मराठा आरक्षण आंदोलन महाराष्ट्र में हिंसक हो रहा है.आंदोलन में बीते दिनों तीन लोगों की आत्महत्या के बाद, अब बार्शी तालुका के देवगांव में मराठा आरक्षण के लिए चार लोगों ने आत्महत्या का प्रयास किया है. कहा जा रहा है कि अब तक कुल 23 लोगों ने आत्महत्या कर ली है. मंगलवार को 2 विधायकों का घर फूंक दिया गया तो बुधवार को महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हसन मुश्रीफ के काफिले की गाड़ी के साथ तोड़फोड़ की गई. आंदोलन को लेकर राजनीतिक गुणा-गणित शुरू हो गई कि महाराष्ट्र में लगी आग से किस पार्टी को तात्कालिक फायदा होने जा रहा है. कुछ लोग कह रहे हैं कि मराठा आंदोलन आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है. पर महाराष्ट्र में जो राजनीतिक हालत बन रहे हैं उससे तो यही लग रहा है कि बीजेपी के दोनों हाथ में लड्ड हैं . यानी कि बीजेपी को हर हाल में चुनावी फायदा ही मिलता दिख रहा है. आइये देखते हैं कैसे ये हो रहा है?
बीजेपी जानती है कि मराठों का वोट हमें नहीं मिलना
दरअसल महाराष्ट्र में मराठों की आबादी 30 से 33 फीसदी है जबकि ओबीसी समुदाय की आबादी 40 फीसदी है. मराठा डॉमिनेंट रहे हैं इसलिए वो राजनीतिक प्रभुत्व भी रखते रहे हैं. यही कारण रहा है कि साल 1960 में महाराष्ट्र के गठन के बाद से अब तक 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही चुने जाते रहे हैं. मराठा समुदाय के बीच शिवसेना और एनसीपी का सियासी आधार है. देश के अन्य राज्यों के उलट ओबीसी पॉलिटिक्स का दौर मंडल के पहले ही शुरू हो गया था. पर ओबीसी और मराठों के बीच में एक महीन सी रेखा है. बहुत से मराठे ओबीसी हैं और बहुत से सामान्य श्रेणी में आते रहे हैं.
मंडल की राजनीति शुरू होने से बहुत पहले ही शरद पवार के रूप में महाराष्ट्र को ओबीसी सीएम मिल गया था. शरद पवार ओबीसी भी हैं और मराठा क्षत्रप भी हैं. अगर दोनों को एकदम अलग करके मूल्यांकन करें तो महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से 80 से 85 सीटों पर मराठा वोट निर्णायक हैं. मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे भी मराठा समुदाय से हैं और डिप्टी सीएम भी अजित पवार भी मराठा हैं. इसलिए बीजेपी इन छत्रपों के चलते मराठी वोट साथ रहने की उम्मीद कर सकती है. राज्य की 48 लोकसभा सीट में से 11 विदर्भ इलाके में हैं और बीजेपी 10 सीटों पर काबिज है. मराठा की 288 विधानसभा सीटों में 62 इसी क्षेत्र से हैं. ओबीसी डॉमिनेटेड इन सीटों पर बीजेपी की अच्छी पकड़ है.
बीजेपी जानती है कि हरियाणा और यूपी वाला प्रयोग फायदेमंद रहेगा
हरियाणा में भी जाट आरक्षण आंदोलन मनोहर लाल खट्टर की पहली पारी में हिंसक हो गया था. जाट आरक्षण आंदोलनकारियों ने पंजाबी लोगों और सैनी लोगों की संपत्तियां जलाईं. नतीजा क्या निकला? हरियाणा में दूसरी बार बीजेपी की सरकार बनी. यह सही है कि बीजेपी की कुछ सीटें कम हो गईं और उसे जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाना पड़ा.पर इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि हरियाणा में बीजेपी खुलकर एंटी जाट वोटों को इकट्टा करने में लगी है. उसे पता है कि जाट वोटों का ध्रुवीकरण जिस पार्टी की ओर होगा पंजाबी और पिछड़ी जाति के वोटरों का उसे साथ मिलेगा.
अगर जाट वोटों को कांग्रेस और जेजेपी बांट देती है तो बीजेपी की प्रदेश में तीसरी बार भी सरकार बननी तय है. यही गणित उत्तर प्रदेश और बिहार में भी बीजेपी का है. ताकतवर ओबीसी समुदाय की जाति यादव यूपी और बिहार में अच्छी हैसियत रखती है. बीजेपी को पता है कि यूपी में समाजवादी पार्टी और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ इनके वोट जाएंगे ही. बीजेपी इन दोनों राज्यों में एंटी यादव वोटों के सहारे चुनाव लड़ने का प्लान करती है.महाराष्ट्र में कमोबेश यही स्थित रहने वाली है. मराठे और ओबीसी समुदाय अगर आरक्षण को लेकर भिड़ते हैं तो फायदा बीजेपी को हर हाल में होने वाला ही है.
ओबीसी संघ भी बैठ गया अनशन पर तो
मराठा आरक्षण आंदोलन में सरकार अगर एक वर्ग को खुश करने की कोशिश करती है तो दूसरे पक्ष का नाराज होना तय है. ओबीसी संघ ने मराठाओं को ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण देने पर विरोध पहले ही जता चुका है. बीजेपी के ही नहीं कांग्रेस के ओबीसी नेता मराठों को ओबीसी आरक्षण देने के खिलाफ हैं.अगर आंदोलन बढता है और मराठा आंदोलनकारी और ओबीसी नेताओं के आमने-सामने आने की स्थिति बनती है तो मामला और जटिल होगा.महाराष्ट्र में ओबीसी के जो सबसे बड़े नेता माने जाते हैं जो महाराष्ट्र के शिंदे सरकार में मंत्री भी हैं छगन भुजबल, उन्होंने सभी मराठों को कुनबी सर्टिफिकेट देकर ओबीसी कोटे से आरक्षण देने का विरोध किया.
ओबीसी समुदाय एक और बड़े नेता हैं प्रकाश शेंडगे, उन्होंने कहा, जिनके पास दस्तावेजी सबूत है, उन्हें आरक्षण दे रहे हैं, वहां तक तो ठीक है लेकिन अगर आपने एकसाथ सारे मराठों को दिया तो हम इसका विरोध करेंगे. जिस तरह से मनोज जरांगे पाटिल आमरण अनशन पर बैठे हैं, हो सकता है कि ओबीसी समाज से भी कोई इसी तरह आमरण अनशन पर बैठ जाए. ओबीसी समाज का कहना है कि हम मराठा आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं. अगर मराठों को महाराष्ट्र में आरक्षण देना है तो सरकार उनको अलग से आरक्षण दे. जैसे कि 2014 में कांग्रेस ने जाते-जाते जो 16 पर्सेंट आरक्षण दिया था मराठों को. ओबीसी समाज का कहना है कि हमारे 27 पर्सेंट को हाथ मत लगाइए.
मराठा वोट आपस में ही बंटा हुआ
मराठों के बीच कुनबी को लेकर बहुत मतभेद हैं. दरअसल मराठों के अंदर जो कुलीन मराठा हैं, वो कुनबी जाति का सर्टिफिकेट लेने के लिए तैयार नहीं हैं. अधिकतर मराठों को लगता है यह उनके मराठा प्राइड के खिलाफ है. उन्हें लगता है कि वे लड़ाका कौम हैं और इसलिए हम क्षत्रिय हैं. इस तरह खुद ही मराठा समुदाय आपस में बंटा हुआ है. इसके मुकाबले ओबीसी समुदाय के बीच इस तरह का कोई बंटवारा नहीं है.
मराठा वोटों के कई दावेदार,ओबीसी के लिए केवल बीजेपी
पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि मराठा वोटों के कई दावेदार हैं. अभी महाराष्ट्र सरकार में ही एकनाथ शिंदे और अजीत पवार हैं.ये दोनों मराठा हैं. इसी तरह शिवसेना ठाकरे और एनसीपी शरद पवार भी मराठों वोटों पर दावा ठोंकने के लिए तैयार रहेंगे.शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति मराठी जनता आगामी जनता अपना भावनात्म समर्थन भी दे सकती है.अगर आंदोलन और बढ़ता है तो ओबीसी समुदाय खुद को अकेला पाएगी और खुलकर बीजेपी के साथ आने को मजबूर होगी. एक बात यह भी है कि अब तक चुनावों में बीजेपी का मुख्य वोटर ओबीसी ही रहा है.