राजनीतिक गलियारों में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के मुखिया और भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताते रहे हैं. चिराग अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं. इरादा है कि पार्टी उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले पासी और पासवान समुदायों को एकजुट कर सके. पार्टी का दावा है कि उत्तर प्रदेश में पासी-पासवान समुदायों की संख्या लगभग 1.25 करोड़ है और राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से कम से कम 103 सीटों के चुनाव परिणाम में इनकी निर्णायक भूमिका है. राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो लोजपा की नजर कहीं और है.
दरअसल लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी अयोध्या सीट हार गई. एनडीए की योजना अयोध्या के सांसद अवधेश पासी के महत्व को कम करने के लिए पासवान वोटर्स के सामने चिराग पासवान के रूप में एक विकल्प देना है. चिराग पासवान युवा हैं, बढिया बोलते हैं और अपनी इमेज भी पाक साफ बनाएं हुए हैं. अगर यह योजना सिरे चढती है तो आगामी दिनों में होने जा रहे 10 विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी को फायदा मिल सकता है.जिसमें बीजेपी के लिए सबसे जरूरी मिल्कीपुर विधानसभा सीट जीतना है.
मिल्कीपुर अयोध्या संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली सीट है जहां पासी वोटर्स का बाहुल्य है. अयोध्या की संसदीय सीट जीतने वाले अवधेश प्रसाद यहीं से विधायक रहे हैं. उन्होंने सांसद बनने के बाद इस सीट से त्यागपत्र दे दिया.अब सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे इस सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी होंगे. जाहिर है कि मिल्कीपुर एक बार फिर बीजेपी के लिए नाक का प्रश्न है.
चिराग पासवान की पार्टी यूपी में कराने जा रही है पासियों का सम्मेलन
भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में उदा देवी, लखन पासी, महाराज बिजली पासी जैसे समुदाय के नायकों को आगे लाने के कई प्रयास किए हैं. शायद यही कारण रहा कि यह समुदाय 2019 और 2022 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को समर्थन दिया. पर 2024 में इस समुदाय के वोट कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को भी गए हैं.
चुनावों में पासी समुदाय की बड़ी हिस्सेदारी को देखते हुए ही शायद चिराग ने यूपी में वंचित समाज सम्मेलनों की योजना पर काम करना शुरू किया है. एलजेपी के प्रमुख और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री चिराग पासवान न केवल समाजवादी पार्टी का विकल्प बनने की कोशिश कर रहे हैं, जिसने फ़ैज़ाबाद लोकसभा जीत के बाद पार्टी नेता अवधेश प्रसाद को पासी समुदाय का चेहरा पेश किया है, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी का भी विकल्प बनने का लक्ष्य रखा है.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी एक खबर में एलजेपी (आरवी) के सांसद अरुण भारती कहते हैं कि रामविलास पासवान ने दलित समुदायों को दलित सेना के तहत एकजुट किया. उनकी अस्वस्थता ने इस विचार को आगे बढ़ाने से रोका, लेकिन अब चिराग सबसे आगे नेतृत्व कर रहे हैं और धीरे-धीरे देश के स्वीकृत युवा दलित चेहरा बनते जा रहे हैं. भारती को पार्टी ने इस कार्य के लिए उत्तर प्रदेश और झारखंड के लिए पार्टी प्रभारी नियुक्त किया है.
अवधेश पासी पर कितना भारी पड़ेंगे चिराग
पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के कौशांबी मं अपने पहले वंचित समाज सम्मेलन में, चिराग ने पासी नायकों को याद किया और उनकी खोई हुई प्रतिष्ठा को बहाल करने का वादा किया, साथ ही एसपी और बीएसपी पर दूसरी सबसे बड़ी दलित समुदाय का सिर्फ वोट बैंक के रूप में उपयोग करने का आरोप लगाया.
चिराग ने पासवान उप-समूहों के प्रतिनिधित्व के लिए लड़ने का भी वादा किया.चिराग ने केंद्र सरकार से बहराइच में पासी नायक राजा सुहेलदेव पासी की एक भव्य स्मारक बनाने और उत्तर प्रदेश के दलित बहुल गांवों में सभी शराब की दुकानों को बंद करने की मांग की. उन्होंने बताया कि राजा द्वारा बनाए गए 12 किलों में से 11 अवैध कब्जे में हैं या जर्जर स्थिति में हैं. चिराग के इन आयोजन का असर है कि समाजवादी पार्टी को चिराग के प्रयासों का खारिज करने के लिए बयान देना पड़ा है. एसपी नेता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि रैलियां और सम्मेलन पासी और पासवान समुदायों के लिए लाभकारी नहीं होंगे. एसपी शासन के दौरान पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) समुदाय को लाभ हुआ और कोई भी उनकी परवाह अखिलेश यादव जितनी नहीं करता.
मिल्कीपुर विधानसभा में 3.57 लाख वोटर हैं, जिनमें सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति से हैं. उसके बाद ओबीसी तबके के वोटर हैं. अनुसूचित जाति से पासी समाज का वोट सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी को मिलता रहा है, और साथ में यादव-मुस्लिम वोटों के समीकरण से समाजवादी पार्टी बार बार बाजी मार ले जाती है .और इसी कारण बीजेपी भी पासी समाज के उम्मीदवार पर गंभीरता से विचार कर रही है. बीजेपी के पास चिराग पासवान के रूप में तुरुप का इक्का है. अगर चिराग थोड़ी गंभीरता से लग जाते हैं तो मिल्कीपुर की जीत बीजेपी के आसान हो सकती है.
मिल्कीपुर से मायावती ने रामगोपाल कोरी को बीएसपी का उम्मीदवार बनाया है. रामगोपाल कोरी 2017 में भी बीएसपी के टिकट पर मिल्कीपुर से चुनाव लड़ चुके हैं, जब वो तीसरे स्थान पर रहे थे.
क्यों मिल्कीपुर हो गया है प्रतिष्ठा का प्रश्न
मिल्कीपुर में जीत सुनिश्चित करने का दबाव सिर्फ बीजेपी पर ही नहीं है.समाजवादी पार्टी पर भी यह दबाव उतना ही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरह यह सीट जीतने की कोशिश में लगे हुए हैं उसे यही कहा जाएगा कि साम-दाम-दंड-भेद सभी नीतियों को आजमाया जा रहा है.योगी आदित्यनाथ ने चार-चार मंत्रियों की यहां ड्यूटी लगा रखी है.
मिल्कीपुर में बीजेपी सरकार के जिन मंत्रियों की ड्यूटी लगी है, वे हैं - सूर्य प्रताप शाही, मयंकेश्वर शरण सिंह, गिरीश यादव और सतीश शर्मा. देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ ने भूमिहार, ठाकुर, यादव और ब्राह्मण समाज सभी के मंत्रियों को मोर्चे पर उतार दिया है, जबकि मिल्कीपुर सुरक्षित सीट है.मिल्कीपुर जीतने के लिए ही एक रेप केस में सांसद अवधेश पासवान के खासमखास एक शख्स की गिरफ्तारी भी हो चुकी है.योगी ने आरोपियों को सजा दिलाने के लिए खुद मोर्चा संभाला था. आरोपियों के ठिकानों को उत्तर प्रदेश सरकार ने बुलडोजर से ध्वस्त भी किया.यहां रोजगार मेला भी उत्तर प्रदेश सरकार लगा चुकी है.