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बिहार चुनाव में महागठबंधन की दुर्गति इंडिया गुट में कितनी दरार डालेगी?

2024 लोकसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन ने एक मजबूत विपक्ष होने का अहसास कराया था. पर बाद के दिनों में आपसी फूट के चलते यह गठबंधन लगातार कमजोर होता गया. बिहार विधानसभा चुनावों में मिली असफलता ने साबित कर दिया कि गठबंधन का कोई महत्व नहीं रह गया. शायद यही कारण है कि कांग्रेस ने बीेएमसी चुुनाव अकेले लड़ने का फैसला ले लिया है.

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इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ राहुल गांधी (Photo-ITG)
इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ राहुल गांधी (Photo-ITG)

2024 के लोकसभा चुनावों के करीब एक साल पहले अस्तित्व में आए इंडिया गठबंधन का एक मात्र उद्देश्य केंद्र से एनडीए सरकार को उखाड़ फेंकना था. 2024 के लोकसभा चुनावों में जिस तरह इस गठबंधन को सफलता मिली थी उससे ऐसा लगा था कि ये भविष्य में यह और मजबूत होगा. तमाम आपसी मतभेदों के बावजूद यह एलायंस अब तक विपक्ष को कम से कम बांधे रखने में सफल रहा. पर 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों ने इस गठबंधन की नींव हिला दी है. 14 नवंबर को घोषित परिणामों में महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-वाम दलों का हिस्सा )  मात्र 35 सीटों पर सिमट गया. जबकि एनडीए ने 202 सीटें जीतकर इतिहास बना दिया. 
कांग्रेस पार्टी को तो मात्र 6 सीटें मिलीं. जो गठबंधन की ऐतिहासिक असफलता का प्रमाण है. सवाल उठता है कि क्या यह इंडिया गठबंधन के पतन की शुरुआत है?

बिहार में गठबंधन का फायदा किसी को नहीं मिला उल्टा नुकसान हो गया

बिहार चुनावों ने इंडिया गठबंधन की आंतरिक दरारें सबके सामने आ गईं हैं. महागठबंधन में आरजेडी ने 143 सीटें खुद हथिया लीं और कांग्रेस को केवल 61 सीटें हीं दी. जबकि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट आरजेडी से बढिया था. इसके बावजूद कांग्रेस को 2020 के मुकाबले 2025 में करीब 9 सीटें कम मिलीं.जाहिर है कि एक गठबंधन में जो सहअस्तित्व होना चाहिए वो बिहार में नहीं दिखा.

सीट शेयरिंग की असफलता के चलते कई सीटों पर  'फ्रेंडली फाइट्स' तक की नौबत आ गई. और कांग्रेस का प्रदर्शन तो बहुत ही खराब रहा. राहुल गांधी ने कहा, यह हार अप्रत्याशित है, लेकिन लोकतंत्र बचाने की लड़ाई जारी रहेगी. हालांकि राहुल गांधी ने यह लड़ाई कितनी लापरवाही से लड़ी ये इससे स्पष्ट होता है कि ऐन चुनावों के बीच वो 15 दिनों के लिए कोलंबिया चले गए. इसके अलावा भी गठबंधन की कई कमजोरियां उजागर हुईं. नाम वापसी की तारीख बीतने के बाद भी सीटों पर विवाद चलता रहा. यही कारण रहा कि कई जगह इंडिया गठबंधन के दलों के बीच फ्रेंडली फाइट देखने को मिली.

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इतना ही नहीं महागठबंधन में चुनावी घोषणापत्र को लेकर भी मतभेद खुलकर सामने आए. तेजस्वी यादव के हर घर सरकारी नौकरी के दावे को आरजेडी को छोड़कर कोई और दल जिक्र भी नहीं कर रहा था. तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने के नाम पर कांग्रेस और आरजेडी के बीच बहुत दिनों तक मतभेद बना रहा. इंडिया ब्लॉक कमजोर संगठन और समन्वय की कमी से हार गया. 

इंडिया गठबंधन की संरचना ही इसकी कमजोरी है. राष्ट्रीय पार्टियां (कांग्रेस) स्थानीय दलों (आरजेडी, तृणमूल) आदि पर निर्भर हैं, जो सीट शेयरिंग में खुद को प्राथमिकता पर रखते हैं.  बिहार में आरजेडी ने 75% सीटें खुद हथिया लीं थीं.

कांग्रेस का बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने का फैसला

मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव, जो जनवरी 2026 में होने वाला है, महाराष्ट्र की राजनीति का सबसे बड़ा दांव हैं.16 नवंबर 2025 को मुंबई कांग्रेस प्रमुख वर्षा गायकवाड़ ने 227 सीटों पर अकेले लड़ने का ऐलान किया है. जाहिर है कि महाराष्ट्र में विपक्ष का गठबंधन महाविकास अघाड़ी का कमजोर होना तय है. एमवीए में इंडिया गठबंधन के ही दलों का एक समूह है जिसमें शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) और कांग्रेस आदि हैं. 
 बिहार की हार के बाद कांग्रेस का यह फैसला तार्किक लगता है. इस फैसले के पीछे बिहार का सबक ही नहीं एमवीए की दरारें,मुबई में कांग्रेस संगठन की मजबूती, एमएनएस गठबंधन का डर आदि भी शामिल है. कांग्रेस को समझ में आ गया है कि गठबंधन से उसे कोई फायदा नहीं मिला है. कांग्रेस की कुर्बानी पर क्षेत्रीय दलों का दिन प्रतिदिन विकास हो रहा है.शायद यही कारण है कि राहुल गांधी अंतर्मन से बिहार चुनावों में इन्वॉल्व नहीं हो सके. शायद उनका मन बिहार में ही महागठबंधन से अलग होकर स्वतंत्र रूप से अकेले चुनाव लड़ने का था. जैसा शुरू के उनके तेवरों से समझ आ रहा था.

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ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन के खिलाफ बहुत पहले से बिगुल फूंके हुईं हैं

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की प्रमुख ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन का सदस्य होते हुए भी कभी साथ नहीं रहीं. फरवरी 2024 में पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा से लेकर नवंबर 2024 में गठबंधन को अस्तित्वहीन बताने तक, ममता का रुख साफ था.वह इंडिया ब्लॉक को राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन दे सकती हैं, लेकिन बंगाल में कांग्रेस या वाम दलों के साथ कोई समझौता नहीं करने पर वो आज भी अडिग हैं. 
 बिहार विधानसभा चुनावों की हार ने इस दरार को और गहरा दिया, जहां ममता की पार्टी ने कांग्रेस को अहंकारी कहा. बिहार हार के बाद ममता बनर्जी ने 17 नवंबर को कहा, इंडिया गठबंधन नाम की कोई चीज नहीं बची. बंगाल में हम अकेले लड़ते हैं, अकेले जीतते हैं. उन्होंने कांग्रेस पर केवल फोटो खिंचवाने का आरोप लगाया. पश्चिम बंगाल में 2026 विधानसभा से पहले तृणमूल ने साफ कर दिया है कि गठबंधन केवल लोकसभा तक सीमित था.

2029 की तैयारी में अलग-अलग रास्ते

तृणमूल पश्चिम बंगाल-त्रिपुरा-मेघालय, सपा उत्तर प्रदेश, डीएमके तमिलनाडु-पुडुचेरी, आप पंजाब-गुजरात-दिल्ली में अकेले विस्तार कर रही है. कोई संयुक्त रणनीति या संयुक्त रैलियां नहीं हो रही हैं. इनकी तैयारियों को देखकर लग रहा है कि 2029 लोकसभा से पहले ये दल एक-दूसरे के खिलाफ भी खड़े हो जाएंगे.

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केरल में CPM और कांग्रेस आपस में सबसे बड़े दुश्मन हैं. इंडिया गठबंधन के बावजूद 2025 पंचायत चुनावों में दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ सबसे गंदी लड़ाई लड़ी. राहुल गांधी केरल में CPM को भाजपा का B-टीम कहते हैं, जबकि CPM राहुल पर सॉफ्ट हिंदुत्व का आरोप लगाती है. आम आदमी पार्टी भी गुजरात, पंजाब और दिल्ली में किसी भी कीमत पर कांग्रेस के साथ नहीं जाने वाली है. यह विरोधाभास राष्ट्रीय गठबंधन की विश्वसनीयता खत्म कर रहा है.

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