मायावती की भी बिहार चुनाव में एंट्री हो गई है. और, ये ठीक उसी दिन हुआ है जब बिहार में पहले चरण का मतदान हो रहा है. बिहार में 6 नवंबर के बाद 11 नवंबर को दूसरे चरण में वोट डाले जाएंगे. 14 नवंबर को वोटों की गिनती के बाद नतीजे आएंगे.
मायावती ने कैमूर के भभुआ क्षेत्र का रुख किया है, ताकि उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे आसपास के इलाकों तक बीएसपी की बात पहुंचाई जा सके. बिहार की 200 से ज्यादा सीटों पर तो मायावती पहले भी चुनाव लड़ती रही हैं, 2025 के लिए पहले ही सभी 243 सीटों पर बीएसपी के चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था.
सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी करने वालों में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के अलावा अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी है - और मकसद के हिसाब से देखें तो लब्बोलुआब सभी की भूमिका वोटकटवा से ज्यादा नजर नहीं आ रही है.
मायावती के राजनीतिक विरोधी यूपी में बीएसपी पर बीजेपी की मददगार बनने का इल्जाम लगाते रहे हैं. और, ये आरोप खासतौर पर मुस्लिम आबादी वाले इलाकों के लिए बीएसपी की रणनीति को लेकर लगता है - यूपी की ही तरह बिहार में भी ये नजारा दिखता है, खासकर तब जब प्रशांत किशोर और असदुद्दीन ओवैसी की रणनीति मुस्लिम प्रभाव वाली विधानसभा सीटों पर समझने की कोशिश करते हैं.
जिस तरह से मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए हैं, प्रशांत किशोर और असदुद्दीन ओवैसी भी काफी हद तक उसी रोल में नजर आते हैं, जिस तरह के बीएसपी नेता मायावती पर यूपी में आरोप लगाए जाते हैं.
मुस्लिम बहुल इलाकों में किसके कितने उम्मीदवार
बिहार की अगर मुस्लिम वोटर के प्रभाव वाले 11 सीटों की बात करें, तो बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचाधामन, बायसी, कसबा, कदवा, बलरामपुर, अररिया, जोकीहाट और अमौर में उतारे गए उम्मीदवारों के जरिए राजनीतिक दलों की रणनीति समझनी होगी - और उसी रणनीति के जरिए उनका मकसद भी समझा जा सकता है.
1. हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सभी सीटों पर AIMIM के उम्मीदवार उतारे हैं. प्रशांत किशोर एक सीट छोड़कर 10 सीटों पर जन सुराज पार्टी के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ा रहे हैं. बाकी पार्टियों ने अपने अपने हिसाब से टिकट दिया है.
2. मुस्लिम आबादी वाली इन 11 सीटों में से 3 तो ऐसी हैं, जिन पर AIMIM और जन सुराज पार्टी के साथ साथ महागठबंधन और NDA तक ने मुस्लिम नेताओं को ही टिकट दिया है. वैसे NDA ने 11 में से 4 सीटों पर मुस्लिम चेहरों पर ही भरोसा किया है.
3. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 4 जबकि चिराग पासवान की पार्टी LJP-R ने एक मुसलमान को टिकट दिया है. बीजेपी की तरफ से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में नहीं है.
4. मुस्लिम दबदबे वाली इन 11 सीटों पर 2020 के विधानसभा चुनाव में NDA को कहीं भी जीत नहीं मिली थी. AIMIM को सबसे ज्यादा 5 सीटें मिली थीं. कांग्रेस के हिस्से में 4, आरजेडी और सीपीआई के हिस्से में 1-1 सीट आई थी. बाद में AIMIM के 4 विधायकों ने आरजेडी में शामिल होकर तेजस्वी यादव को अपना नेता मान लिया.
मुस्लिम वोटों के बंटवारे का फायदा और नुकसान
चुनाव से पहले प्रशांत किशोर ने मुस्लिम वोट न बंटने देने की तरफ इशारा किया था. प्रशांत किशोर का कहना था, खुद को मुसलमानों का रहनुमा बताने वाली पार्टियों से हमारा यह कहना है… अगर मुसलमानों की इतनी चिंता है तो वे भी घोषणा करें कि जन सुराज जहां से मुस्लिम कैंडिडेट को लड़ाएगा, वहां से महागठबंधन अपना मुस्लिम कैंडिडेट नहीं देगा. लेकिन, ऐसा हुआ नहीं. वैसे भी महागठबंधन में ही फ्रेंडली मैच चल रहा हो, तो बिहार के चुनाव मैदान में ताल ठोकने का तो सबको हक मिला हुआ है.
2022 के यूपी चुनाव में बीएसपी को लेकर केंद्रीय मंत्री अमित शाह का एक बयान काफी चर्चित रहा. अमित शाह का कहना था कि बीएसपी की प्रासंगिकता अभी खत्म नहीं हुई है. बीजेपी की तरफ से दिए गए राजनीतिक बयान के खास मायने निकाले गए थे. माना जाता है कि मुस्लिम वोटर उसी पार्टी के उम्मीदवार को वोट देता है, जिसके बारे में उसे लगता है कि वो बीजेपी को हराने में सक्षम मानता है. अब अगर मुस्लिम वोटर को लगता है कि बीएसपी नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी बीजेपी को हराने में सक्षम है, तो वो उसके हिसाब से फैसला लेता है. अमित शाह ने बीएसपी की प्रासंगिकता बताकर मुस्लिम वोटों के एकतरफा चले जाने से रोकने की कोशिश की थी.
बिहार में लालू यादव M-Y फैक्टर की राजनीति करते हैं. मुस्लिम और यादव वोट की. आरजेडी के साथ महागठबंधन में कांग्रेस भी है, लिहाजा मुस्लिम वोटर को महागठबंधन के पक्ष में लाने की कोशिश है. लेकिन, अगर वोट बंट जाता है, तो आरजेडी और कांग्रेस को वो फायदा नहीं मिलने वाला. जाहिर है, ऐसे में फायदे में एनडीए यानी बीजेपी और जेडीयू ही रहेंगे - फायदा पहुंचा का आरोप भी ऐसे में प्रशांत किशोर और असदुद्दीन ओवैसी पर ही लगेगा.