लोक जनशक्ति पार्टी-LJP का गठन 2000 में स्व. राम विलास पासवान- Ram Vilas Paswan ने किया था. राम विलास पासवान जनता दल से अलग हो गए थे. बिहार में दलितों के बीच पार्टी की अच्छी-खासी पकड़ थी. राम विलास पासवान के निधन के बाद उनके भाई पशुपति पारस- Pashupati Paras ने उनके बेटे चिराग पासवान- Chirag Paswan को बाहर कर दिया.
अब लोजपा दो पार्टियों लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी में बंटी हुई है. अपने चाचा पशुपति पारस द्वारा उन्हें बाहर करने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में, चिराग पासवान ने संगठन की तुलना एक मां से की, जिसे धोखा नहीं दिया जाना चाहिए. एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने पिता राम विलास पासवान और उनके परिवार द्वारा स्थापित पार्टी को एकजुट रखने के प्रयास किए लेकिन असफल रहे.
ईसीआई- ECI ने लोक जनशक्ति पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न बंगला जब्त कर लिया और चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी को आवंटित कर दिया-LJP Logo.
बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए को मिली लैंडस्लाइड विक्ट्री में चिराग पासवान की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता. चिराग पासवान खुद को मोदी का हनुमान कहते रहे हैं. आइये देखते हैं कि आखिर किस तरह उन्होंने अपने समर्थकों का वोट बीजेपी और जेडीयू को ट्रांसफर कराने में सफलता हासिल की.
बिहार विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल बताते हैं कि चिराग पासवान से जिस तरह की सफलता की उम्मीद थी वो दिखाई नहीं दे रही है. चुनावों के पहले तक खुद को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की तरह प्रोजेक्ट कर रहे चिराग कहीं फंस तो नहीं गए हैं?
बिहार विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद समझा जा रहा है कि चिराग सीट शेयरिंग से पहले ही एनडीए से नाराज हैं. जाहिर है कि ये अपनी बात मनवाने के लिए उनका उपक्रम भी हो सकता है. लेकिन, बिहार में विपक्ष यही चाहता है कि चिराग किसी तरह टूट कर उनके साथ आ जाएं. पर इससे लोजपा को हासिल क्या होगा?
आज बिहार में 2020 के नारे 'मोदी जी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं' लोगों को याद आ रहा है. चिराग पासवान के बयानों और उनकी योजनाओं को देखते हुए लोग पूछ रहे हैं कि क्या चिराग वाकई पुराने रास्ते पर लौट रहे हैं? सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या यह बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है?
अगर चिराग पासवान विधानसभा चुनाव जीतते हैं और एनडीए में स्थिति अनुकूल रहती है, तो वे कम से कम उपमुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी तो पेश कर ही सकते हैं. हो सकता है अंदरखाने कुछ ऐसी बातें तय भी हो गई हों. क्योंकि केंद्र के मंत्री पद को कोई भी शख्स यूं ही दांव पर नहीं लगाएगा.
राकेश रोशन ने एलजेपीआरवी से 2020 में राघोपुर विधानसभा से चुनाव लड़ा था. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के खिलाफ लड़ने वाले राकेश रोशन को करीब 25 हजार वोट मिले थे. वह उत्तर बिहार की राजनीति में बड़े नाम रहे दिवंगत बृजनाथी सिंह के बेटे हैं और छात्र जीवन से ही एलजेपी से जुड़े रहे हैं.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में पासी समुदाय की बड़ी हिस्सेदारी को देखते हुए केंद्रीय मंत्री और लोजपा के मुखिया चिराग पासवान ने यूपी में वंचित समाज सम्मेलनों की योजना पर काम करना शुरू किया है. पार्टी की योजना 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों में बड़ी भूमिका अदा करने की है.
लोकसभा चुनाव 2024 में देश को कई युवा सांसद भी मिले हैं. बिहार के समस्तीपुर से लोजपा की शांभवी चौधरी को जीत मिली. जबकि यूपी के कैराना से समाजवादी पार्टी की इकरा हसन भी जीतने में सफल रहीं. दोनों ने आजतक से एक्सक्लूसिव बातचीत की और अपने-अपने विजन के बारे में बताया. देखें ये वीडियो.
चिराग ने कहा कि यह प्रधानमंत्री चुनने का चुनाव है, 2019 के मुकाबले एनडीए बिहार में अब ज्यादा मजबूत है. अब जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे मजबूत साथी हमारे साथ हैं. अब 39 नहीं सभी 40 सीटें जीतेंगे और पीएम मोदी के मिशन 400 का लक्ष्य पूरा होगा.
चिराग पासवान की एनडीए से कथित नाराजगी अब दूर हो गई है. पिछले कुछ दिनों से सियासी गलियारों में चर्चा थी कि चिराग पासवान एनडीए छोड़ इंडी गठबंधन में शामिल हो सकते हैं. ऐसी भी चर्चा थी कि चिराग पासवान को मनमुताबिक सीटें नहीं मिल रही हैं, लेकिन अब इन सियासी अटकलों पर विराम लग गया है.
लोक जनशक्ति पार्टी (आर) के मुखिया चिराग पासवान ने बुधवार को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की. इस दौरान आगामी लोकसभा चुनावों के लिए बिहार में सीट बंटवारे को बात की. मीडिया से बातचीत में चिराग ने बताया कि सीट बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया गया है. उचित समय आने पर इसकी सूचना दी जाएगी. उन्होंने चाचा पशुपति पारस को लेकर भी बात की. देखें वीडियो.
चिराग पासवान जिस अंदाज में मंच पर उत्साहित होकर बोल रहे हैं कि मैं शेर का बेटा हूं, सिर पर कफन बांध के निकला हूं. यह बात मंच तक तो ठीक है पर बिहार की राजनीति में उन्हें जल्दी ही फैसला करना होगा कि किसके लिए उन्हें सिर पर कफन बांधना है. क्योंकि इस बार उनके अस्तित्व का सवाल है.
नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने के बाद बीजेपी जितनी मजबूत हुई है उतनी ही बिहार में उसकी परेशानियां भी बढ़ गईं हैं. जनता के नाराज होने की बात तो छोड़िए साथी दलों की डिमांड पूरा करना हो गया है मुश्किल.
केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस ने बिहार में जाति गणना के नाम पर फर्जीवाड़े का आरोप लगाया है..पारस ने कहा कि बिहार में सवर्णों और उन जातियों की संख्या कम दिखाई गई है तो नीतीश कुमार को वोट नहीं देते...
बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद सियासत तेज हो गई है. कांग्रेस समेत विपक्ष की दूसरी पार्टियां संख्या के हिसाह से हिस्सादारी की मांग कर रही हैं. वहीं पीएम मोदी ने कहा कि सबसे बड़ी जाति गरीबों की है तो सबसे ज्यादा हिस्सेदाारी भी गरीबों की होनी चाहिए. ऐसे में जाति जनगणना से जुड़ी तमाम पहलुओं को जानने के लिए देखें हल्ला बोल.
बिहार में भी ओबीसी ने एनडीए का साथ दिया था. 2019 में बिहार में एनडीए को 70 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वोट मिले थे. एनडीए में उस समय बीजेपी के अलावा जेडीयू और एलजेपी भी थी. ये बताता है कि बीजेपी का बड़ा वोट बैंक है ओबीसी.