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ट्रंप-टैरिफ पर मोदी के दो टूक संदेश के आगे क्या टिक पाएगी राहुल गांधी की 'अडानी थ्योरी'?

पीएम मोदी ने गुरुवार को कहा कि भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरे भाई-बहनों के हितों के साथ कभी भी समझौता नहीं करेगा. टैरिफ को लेकर अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की धमकियों के बीच मोदी ने बता दिया क‍ि क्‍यों वे समझौता नहीं कर सकते. दूसरी तरफ राहुल गांधी ने फिर से अडानी राग अलापा है, और कहा है कि मोदी टैरिफ को लेकर इसलिए चुप हैं, क्‍योंकि अमेरिकी के हाथ में अडानी की गर्दन है.

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नरेंद्र मोदी,  राहुल गांधी और डोनाल्ड ट्रंप
नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी और डोनाल्ड ट्रंप

अमेरिका से टैरिफ वॉर के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बिना नाम लिए उन्हें संदेश दिया है. मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी भी कीमत पर अमेरिका की शर्तों को नहीं मानने वाला है. देश के किसानों के हक में बोलते हुए उन्होंने कहा कि उनके हितों की रक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है. भारत कभी भी किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हितों से समझौता नहीं करेगा.

उन्होंने कहा कि उन्हें पता है कि इसकी भारी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी और वे इसके लिए तैयार हैं. उन्होंने न केवल देश की जनता बल्कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भी इशारे इशारे में ही समझा दिया कि वो अपनी अडानी थियरी में संशोधन कर लें. क्योंकि भारत को अगर अडानी को बचाना होता तो ट्रंप की शर्तों को मानने में देर नहीं लगती. दरअसल राहुल गांधी ने बुधवार को कहा था कि मोदी अमेरिका के खिलाफ इसलिए नहीं बोल रहे हैं क्यों अडानी के खिलाफ अमेरिका में जांच चल रही है. राहुल का आरोप स्पष्ट था कि अडानी को बचाने के लिए मोदी सरकार अमेरिका के खिलाफ चुप बैठी हुई है. पर गुरुवार को पीएम मोदी ने अपना रुख खुलकर क्लीयर कर दिया है.

नई दिल्ली में एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि हमारे लिए किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है. भारत अपने किसानों, पशुपालकों के और मछुआरे भाई-बहनों के हितों के साथ कभी भी समझौता नहीं करेगा और मैं जानता हूं कि व्यक्तिगत रूप इसके लिए मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं. मेरे देश के किसानों के लिए, मेरे देश के मछुआरों के लिए, मेरे देश के पशुपालकों के लिए आज भारत तैयार है.

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जाहिर है कि मोदी का इस बयान का पहला उद्दैश्य अमेरिकी राष्ट्रपति को सीधा संदेश था कि भारत किसी भी दबाव में झुकने वाला नहीं . अमेरिका चाहे तो और भी टैरिफ बढ़ा ले भारत को कोई फर्क नहीं पढ़ता है.मतलब अब साफ है कि भारत पर डोनाल्ड ट्रंप या अमेरिका का कोई दबाव काम नहीं कर रहा है.

कृषि और डेयरी क्षेत्र को लेकर क्या थी अमेरिका की मांग?

बता दें कि अमेरिका-भारत व्यापार समझौते में भारत के किसानों और डेयरी किसानों के हितों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा था. क्योंकि अमेरिका ने भारतीय कृषि और डेयरी बाजारों तक अपने प्रोडक्ट को व्यापक रूप से पहुंचाने की मांग की थी. अमेरिका चाहता था कि भारत अपने उच्च टैरिफ (20-100%) और गैर-टैरिफ जैसे ऐसे हर्डल को खत्म करे ताकि अमेरिकी कृषि उत्पाद भारत के बाजारों तक पहुंच सके.  अगर ऐसा होता तो अमेरिकी सेब, बादाम, अखरोट, और जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों सोयाबीन और मक्का भारत के बाजार तक बेरोक-टोक आ सकते थे. साथ ही अमेरिक डेयरी उत्पादों विशेष रूप से पनीर और दूध पाउडर के लिए बाजार खोलने की मांग कर रहा था, जाहिर है कि इससे भारत के 8 करोड़ डेयरी किसानों के लिए खतरा हो जाता. अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट भारत में धार्मिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है. क्योंकि अमेरिका में गायों को भोजन के रूप में मांस और मांस से बने प्रोडक्ट दिए जाते हैं. 

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भारत ने इन मांगों का सख्ती से विरोध किया. इससे न सिर्फ धार्मिक संवेदनशीलता का मामला सामने आ सकता था बल्कि डेयरी बाजार खोलने से स्थानीय किसानों की आजीविका खतरे में पड़ सकती थी. अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट सस्ते हैं, और भारतीय किसान पहले से ही कम आय और वैश्विक प्रतिस्पर्धा से जूझ रहे हैं. अमेरिका की मांगों को मानने से इन डेयरी पालकों के सामने अपने उत्पादों को बेचने की समस्या आ सकती थी. 

कृषि, मछली पालन, और डेयरी भारत की अर्थव्यवस्था के आधार हैं. 2024 में भारत की GDP में कृषि का योगदान लगभग 18% था, और 60% से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस पर निर्भर है. मोदी का यह कहना कि वह भारी कीमत चुकाने को तैयार हैं, संकेत देता है कि भारत वैश्विक व्यापार वार्ताओं में अपनी कृषि नीतियों पर दबाव स्वीकार नहीं करेगा, चाहे वह टैरिफ हो या अन्य प्रतिबंध.

कृषि और डेयरी क्षेत्र में अमेरिका की मांग मानने में भारत का क्या है नुकसान ? 

यदि भारत अमेरिका की मांगों को मानकर कृषि और डेयरी क्षेत्रों में अपने बाजार को और खोल देता, तो इसके गंभीर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक नुकसान हो सकते थे. अमेरिका भारत से डेयरी, कृषि उत्पादों (जैसे बादाम, सोयाबीन) और मत्स्य क्षेत्र में कम टैरिफ और अधिक बाजार पहुंच की मांग करता रहा है. 

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भारत का कृषि और डेयरी क्षेत्र छोटे और सीमांत किसानों पर निर्भर है.  2024 के आकंड़े बताते हैं कि 60% से अधिक ग्रामीण आबादी का जीवन इससे प्रभावित होता है. अमेरिकी उत्पाद, जो भारी सब्सिडी और बड़े स्तर पर उत्पादन के चलते सस्ते पड़ते हैं.जाहिर है कि उनके आने से भारतीय बाजार में देसी उत्पाद बाहर हो जाते. इससे स्थानीय किसानों की आय प्रभावित होती.  कृषि और डेयरी पर 14 करोड़ से अधिक परिवार निर्भर हैं. सस्ते आयात से उनकी आय कम होने पर ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी और सामाजिक अशांति बढ़ सकती है.

राहुल गांधी की अडानी थियरी एक बार फिर पिट गई

राहुल गांधी ने 6 अगस्त 2025 को दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डोनाल्ड ट्रम्प के रूसी तेल आयात पर लगाए गए 25% टैरिफ और रूसी तेल जैसे बयानों का जवाब देने में असमर्थ हैं, क्योंकि अडानी समूह पर अमेरिकी जांच ने उनके हाथ बांध दिए हैं. लेकिन तथ्यात्मक आधार की कमी और भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया ने राहुल गांधी के इस आरोप की हवा निकाल दी है. 

अमेरिका में अडानी समूह की जांच मुख्य रूप से निवेशकों से कथित धोखाधड़ी से है. इसका रूसी तेल आयात, भारत-अमेरिका व्यापार नीति, या ट्रम्प के टैरिफ से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है. अडानी समूह ने इन आरोपों को खारिज किया है और अभी तक  जांच का कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आ सका है.

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राहुल गांधी अडानी मुद्दे को रूसी तेल के बीच वित्तीय गठजोड़ का दावा करते हैं. पर इसके लिए कोई ठोस दस्तावेजी सबूत या वित्तीय लेनदेन का विवरण प्रस्तुत नहीं करते. जाहिर है कि यह दावा मोदी-अडानी गठजोड़ कहकर साबित नहीं किया जा सकता है.

राहुल का दावा कि मोदी के हाथ बंधे हैं, मोदी के जवाब के बाद खत्म हो जाते हैं. .ट्रंप के दबाव के बावजूद मोदी साफ करते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए वो देश हित के आगे नहीं झुकेंगे.4 अगस्त 2025 को ट्रम्प के टैरिफ की घोषणा के बाद भारत ने अमेरिका के रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम, और अन्य सामग्रियों के आयात को उजागर कर ट्रम्प की नीति के दोहरे मापदंड को सामने लाया. यह दर्शाता है कि भारत ने निष्क्रिय रहने के बजाय सक्रिय कूटनीति अपनाई है. 

राहुल गांधी के बयानों में विरोधाभास पहले से उनकी थ्योरी की विश्वसनीयता को कमजोर करते रहे हैं.  31 जुलाई 2025 को राहुल गांधी के बयान ट्रम्प के बयान भारत डेड इकोनॉमी का समर्थन करते हैं. लेकिन 6 अगस्त को टैरिफ को आर्थिक ब्लैकमेल बताते हैं.यह दोहरा रुख उनकी आलोचना को कमजोर करता है, क्योंकि वह एक ओर ट्रंप से सहमत दिखते हैं और दूसरी ओर उनकी नीतियों की आलोचना करते हैं.

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पीएम मोदी को चुकानी होगी भारी कीमत

अपनी स्पीच में कहते हैं कि उन्हें पता है कि उन्हें इसकी (अमेरिका के सामने न झुकने की) भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. इसका अर्थ रणनीतिक और राजनीतिक दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है. यह संकेत देता है कि भारत वैश्विक दबावों, जैसे ट्रम्प के टैरिफ या WTO में विकसित देशों की मांगों, के सामने झुकने के बजाय आर्थिक और कूटनीतिक नुकसान सहने को तैयार है. ट्रम्प के टैरिफ से भारत का निर्यात प्रभावित हो सकता है, विशेष रूप से दवा, कपड़ा, और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र. 

पर अन्य जोखिमों को भी कम कर के नहीं आंका जा सकता है. ट्रम्प के साथ तनाव भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग, जैसे F-35 सौदे, को प्रभावित कर सकता है. 

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