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अखिलेश यादव जाएंगे राम मंदिर? ध्‍वजारोहण वाले दिन आए पैगाम के कई मायने

राम जन्म भूमि मंदिर का विपक्ष के नेता अब तक बॉयकॉट करते आए हैं. खुलेतौर पर न सही, लेकिन नजरंदाज तो किया ही है. हां, सभी तरफ से राम मंदिर को लेकर राजनीति जमकर हुई. लेकिन, आज मंगलवार को जिस तरह के संकेत अखिलेश के एक ट्वीट से मिले हैं, उससे लगता है कि यूपी में समाजवादी पार्टी की रणनीति बदल रही है.

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 अखिलेश यादव
अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 25 नवंबर 2025 को राम मंदिर के ध्वजारोहण समारोह के मौके पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने कहा कि 'केवल पूर्णता ही पूर्णता की ओर ले जाती है. इस पोस्ट के साथ उन्होंने इटावा में निर्माणाधीन महादेव मंदिर (केदारेश्वर) की तस्वीरें शेयर कीं और लिखा कि मंदिर निर्माण पूरा होने के बाद हम अन्य पवित्र स्थलों की यात्रा का संकल्प भी पूरा करेंगे.' उनके इस संदेश को इशारा माना जा रहा है कि वे भविष्य में अयोध्या के राम जन्म भूमि मंदिर का दर्शन कर सकते हैं.  

हालांकि अखिलेश यादव ने अपने ट्वीट में कहीं भी राम मंदिर का जिक्र नहीं किया है पर समझा जाता है कि राम मंदिर ध्वजारोहण कार्यक्रम के दिन इस ट्वीट को लिखकर वो खुद को हिंदू विरोधी के तगमे से बचना चाहते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश के इस संकल्प में राम मंदिर भी शामिल है.

अखिलेश यादव का ट्वीट का दिन उसे महत्वपूर्ण बनाता है

अखिलेश यादव की आज की पोस्ट उनके पुराने बयानों का संदर्भ देती है, जहां उन्होंने स्पष्ट कहा था कि मंदिर का निर्माण कार्य समाप्त होने के बाद ही वे दर्शन के लिए जाएंगे. यह ट्वीट उन्होंने अपने समर्थकों के बीच यह संदेश देने के लिए किया होगा कि वो हिंदुत्व के दुश्मन नहीं है.यह यूपी की आगामी राजनीतिक रणनीति का भी संकेत है. पोस्ट के साथ अखिलेश ने इटावा में एक नए मंदिर निर्माण की तस्वीरें भी शेयर कीं, जो उनके 'संकल्प' को मजबूत करती हैं. भाजपा ने इसे 'हृदय परिवर्तन' करार दिया, जबकि सपा समर्थक इसे 'सच्ची आस्था' बता रहे हैं.

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हालांकि अखिलेश यादव ने ध्वजारोहण समारोह में भाग नहीं लिया. अभी ये कन्फर्म नहीं हो सका है कि उन्हें इस समारोह में बुलाया गया था या नहीं. पर अयोध्या के सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने भी कहा कि अगर निमंत्रण मिला तो वे नंगे पैर जाकर दर्शन करेंगे, जो अखिलेश यादव की लाइन को मजबूत करता दिख रहा है. कुल मिलाकर, अखिलेश का यह बयान 2027 यूपी विधानसभा चुनावों से पहले हिंदू वोट बैंक को साधने की रणनीति का हिस्सा लगता है.

क्या बिहार में आरजेडी की हार से सबक लिया है 

बिहार विधानसभा चुनावों में RJD की करारी हार ने पूरे विपक्षी खेमे को झकझोर दिया है. तेजस्वी यादव, जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे उनकी हार का प्रमुख कारणों में एक यह भी रहा कि उन्होंने अपनी छवि मुस्लिम परस्त की बना ली थी. इतना ही नहीं राम मंदिर और कुंभ आदि पर दिए उनके और उनके पिता लालू प्रसाद यादव के विवादास्पद बयानों ने उनकी छवि हिंदू विरोधी की बना दी थी. ऐसी संभावना जताई गई है कि कई जगहों पर यादव जाति के लोगों ने भी आरजेडी को वोट नहीं दिया. जनवरी 2024 में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले तेजस्वी ने कहा था, भूख लगेगी तो मंदिर जाओगे? वहां तो उल्टा दान मांग लेंगे. यह बयान भाजपा ने खूब भुनाया, जिससे RJD पर  'राम विरोधी' का ठप्पा लग गया.

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बिहार में लालू यादव की बनाई पार्टी आरजेडी की तरह यूपी में मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी भी सत्ता के रेस में है. अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनावों में अच्छा पर्फार्मेंस दिखाकर यूपी की राजनीति में एक उम्मीद जगा दी है. अखिलेश यादव कतई नहीं चाहेंगे कि उत्तर प्रदेश के यादव भी उन्हें मुस्लिम परस्त समझने लगें. शायद यही कारण है कि बिहार की हार के बाद अखिलेश ने राम मंदिर दर्शन का संकल्प दोहराया, जो तेजस्वी की गलती का प्रत्यक्ष सबक लगता है.

राम मंदिर जाने का था वादा पर बुलावा न मिलने का बहाना बनाकर गए नहीं

लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले, फरवरी 2024 में अखिलेश यादव ने राम मंदिर दर्शन का ऐलान किया था, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आमंत्रण न मिलने का बहाना बनाकर वे समारोह में नहीं गए. उन्होंने कहा था कि राम हमारे रोम-रोम में हैं, लेकिन मंदिर निर्माण पूरा होने पर जाएंगे.
दूसरी तरफ वीएचपी कहना था कि उन्हें औपचारिक निमंत्रण भेजा गया था पर अखिलेश ने अस्वीकार कर दिया था. भाजपा ने इसे 'राम नाम से बैर' करार दिया था. चुनावी माहौल में यह ऐलान सपा-कांग्रेस गठबंधन को मजबूत करने के लिए था, लेकिन अखिलेश का न जाना मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने का प्रयास लगा था. 

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पर अखिलेश यादव यह समझ गए हैं कि यूपी में उनकी समावेशी राजनीति ही चलने वाली है. 2024 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने केवल 5 उम्मीदवार यादव उतारे थे. उन्होंने सवर्णों और अति पिछड़ों को दिल खोलकर टिकट दिया था. जाहिर है कि यह काम कर गया था. बीजेपी को 34 सीटों पर रोकना आसान काम नहीं था.  

अब 2025 के ध्वजारोहण पर अखिलेश का संकल्प दोहराना पुरानी गलती सुधारने जैसा लगता है. क्योंकि अखिलेश जानते हैं कि अगर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने लायक बहुमत लाना है कि केवल यादव और मुसलमान का वोट ही नहीं चाहिए. यादव को अपनी पैठ सवर्ण हिंदुओं के बीच में भी बनानी होगी. खुद यादव और पिछड़ी जातियों में हिंदुत्व लोकप्रिय हो चुका है. जाहिर है कि अखिलेश ने 2027 की तैयारी शुरू कर दी है. 

अखिलेश यादव सॉफ्ट हिंदुत्व की अलख जगाते रहे हैं

अखिलेश यादव ने हमेशा से अपनी छवि हिंदुत्व के प्रति समर्पण वाली बनाने की कोशिश की है. यही कारण रहा है कि वो राम मंदिर में जाने की बातें करते रहे हैं. यह उनकी राजनीतिक रणनीति का अहम हिस्सा रहा है.

 2025 के प्रयागराज महाकुंभ में उन्होंने संगम स्नान किया, 11 डुबकियां लगाईं और फोटो शेयर कर कहा, आस्था की डुबकी लगाई, भगवान का आशीर्वाद मिला. यह घटना भाजपा की कुंभ प्रबंधन आलोचना के बीच आई, लेकिन अखिलेश ने इसे अपनी धार्मिक प्रतिबद्धता दिखाने का मौका बनाया. 

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इसी तरह, 2018 में उन्होंने इटावा में विष्णु मंदिर निर्माण का वादा किया, जो भाजपा के राम मंदिर कार्ड का जवाब था. अपने आवास पर महादेव मंदिर बनवाने का उदाहरण भी उनकी हिंदुत्व पर उनकी लाइन लेंथ ठीक रखने के चलते ही हुई है. अखिलेश ने लखनऊ स्थित घर में शिवलिंग स्थापित कर पूजा-अर्चना की फोटो जारी कीं, कैप्शन में लिखा, महादेव की कृपा से सब सिद्ध होता है. यह सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रतीक था.

इसके अलावा, राम नाम जाप कार्यक्रमों में भागीदारी, जैसे 2024 में फतेहपुर में 'राम कथा' सुनना, और सोशल मीडिया पर पूजा फोटो शेयर करना उनकी रूटीन रहा है. 2023 में सपा ट्रेनिंग कैंप में हिंदू त्योहारों पर जोर दिया गया. अन्य उदाहरणों में, 2025 महाकुंभ के दौरान अखिलेश ने श्रद्धालुओं की सुविधा बढ़ाने की मांग की, और लापता तीर्थयात्रियों पर संसद में बोले. ये सारे कदम मुस्लिम-यादव बेस को बनाए रखते हुए हिंदू वोट साधने की है. भाजपा इन्हें 'चुनावी ड्रामा' कहती है, लेकिन अखिलेश की ये गतिविधियां सपा को 'सेक्युलर हिंदुत्व' की छवि देती हैं.

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