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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष ने महाभियोग प्रस्ताव क्या बे-मन से लाया? |Opinion

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ लाया गया महाभियोग प्रस्ताव विपक्ष के लिए काफी महत्वपूर्ण हो सकता था पर शायद इसे आधे अधूरे मन से लाया गया. समय और परिस्थितियां तो कम से कम ये ही गवाही दे रही हैं.

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उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ (फोटोः PTI)
उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ (फोटोः PTI)

देश में 72 साल के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में राज्यसभा का सभापति जो देश का उपराष्ट्रपति भी होता है के खिलाफ कभी महाभियोग नहीं आया था. विपक्ष की तरफ से राज्यसभा सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाये जाने की बात मॉनसून सत्र में ही सुनने को मिली थी, लेकिन बात आई-गई हो गई.पर शीतकालीन सत्र आते आते विपक्ष इस मुद्दे पर गंभीर लग रहा है. असलियत और इरादा जो भी हो, लेकिन खास बात ये है कि सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना अब तय हो गया है. पर क्या यह प्रस्ताव केवल दिखावे के लिए ही हो रहा है या विपक्ष इसके लेकर गंभीर है? क्योंकि इंडिया ब्लॉक में महाभियोग के पहले ही फूट पड़ चुकी है. इसके साथ ही एनडीए और विपक्षी गठबंधन INDIA से न जुड़े दलों ने अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस से दूरी बनाए रखने का फैसला किया है. जाहिर है कि संपूर्ण विपक्ष से बातचीत करना भी मुनासिब नहीं समझा गया है. ऐसे में यह प्रस्ताव कितना असरदार होगा ये कहा नहीं जा सकता.

1- समय बीत जाने के बाद प्रस्ताव लाना होशियारी या बेवकूफी

राज्यसभा के सभापति को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस दिया जाना भी जरूरी होता है, और शीतकालीन सत्र तो 20 दिसंबर तक ही चलना है. सभापति देश के उपराष्ट्रपति ही होते हैं, जो भारत का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है. ऐसे में ये प्रस्ताव लोकसभा से भी पारित होना जरूरी होगा. सवाल उठता है कि विपक्ष अगर इतना ही गंभीर था इस प्रस्ताव के लिए तो समय से यह प्रस्ताव क्यों नहीं लाया गया. शुरूआती दिनों में कांग्रेस को केवल अडानी विवाद ही दिख रहा था. शीतकालीन सत्र की शुरूआत के पहले दिन ही यह महाभियोग लाया गया होता तो लगता कि विपक्ष इस प्रस्ताव को लेकर गंभीर है. भले ही प्रस्ताव गिर जाता पर कम से कम लोकसभा और राज्यसभा में बहस होती. इस बहाने सरकार की तमाम कमजोरियों को जनता के सामने लाने का विपक्ष को बहाना मिल गया होता.

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2-गैर इंडिया गठबंधन वाले विपक्ष का क्या है रुख

 द इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी एक रिपोर्ट में बीजू जनता दल (बीजेडी), वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी), और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) जैसे दलों ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया कि अगर यह नोटिस स्वीकार कर लिया जाता है और प्रस्ताव पेश किया जाता है, तो वे क्या रुख अपनाएंगे? बीआरएस ने कहा कि यदि कोई INDIA गठबंधन का सदस्य उनसे संपर्क करता है तो वे अपनी नेतृत्व टीम से चर्चा करेंगे. मतलब साफ है कि इतने महत्वपूर्ण विषय पर भी विपक्षी दलों से बातचीत भी अब तक नहीं हुई है.

बीआरएस के राज्यसभा नेता के. आर. सुरेश रेड्डी ने कहा, हमने सभापति की मदद करने की कोशिश की ताकि दोनों पक्ष एक पृष्ठ पर आ सकें और सदन चल सके. जहां तक ​​अविश्वास प्रस्ताव की बात है, हमें किसी भी पार्टी ने इस पर हस्ताक्षर करने के लिए नहीं कहा है, न ही हमें औपचारिक या अनौपचारिक रूप से इसकी जानकारी दी गई है.

यह पूछे जाने पर कि क्या बीआरएस धनखड़ को निष्पक्ष मानता है, उन्होंने कहा, सदन चलाना निश्चित रूप से आसान काम नहीं है. हम सभापति की स्थिति को समझते हैं, लेकिन साथ ही, हमें यह भी लगा कि सरकार द्वारा सभी समूहों के बीच अधिक बैठकें होनी चाहिए थीं. इससे स्थिति को शांत किया जा सकता था. गैर इंडिया गठबंधन के दलों से बातचीत में यह स्पष्ट होता है कि इस मुद्दे पर इंडिया गठबंधन को इन दलों का साथ नहीं मिलने वाला है.

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3- राज्यसभा में बहुमत के आंकड़े से कितना पीछे है विपक्ष

राज्यसभा में INDIA गठबंधन के पास 85 सांसद हैं, जो वर्तमान बहुमत के लिए जरूरी 116 के आंकड़े से काफी कम हैं. गठबंधन को निर्दल सांसद कपिल सिब्बल का समर्थन भी मिलेगा.. दूसरी ओर, एनडीए के पास 113 सांसद हैं और उन्हें छह नामित सदस्यों, जो आमतौर पर सरकार के पक्ष में मतदान करते हैं, और दो स्वतंत्र सांसदों का समर्थन मिलता है. वाईएसआरसीपी, बीजेडी और बीआरएस के पास कुल 19 सांसद हैं. इनमें से भी अधिकतर सांसदों का समर्थन एनडीए को मिलेगा. बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक भी किधर जाएंगे अभी स्पष्ट नहीं है. पर उनके पास  राज्यसभा में 7 सांसद हैं. भुवनेश्वर में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, हम इसका अध्ययन कर रहे हैं. जो भी आवश्यक कदम होगा, हम उठाएंगे.

4-इंडिया गठबंधन के अंतर्विरोध आएंगे सामने

ये प्रस्ताव ऐसे दौर में लाने की कोशिश हो रही है, जब इंडिया ब्लॉक में नेतृत्व को लेकर जोरदार जंग छिड़ी हुई है. बात काफी आगे बढ़ चुकी है. शरद पवार, उद्धव ठाकरे और सबसे बढ़कर लालू यादव तक का सपोर्ट ममता बनर्जी की दावेदारी को मिल रहा है.हालांकि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ इस मुहिम में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी भी शामिल हैं. अब तक टीएमसी और समाजवादी पार्टी के सांसदों को इंडिया ब्लॉक के विरोध प्रदर्शनों से दूरी बनाते देखा जा रहा था, लेकिन प्रस्ताव पर दस्तखत करने वालों में दोनो दलों के सांसद भी शुमार बताये जाते हैं.

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