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नीतीश कुमार की एनडीए सरकार में 'परिवारवाद' ने भी ली शपथ, कुछ एंट्री बेहद दिलचस्प

बिहार चुनाव से पहले राजनीति में परिवारवाद पर खूब चर्चा होती रही, लेकिन टिकट तो बांटे ही गए, एनडीए की नई सरकार में ऐसे मंत्री भी देखने को मिल रहे हैं. सम्राट चौधरी को छोड़ भी दें, तो दीपक प्रकाश और संतोष कुमार सुमन जैसे विधायकों को मंत्री बनाया है, जो परिवारवाद की राजनीतिक पृष्ठभूमि से ही आते हैं.

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राज्यसभा सदस्य RLM नेता उपेंद्र कुशवाहा मंत्री बेटे दीपक प्रकाश और विधायक पत्नी स्नेहलता के साथ. (Photo: FB/Snehlata Kushwaha)
राज्यसभा सदस्य RLM नेता उपेंद्र कुशवाहा मंत्री बेटे दीपक प्रकाश और विधायक पत्नी स्नेहलता के साथ. (Photo: FB/Snehlata Kushwaha)

नीतीश कुमार 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए हैं. नीतीश कुमार के साथ 26 मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली है. सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा के साथ कैबिनेट में कास्ट फैक्टर का भी पूरा ध्यान रखा गया है - और, बिहार सरकार का नया मंत्रिमंडल परिवारवाद का भी बेहतरीन नमूना बना है. 

पूरे हम्माम में देखें तो नीतीश कुमार ने खुद को परिवारवाद के साये से बिल्कुल अलग रखा है. बिहार चुनाव से पहले उनके बेटे निशांत कुमार के राजनीति में आने की भी खासी चर्चा हुई थी. जेडीयू नेताओं के साथ साथ एनडीए पार्टनर जीतनराम मांझी भी निशांत कुमार को राजनीति में लाए जाने की वकालत कर रहे थे, लेकिन नीतीश कुमार ने बेटे को राजनीति से दूर ही रखा है.

और, ये उसी बिहार की बात है जहां प्रचलित है कि नेता का बेटा राजनीतिक विरासत नहीं संभालेगा तो क्या करेगा? चुनाव नतीजे आने के बाद भी निशांत कुमार की तस्वीरें और वीडियो शेयर करके लोग पूछ रहे हैं कि कोई पहचानता है क्या? 

2020 के बिहार चुनाव में भी नीतीश कुमार ने परिवारवाद की राजनीति पर खूब हमला बोला था. लालू यादव को निशाना बनाते हुए यहां तक कहा था कि विकास के नाम पर किया क्या है? 'बच्चे ही तो पैदा किए हैं!' बाद में विधानसभा में तेजस्वी यादव ने आपत्ति जताई थी, और खूब हंगामा भी हुआ था.

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छह महीने पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में भी परिवारवाद की राजनीति का मुद्दा उठाया था. और, बीजेपी नेताओं को विशेष रूप से नसीहत दी थी कि जमींदारी प्रथा खत्म होनी चाहिए, और राजनीति में परिवारवाद की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. चुनावों के दौरान शशि थरूर ने भी एक लेख में परिवारवाद की राजनीति की बुराइयों पर प्रकाश डालते हुए कई सलाह पेश किये थे. खास बात ये थी कि कांग्रेस नेता शशि थरूर की  लिस्ट में सबसे ऊपर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के ही नाम थे. 

बिहार दौरे में मोदी ने बीजेपी नेताओं से साफ शब्दों में कहा था, ‘राजनीति में परिवारवाद नहीं होना चाहिए... जमींदारी प्रथा नहीं होनी चाहिए... ऐसा न हो कि आप नहीं तो हमारे पुत्र-पुत्री… ये नहीं होना चाहिए.

और, लगे हाथ सबसे बड़ा सवाल भी सामने रख दिया था, 'आखिर कार्यकर्ता मेहनत क्यों करता है? उसके मेहनत का फल क्यों नहीं मिलना चाहिए?'

लेकिन, बिहार में एनडीए सरकार के शपथग्रहण के बाद ये भी पूरी तरह साफ हो गया है कि राजनीति में परिवारवाद की बातें भी चुनावी जुमला ही हैं. 

नीतीश कैबिनेट में परिवारवाद की मिसाल

बिहार चुनाव में एनडीए के चुनकर आए 29 विधायक ऐसे हैं जिनकी पृष्ठभूमि परिवारवाद की राजनीति की ही है. और, इनमें 11 विधायक बीजेपी, और 11 ही विधायक जेडीयू के भी हैं - अब नीतीश कुमार की कैबिनेट भी तो इन्हीं विधायकों से बननी थी,  बनी भी है. 

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1. राष्ट्रीय लोक मोर्चा नेता उपेंद्र कुशवाहा ने पत्नी स्नेहलता को विधानसभा चुनाव का टिकट देकर काफी चर्चा बटोर ली थी, शायद इसीलिए अपने कोटे से मंत्री बनाने की बात आई तो बेटे को आगे कर दिया. लिहाजा राष्ट्रीय लोक मोर्चा कोटे से दीपक प्रकाश को मंत्री पद की शपथ दिला दी गई है. अभी वो विधायक नहीं हैं, इसलिए माना जा रहा है कि उनको विधान परिषद के जरिए सदस्यता दिलाई जाएगी. 

2. बांकीपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर विधायक चुने गए नितिन नबीन भी बिहार सरकार में मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि नितिन नबीन पुराने भाजपाई नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा के बेटे हैं - और अब परिवारवाद की राजनीति के जरिए सरकार का हिस्सा बन गए हैं. 

3. बीजेपी विधायक श्रेयशी सिंह को भी नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया है. श्रेयशी सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी हैं. श्रेयसी सिंह जमुई से विधायक हैं. 

4. बिहार चुनाव से पहले ही मुजफ्फरपुर के सांसद रहे अजय निषाद ने बीजेपी में घर वापसी की थी, और फिर उनकी पत्नी रमा निषाद को बीजेपी का टिकट भी मिल गया. चुनाव जीतकर विधायक बन गईं, और अब बिहार सरकार में मंत्री भी बन गई हैं. रमा निषाद औराई से विधायक बनी हैं. 

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5. केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने सारे ही टिकट परिवार के लोगों और रिश्तेदारों को दिए थे, लेकिन मंत्री बेटे को बनवाया है. जीतन राम मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन फिर से नीतीश कुमार के कैबिनेट साथी बन गए हैं.  

एनडीए में परिवारवाद के नमूने

1. बिहार चुनाव में एनडीए के परिवारवाद की बात करें, तो HAM यानी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी टॉपर बने हैं. NDA में मांझी को 6 सीटें मिली थीं. मांझी ने परिवार के लोगों और रिश्तेदारों को ही टिकट दिया था. नतीजे आने पर मालूम हुआ कि मांझी की बहू, समधन और दामाद सभी विधायक बन गए हैं.

2. उपेंद्र कुशवाहा को भी NDA में 6 सीटें मिली थीं. उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता सासाराम सीट से विधायक बन चुकी हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश सरकार में मंत्री रहे संतोष सिंह के भाई आलोक कुमार सिंह को दिनारा विधानसभा सीट से टिकट दिया था, वो चुनाव तो जीत गए लेकिन उनको मंत्री नहीं बनाया गया है. 

3. सम्राट चौधरी, नीतीश मिश्रा और श्रेयसी सिंह जैसे बड़े चेहरे भी परिवारवाद की ही राजनीति से आए हैं, और बीजेपी के ऐसे 11 विधायक चुने गए हैं. 

4. जेडीयू की बात करें तो अनंत सिंह, ऋतुराज कुमार और चेतन आनंद जैसे बड़े नाम परिवारवाद की पृष्ठभूमि वाले ही विधायक हैं. 
 

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