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बिहार चुनाव में कांग्रेस की हार पर समीक्षा, जिम्मेदार स्थानीय कारण या 'हाईकमान'?

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की समीक्षा के लिए क्षेत्रीय नेतृत्व से लेकर स्थानीय उम्मीदवारों तक, सभी दिल्ली तलब किए गए हैं. सभी से विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है, उम्मीदवारों से भी - क्या जवाबदेही सिर्फ उनकी ही बनती है?

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बिहार में कांग्रेस की बुरी हार के लिए असली जिम्मेदार कौन - बड़ा सवाल तो यही है? (Photo: PTI)
बिहार में कांग्रेस की बुरी हार के लिए असली जिम्मेदार कौन - बड़ा सवाल तो यही है? (Photo: PTI)

चुनाव बाद जिन्हें जीत का जश्न मनाने का मौका नहीं मिल पाता, हार की समीक्षा करते हैं. बिहार के महागठबंधन खेमे में फिलहाल ऐसा ही चल रहा है. तेजस्वी यादव से लेकर राहुल गांधी तक. दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय इंदिरा भवन में भी ऐसी ही बैठक रखी गई है - और उसमें बिहार के कांग्रेस उम्मीदवारों को भी बुलाया गया है.

हार के लिए जिम्मेदार समझे जाने वालों के खिलाफ एक्शन भी शुरू चुका है. सुना है, तेजस्वी यादव तो अभी लिस्ट बनवा रहे हैं, राहुल गांधी की कांग्रेस ने तो एक्शन भी लिया है. कांग्रेस ने 43 नेताओं को कारण बताओ नोटिस भेजा था, जिनमें से 7 नेताओं को पार्टी-विरोधी गतिविधियों और अनुशासनहीनता के आरोप में 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.  

पहला विकेट गिरते तो तभी दिखा था, जब कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु को साइडलाइन कर दिया गया. प्रेस कांफ्रेंस में किनारे पर खामोश बैठे कृष्णा अल्लावरु का चेहरा जल्दी भूलता नहीं है. और, अशोक गहलोत का भी, जो कांग्रेस नेता कम और लालू यादव के प्रवक्ता ज्यादा लग रहे थे. 

बहरहाल, कुछ रस्में तो निभानी ही होती हैं. नतीजा निकले, न निकले. जीत के बाद तो बहुत कुछ होता है, हार के बाद और किया भी क्या जा सकता है? 

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लेकिन, एक सवाल भी है - क्या हार के लिए बिहार कांग्रेस के नेता, उम्मीदवार और कार्यकर्ता ही जिम्मेदार हैं, आलाकमान बिल्कुल नहीं?

बिहार कांग्रेस के नेता दिल्ली तलब

बिहार चुनाव में हार की समीक्षा बैठक के लिए दिल्ली तलब किए जाने वालों में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस प्रदेश प्रभारी, पूर्व कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता, सभी सांसद, विधायक और चुनाव मैदान में उतारे गए सभी कांग्रेस उम्मीदवारों को भी बुलाया गया है.

बिहार कांग्रेस के ये सीनियर नेता और बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों से पार्टी आलाकमान हार की वजह जानने की कोशिश करेगा. चुनावी नतीजे आने के बाद इस स्तर की ये पहली बैठक है. बैठक में बिहार चुनाव में हार की समीक्षा तो होगी ही, आगे की रणनीति पर विस्तार से चर्चा होने वाली है.

मीटिंग में हर कांग्रेस उम्मीदवार को अपने अपने इलाके की विस्तृत रिपोर्ट पेश करनी होगी. रिपोर्ट के जरिए ये समझाना होगा कि आखिर वो कौन कौन से कारण रहे, जिसके चलते कांग्रेस को विधानसभा सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा. ये भी बताना होगा कि वे कौन से लोकल मुद्दे रहे जो प्रभावी और हार जीत में निर्णायक बने. और, ये भी कि वे कौन से मोर्चे रहे जहां संगठन पिछड़ गया? 

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निश्चित तौर पर विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों का काफी प्रभाव होता है, और कई मोर्चों पर संगठन का भी खासा अहम रोल होता है. लेकिन, क्या बात बस इतनी ही होती है? क्षेत्रीय नेतृत्व की कोई भूमिका नहीं होती? आलाकमान का कोई रोल नहीं होता?

हार के लिए जिम्मेदार कौन?

सवाल सीधा सा है. हार के लिए असली जिम्मेदार कौन है? बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश राम? बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु? बिहार कांग्रेस कमेटी के प्रमुख सदस्य रहे शकील अहमद, जिन्होंने पार्टी ही छोड़ दी? या फिर, पप्पू यादव और कन्हैया कुमार जैसे नेता जो किस भूमिका में थे, आखिर तक रहस्य बना रहा. पप्पू यादव के टिकट बंटवारे में दखल का तो एक ऑडियो भी वायरल हुआ था, ऐसा दावा किया गया था.

1. मीटिंग की प्रस्तावित और संभावित भाव-भंगिमा से तो यही लगता है कि हार का ठीकरा फोड़ने के लिए कोई किरदार ढूंढ लिया गया है. देखा जाए तो एक तरीके से कृष्णा अल्लावरु को पहले ही किनारे कर दिया गया है. चुनावों के बीच ही उनको यूथ कांग्रेस के प्रभारी के पद से हटा दिया गया था. शायद कोई संकेत देने की कोशिश रही हो.

2. बिहार चुनाव के काफी पहले से अगर कोई सुपर एक्टिव था, तो वो थे राहुल गांधी. दिल्ली चुनाव कैंपेन बीच में छोड़कर ही वो बिहार दौरे पर निकल गए थे. बार बार और लगातार, राहुल गांधी के बिहार का कार्यक्रम बनाया गया. हॉस्टल जाकर दलित छात्रों से मिलने के कार्यक्रम से लेकर बेगूसराय पहुंचकर कन्हैया कुमार की यात्रा को सपोर्ट करने तक. 

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3. क्या राहुल गांधी ने कभी ये भी सोचा कि तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित न करने का असर क्या हो सकता है? रणनीति जो भी रही हो, लेकिन लालू परिवार और आरजेडी कार्यकर्ताओं को नाराज करने के लिए तो काफी ही था. 

4. वोट-चोरी को मुद्दा बनाने की कोशिश किस लेवल पर हुई? साफ है, स्थानीय स्तर पर तो नहीं ही हुई. ये मुद्दा काफी हद तक राहुल गांधी तक सिमटा रहा. जब बिहार से कुछ दिन के लिए दूरी बना ली थी, तब वोट चोरी का बिहार में कोई नामलेवा तक न दिखा - सुनने को तभी मिला जब राहुल गांधी चुनाव कैंपेन के लिए वहां पहुंचे. 

5. क्या तेजस्वी यादव के साथ कांग्रेस का तालमेल और फ्रेंडली फाइट जैसे हालात ने चुनाव नतीजों को प्रभावित नहीं किया? और, अगर ऐसे हालात बने तो क्या उसके लिए कांग्रेस के उम्मीदवार, स्थानीय संगठन और लोकल मुद्दे ही जिम्मेदार समझे जाएंगे?

सबसे बड़ा सवाल तो एक ही है - क्‍या वास्तव में बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार स्‍थानीय वजहों से हुई, और राहुल गांधी का कोई कसूर नहीं था?

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