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हिंदी भाषियों के खिलाफ MNS कार्यकर्ताओं की गुंडई क्यों नहीं रोक पा रहे हैं सीएम देवेंद्र फडणवीस?

दुर्भाग्य है कि मुंबई में मराठी न बोल पाने वाले एक कारोबारी को थप्पड़ मारने वाले अभी तक पकड़े नहीं जा सके हैं और न ही संतोष राणे जैसे अहंकार में चूर नेताओं के खिलाफ मामला ही दर्ज हो सका है. इससे तो यही समझा जाएगा कि सरकार भी ऐसे लोगों के सामने झुक गई है, जो चाहते हैं कि हिंदी भाषी डरकर रहें या मराठी बोलना नहीं आती है तो मुंबई छोड़ दें.

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हिंदी न बोलने के चलते एक गुजराती व्यापारी की पिटाई करते एमएनएस कार्यकर्ता ( फाइल फोटो)
हिंदी न बोलने के चलते एक गुजराती व्यापारी की पिटाई करते एमएनएस कार्यकर्ता ( फाइल फोटो)

महाराष्ट्र में महाराष्‍ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) कार्यकर्ताओं की गुंडई लगातार बढ़ती जा रही है. आश्चर्यजनक ये है कि एमएनएस पार्टी का केवल एक विधायक है, सांसद तो एक भी नहीं है. यानि कि जनसमर्थन न के बराबर होने के बावजूद पार्टी कार्यकर्ताओं का मन बढ़ा हुआ है. खासकर मुंबई और उसके आसपास के क्षेत्रों में. MNS कार्यकर्ता कभी भी गैर-मराठी भाषियों, विशेष रूप से उत्तर भारतीयों को जबरन मराठी बोलने का दबाव बनाकर पिटाई कर देते हैं. कांग्रेस और शिवसेना की सरकार में जब यह चलता था तो बीजेपी को बहुत बुरा लगता था. पर बीजेपी की सरकार में भी जब हिंदी भाषियों की सुरक्षा नहीं हो रही है तो समझिए राजनीति का स्तर कितना गिर चुका है.

एमएनएस कार्यकर्ता ही नहीं नेता भी अहंकार में चूर 

1 जुलाई 2025 को, ठाणे के मीरा-भायंदर में जोधपुर स्वीट्स के 48 वर्षीय गुजराती दुकानदार बघाराम चौधरी से MNS कार्यकर्ताओं ने पानी की बोतल मांगी और मराठी में बात करने को कहा. चौधरी ने हिंदी में जवाब दिया और पूछा, मराठी बोलना क्यों जरूरी है? इस पर MNS कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेर लिया, गाली-गलौज की, और कई थप्पड़ मारे. वायरल वीडियो में कार्यकर्ता कहते दिखे कि यह महाराष्ट्र है, मराठी बोलना होगा.

आश्चर्य तो यह है कि MNS के मीरा-भायंदर जिला अध्यक्ष संतोष राणे ने इस हमले के बाद भी बचाव के मुद्रा में नहीं दिखे, उनका जवाब था कि मराठी भाषा का अपमान करने वालों को MNS ऐसा ही जवाब देगी. कायदे से देखा जाए तो हमला करने वालों के साथ संतोष राणे जैसे लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज होना चाहिए था.पर दुर्भाग्य है कि न थप्पड़ मारने वाले अभी तक पकड़े जा सके हैं और न ही संतोष राणे जैसे अहंकार में चूर नेताओं के खिलाफ मामला ही दर्ज हो सका है. जाहिर है कि लोगों को ऐसा लगने लगा है कि सरकार खुद चाहती है कि हिंदी भाषी डरकर रहें या मराठी बोलनी नहीं आती है तो मुंबई छोड़ दें.

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पुलिस ने काशीमीरा थाने में सात MNS कार्यकर्ताओं—करण कांदगीरे (उप-शहर प्रमुख), प्रामोद निलेकट (वाहतुक सेना जिला आयोजक), अक्षय दलवी, और अन्य—के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराओं (अशांति फैलाने, मारपीट) के तहत FIR दर्ज की है. हालांकि, 3 जुलाई 2025 तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई, साफ संदेश जाता है कि महाराष्ट्र सरकार ने गिरफ्तारी की जहमत ही नहीं उठाई है. सोशल मीडिया पर लोग इसे फडणवीस सरकार की राजनीति से जोड़ रहे हैं. लोग कह रहे हैं कि यह सरेआम गुंडई है, लोग सीएम के नाम को टैग करते हुए लिख रहे हैं कि महाराष्ट्र में अगर कानून व्यवस्था है तो इनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए.
पर सरकार कुंडली मारकर बैठ गई है. उसे इन घटनाओं से कोई मतलब ही नहीं है.

आखिर फडणवीस क्या चाहते हैं?

महाराष्ट्र सरकार की स्थिति महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन (BJP, शिवसेना (शिंदे), NCP (अजित पवार) की सरकार है, जिसके मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस 5 दिसंबर 2024 से हैं. 2024 विधानसभा चुनावों में महायुति ने 235 सीटें जीतीं जिसमें BJP (132) शिवसेना (57) NCP (41). साफ दिखता है कि बीजेपी को कितना मजबूत जनादेश मिला था. फिर भी, MNS की इस तरह की हिंसक घटनाओं पर सरकार की चुप्पी और कार्रवाई के लिए अपना दम न दिखाना कई तरह की आशंकाएं पैदा करता है.

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सवाल उठता है कि क्या सरकार वास्तव में नियंत्रण में है, या मराठी अस्मिता के नाम पर MNS को नजरअंदाज कर रही है? फडणवीस ने 2 अप्रैल 2025 को कहा, मराठी भाषा को बढ़ावा देना गलत नहीं, लेकिन यह कानून की सीमाओं में होना चाहिए. गैरकानूनी कार्रवाई बर्दाश्त नहीं होगी. पर लगता नहीं है कि फडणवीस को अपना बयान याद है. क्योंकि मीरा-भायंदर घटना के बाद न तो एक्शन हुआ और न  उनकी ओर से कोई इस सबंध में बयान अभी तक नहीं आया.

गृह राज्य मंत्री का रुख तो और खतरनाक नजर आ रहा है. गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने हमले की निंदा की, लेकिन कहा कि मराठी भाषा का अपमान बर्दाश्त नहीं होगा. साफ लगता है कि सरकार हिंदी भाषियों की पिटाई करने वालों के खिलाफ कुछ करने वाली नहीं है. जिस तरह की बातें महाराष्ट्र के गृहमंत्री बोल रहे हैं उससे तो तय है कि आने वाले दिनों में हिंदी बोलने वालों पर हमले और बढ़ने ही वाले हैं.

फडणवीस ही नहीं कोई भी सरकार नहीं लेती है एक्शन

MNS की स्थापना 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होने के बाद की थी. मराठी अस्मिता, स्थानीय रोजगार, और मराठी भाषा के संरक्षण को आधार बनाकर अस्तित्व में आई पार्टी अपने सर्वाइवल के लिए अक्सर उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसक तरीके अपनाती रही है. 2008 में MNS कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासियों को निशाना बनाया, दुकानों और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.

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2017 में MNS ने ठाणे और पुणे में गैर मराठी हॉकर्स पर हमले किए गए.सोशल मीडिया साइट एक्स पर किसी ने लिखा कि हिंदी बोली... तो थप्पड़ पड़ेगा, सरकारें चुप क्यों? यह सवाल सरकारों की निष्क्रियता के डर को उजागर करता है.सरकारों की निष्क्रियता के कारण विभिन्न सरकारें—कांग्रेस-NCP (2004-2014), बीजेपी-शिवसेना (2014-2019, 2022-वर्तमान) और MVA (2019-2022) का चरित्र इस तरह का रहा कि एमएनएस के कार्यकर्ताओं की गुंडई बढ़ती रही .

क्यों एमएनएस के खिलाफ कोई उत्तर भारतीय नेता नहीं बोलता?

एमएनएस के खिलाफ कोई भी सरकार एक्शन नहीं लेती, इसका सबसे बड़ा कारण हिंदी भाषियों की कमजोरी रही है. उत्तर भारत के राज्यों विशेषकर उत्तर प्रदेश-बिहार-राजस्थान और मध्यप्रदेश के नेताओं ने कभी इसे प्रतिष्ठा का सवाल ही नहीं बनाया. जिस मराठी अस्मिता की बात होती है उस तरह कभी हिंदी भाषियों की अस्मिता का सवाल ही नहीं बना सके उत्तर भारतीय नेता. यही कारण है कि पूरे देश से ऐसी खबरें आती हैं कि यूपी-बिहार वालों की पिटाई हुई. 

मुंबई में आज पूरबिया समुदाय बहुत बड़ी ताकत बन चुका है. पर भाषाई पहचान को अस्मिता का सवाल नहीं बना सका है. यही कारण है उनके पीटे जाने पर इनके नेता इन घटनाओं की निंदा करना भी उचित नहीं समझते हैं.

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