्त मैसेज है.
राहुल गांधी का कन्हैया कुमार के साथ बेगूसराय में पदयात्रा ही लालू यादव को सबसे सख्त मैसेज है.

राहुल गांधी धीरे धीरे अपने तेज एक्शन से राजनीतिक विरोधियों को जवाब देने लगे हैं. दिल्ली के बाद बिहार में ऐसी झलक देखने को मिल रही है. 

दिल्ली में तो तस्वीर शुरू से ही साफ थी - लेकिन, बिहार में अभी ये समझना मुश्किल हो रहा है कि कांग्रेस राहुल गांधी की राजनीतिक विरोधी बीजेपी को ही मानती है, या अब लालू यादव और तेजस्वी यादव को भी?

विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की दिल्ली यात्रा से दूर रहे, राहुल गांधी ने बिहार यात्रा में शामिल होकर अपने राजनीतिक विरोधियों का मुंह बंद करने की अपनी तरफ से कोशिश तो की है, लेकिन ऐसा होता कहां है. 

कन्हैया कुमार बिहार में 'पलायन रोको, नौकरी दो' यात्रा पर निकले हुए हैं, और राहुल गांधी उसमें शामिल होकर कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई करने बेगूसराय पहुंचे थे. 

बेगूसराय में करीब एक किलोमीटर तक पदयात्रा करने के बाद राहुल गांधी पटना लौट गये, जहां उनको कांग्रेस के एक और कार्यक्रम में शामिल होना था. राहुल गांधी के ताबड़तोड़ बिहार दौरे आने वाले बिहार चुनाव को लेकर कांग्रेस की रणनीति की तरफ साफ इशारा कर रहे हैं. 

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कांग्रेस की तरफ से ये जरूर कहा गया है कि पार्टी लालू और तेजस्वी यादव के राष्ट्रीय जनता दल के साथ ही महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ेगी, लेकिन राहुल गांधी और बिहार कांग्रेस के नेताओं की गतिविधियां तो कुछ और ही इशारे कर रही है. निश्चित तौर पर कांग्रेस किसी कारणवश गठबंधन न होने की सूरत में अपने प्लान-बी पर भी लगातार काम कर रही है.

लेकिन, राहुल गांधी के तीसरे बिहार दौरे से ठीक पहले कांग्रेस नेताओं का लालू यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात करना, थोड़ा अजीब लगता है - क्या बिहार कांग्रेस को राहुल गांधी के दौरे के लिए लालू यादव से परमिशन लेनी पड़ रही है, या नौबत ये आ गई है कि सफाई देनी पड़ रही है.

लालू-तेजस्वी से कांग्रेस नेताओं की मुलाकात के मायने

राहुल गांधी इस साल जब पहली बार बिहार दौरे पर गये थे, तो खुद पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर पहुंचकर लालू यादव के पूरे परिवार से मिले थे - और इस बार उनके दौरे से पहले कांग्रेस नेताओं ने लालू यादव और तेजस्वी यादव से अलग अलग मुलाकात की है, जो स्वाभाविक तौर पर हैरान कर रही है. 

राहुल गांधी का पटना जाने पर लालू यादव और परिवार से मिलना और कांग्रेस नेताओं का उनके दौरे से पहले लालू यादव और तेजस्वी यादव से मिलना - दोनो अलग अलग बातें हैं, और दोनो बातों के मायने भी बिल्कुल अलग हैं. 

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सवाल तो ये भी उठ रहा था कि कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु लालू यादव से आखिर मिल क्यों नहीं रहे थे? और वैसे ही बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार ने तेजस्वी यादव से राहुल गांधी के दौरे से पहले क्यों मुलाकात की - क्या तेजस्वी यादव को कोई मैसेज देना था?

ऐसा पहले कभी तो देखने को नहीं मिला. अगर ऐसी मुलाकातें सामान्य हैं, तो सार्वजनिक नहीं हुईं - क्या इन मुलाकातों के केंद्र में कन्हैया कुमार और पप्पू यादव भी हो सकते हैं? या कोई और खास वजह है?

तिहाड़ जेल से रिहा होने के बाद जब कन्हैया कुमार बिहार लौटे थे, तो लालू यादव से मिलने गये थे. पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया था, लेकिन आशीर्वाद कभी मिला नहीं. 

कन्हैया को आशीर्वाद मिला होता तो 2019 के चुनाव में उनको आरजेडी उम्मीदावर से मुकाबला नहीं करना पड़ता. आशीर्वाद मिला होता, 2024 का लोकसभा चुनाव वो बेगूसराय से लड़ सकते थे, दिल्ली में मनोज तिवारी से हार का मुंह नहीं देखना पड़ता. 

क्योंकि लालू परिवार न तो कन्हैया कुमार को पंसद करता है, और न ही पप्पू यादव को. कन्हैया कुमार को तो लालू परिवार ने बिहार से चुनाव भी नहीं लड़ने दिया, पप्पू यादव को भी कांग्रेस का खुला सपोर्ट नहीं मिलने दिया, ये बात अलग है कि पूर्णिया की सीट आरजेडी को नहीं ही मिल पाई. 

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अब पप्पू यादव का भी एक बयान मार्केट में तेजी से चल रहा है, जो उनसे एक सवाल के जवाब में आया है - बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा होना चाहिये. 

भला ये बात लालू परिवार कैसे हजम कर सकता है, जो नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है, राजेश कुमार के बारे में ये सब कैसे सुन सकता है?

और, पप्पू यादव का ये बयान ऐसे वक्त मार्केट में आया है जब राहुल गांधी के बिहार दौरे का कार्यक्रम बना है, और महागठबंधन में रहकर चुनाव लड़ने वाला बयान देने के बावजूद कांग्रेस नेता तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री पद का चेहरा होने की बात से पल्ला झाड़ लेते हैं - ये बोलकर कि मिल बैठ कर तय किया जाएगा. 

तो क्या कृष्णा अल्लावरु और राजेश कुमार इन्हीं मुद्दों पर कांग्रेस का पक्ष रखने के लिए लालू यादव और तेजस्वी यादव से मिले थे?

राहुल गांधी के बेगूसराय दौरे का मकसद क्या है?

राहुल गांधी से पहले 1991 के लोकसभा चुनाव से पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी बेगूसराय का दौरा किया था - राहुल गांधी का इस साल ये तीसरा दौरा है. जाहिर है, ये सब यूं ही तो नहीं ही है.

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राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कन्हैया कुमार को लेकर एक महत्वपूर्ण बात कही थी. जयराम रमेश का कहना था कि राहुल गांधी के बाद यात्रा में सबसे लोकप्रिय कन्हैया कुमार ही हैं. 

और अब उन्हीं कन्हैया कुमार की यात्रा में राहुल गांधी पहुंचे हैं - तो क्या राहुल गांधी का बेगूसराय दौरा कन्हैया कुमार को शुकराने की सौगात है?

क्या राहुल गांधी बेगूसराय पहुंचकर कन्हैया कुमार को वैसे ही एनडोर्स कर रहे हैं, जैसे 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर मंजूरी दी थी - लेकिन, अब लगता है कि कांग्रेस ने अपना एनडोर्समेंट वापस लेना चाहती है?

बिहार दौरे से पहले राहुल गांधी ने सोशल साइट एक्स पर एक पोस्ट लिखी थी, युवा साथियों, मैं 7 अप्रैल को बेगूसराय आ रहा हूं. पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा में आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने.

और राहुल गांधी ने अपने युवा साथियों से अपनी ही तरह सफेद टी-शर्ट पहनकर आने की अपील की थी. राहुल गांधी सफेद टी-शर्ट को लेकर भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी खासे चर्चित रहे. कभी उसकी कीमत को लेकर, तो कभी उसी में भयंकर सर्दी गुजार देने को लेकर - और प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया को समझा रहे थे कि ठंड उसे ही लगती है, जो डरता है. 

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अखिलेश सिंह को हटाकर दलितों से कनेक्ट होने के लिए कांग्रेस ने राजेश कुमार को बिहार की कमान सौंपी है - और अब लगता है, कन्हैया कुमार कुमार को स्थापित करने की कवायद शुरू हो चुकी है. कन्हैया कुमार भी अखिलेश प्रसाद सिंह की तरफ भूमिहार तबके से ही आते हैं, लेकिन जेएनयू की घटना के बाद देशद्रोह के केस की वजह से कन्हैया कुमार को अपने समाज का सपोर्ट नहीं मिल रहा था. 

गुजरते वक्त के साथ कन्हैया कुमार के खिलाफ केस का असर भी थोड़ा कम पड़ता दिखाई पड़ रहा है - और भूमिहार समाज भी अब पहले की तरह कन्हैया कुमार को सीधे सीधे खारिज नहीं कर पा रहा है.

लेफ्ट छोड़ने के बाद कांग्रेस में शामिल होकर कन्हैया कुमार जब बिहार पहुंचे थे तो सदाकत आश्रम से तीस साल का हिसाब मांग रहे थे. 15 साल का लालू परिवार से, और 15 साल का नीतीश कुमार से. 

तभी लालू यादव गुस्से से आग बबूला हो गये थे, और तत्कालीन बिहार कांग्रेस प्रभारी भक्तचरण दास को ‘भक्चोन्हर’ तक कह डाला था, जिसके बाद आरजेडी और कांग्रेस के रिश्ते तनावपूर्ण हो गये थे - और कहते हैं कि लालू यादव और सोनिया गांधी के फोन पर बातचीत होने के बाद स्थिति सामान्य हो पाई थी. 

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लगता है राहुल गांधी भी मौका देखकर कन्हैया कुमार को बिहार की राजनीति में स्थापित करने में जुट गये हैं - और अब उन्हें लालू परिवार की भी बहुत परवाह नहीं लगती.

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