कोई नेता चुनावी रैली में पहुंचे और बगैर भाषण दिये लौट जाये, समझा तो यही जाएगा कुछ तो गड़बड़ है. अगर रैली में भीड़ न होने के चलते ऐसा हो तो बात अलग है, लेकिन भीड़ के उत्पात के कारण बैरंग लौट जाना पड़े तो बहुत गंभीर मामला समझा जाएगा - राहुल गांधी और अखिलेश यादव की फूलपुर रैली को लेकर तो यही ऐसा ही लग रहा है.
अब इससे अजीब बात क्या होगी कि रैली में आये लोगों को संबोधित करने के बजाय राहुल गांधी और अखिलेश यादव जैसे बड़े बड़े नेता बैठ कर आपस में बात करें और उसकी वीडियो बना कर बाद में जारी किया जाये.
और दोनों नेताओं के बीच जो बातचीत भी हो रही है, वो भी कोई ऐसी नहीं है जो किसी चुनावी रैली के हिसाब से हो. ये ठीक है कि वीडियो में दोनों नेता चुनाव घोषणा पत्रों की बात करते हैं, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके निशाने पर होते हैं, लेकिन मंच पर बैठ कर राहुल गांधी, अखिलेश यादव से उनके पिता के बारे में पूछते हैं.
'आप मुझे अपने पिता जी के बारे में बताइए!'
'नेता जी और उनके साथ के लोग जमीनी राजनीति करते थे... नेता जी कुश्ती और पहलवानी के बड़े शौकीन थे... वो इसीलिए धरतीपुत्र कहे गये... क्योंकि वह जमीन की बात को समझते थे.'
WATCH: Prayagraj में @yadavakhilesh जी के साथ Unique जनसभा https://t.co/itIQ0yO1A0
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 19, 2024
गजब. देश के दो बड़े नेता एक चुनावी रैली में मंच पर बैठ कर ऐसी बातचीत करें, तो कैसा लगेगा?
ये तो ऐसा लगता है जैसे कोई रियल्टी शो चल रहा हो, और दो सेलीब्रिटी कोई स्क्रिप्ट पढ़ कर बात कर रहे हों - लेकिन जो कुछ उनकी आंखों के सामने हो रहा है, उससे या तो बेफिक्र हैं या अनजान बन कर नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहे हैं.
सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये बातचीत सोशल मीडिया पर जारी की गई है - लेकिन सुर्खियों में ये बात छाई हुई है कि रैली में हंगामे के कारण राहुल गांधी और अखिलेश यादव को बैरंग वापस जाना पड़ा.
रैली में मंच की तरफ बढ़ रही भीड़ में कौन लोग शामिल थे?
फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के पड़िला महादेव मंदिर के पास एक आम के बगीचे में रैली होनी थी. रैली में शामिल होने के लिए लोग सुबह से ही आने लगे थे. दोपहर में जब अखिलेश यादव का हेलीकॉप्टर पहुंचा तो रैली में आये कार्यकर्ता घेरा तोड़ कर हेलीपैड की तरफ दौड़ पड़े. पुलिस ने उनको खदेड़ दिया.
जब अखिलेश यादव मंच पर पहुंचे तो सबसे करीब वाली बैरिकेडिंग तोड़ दी. कुछ लोग मंच पर भी चढ़ गये. सुरक्षाकर्मियों ने जैसे तैसे उनको नीचे उतारा. रैली में मौजूद INDIA ब्लॉक के सभी क्षेत्रीय नेताओं ने कार्यकर्ताओं से पीछे हटने के लिए की अपील की, लेकिन किसी पर असर न हुआ.
तभी राहुल गांधी भी पहुंच गये. एक बार फिर कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ गया. काबू करने के लिए सुरक्षाकर्मी डंडे भांजने लगे, तो मंच पर मौजूद नेताओं ने मना कर दिया. किसी की किसी भी बात का भीड़ पर कोई भी असर नहीं हो रहा था.
करीब 15 मिनट तक राहुल गांधी और अखिलेश यादव दोनों मंच पर बैठे रहे. बताते हैं कि जब मोर्चा संभाल रहे सुरक्षाकर्मियों ने दोनों नेताओं को मैसेज भिजवाया कि ज्यादा देर वहां रुकना ठीक नहीं है, तब वे दोनों वहां से चलते बने.
जो भी हुआ, जैसे भी हुआ - सब कुछ बेहद गंभीर मामला है.
और इसीलिए कई सवाल खड़े होते हैं.
1. भीड़ में से जो लोग भी मंच की तरफ बढ़ रहे थे, क्या वास्तव में वे सभी समाजवादी पार्टी और, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता ही थे?
2. अगर ये सपा कार्यकर्ता थे, तो ऐसा क्या खतरा था जो सुरक्षाकर्मियों ने अखिलेश यादव के साथ साथ राहुल गांधी को वहां देर तक न रुकने के लिए मैसेज भेजा था - क्या सुरक्षाकर्मियों ने हंगामा कर रहे लोगों से दोनों नेताओं के लिए किसी तरह का खतरा महसूस किया था?
3. ऐसा तो नहीं कि भीड़ में असामाजिक तत्व घुस आये थे, और दोनों ही नेता उन सभी को भी INDIA ब्लॉक का कार्यकर्ता मान कर चल रहे हैं?
4. अगर भीड़ में कार्यकर्ता के वेष में असामाजिक तत्व थे - तो समाजवादी पार्टी की तरफ से पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई गई?
सबसे मुश्किल की बात तो ये है कि समाजवादी पार्टी की रैली में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. ऐसी घटनाओं से डिंपल यादव तक असहज हो चुकी हैं - और 2019 के आम चुनाव में यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती नसीहत तक दे चुकी हैं कि सपा कार्यकर्ताओं को बसपा के कार्यकर्ताओं से अभी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है. खास तौर पर अनुशासन.
जब डिंपल यादव भी घबरा गई थीं
1. अप्रैल, 2019 में बीएसपी नेता मायावती सपा नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के समर्थन में रैली करने फिरोजाबाद पहुंची थीं. मायावती का भाषण चल ही रहा था कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता नारेबाजी करने लगे. मायावती ने मना किया कि बीच में नारेबाजी न करें, लेकिन कोई सुने तब तो.
फिर मायावती बोलीं, समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को बसपा के कार्यकर्ताओं से कुछ सीखने की जरूरत है... आप लोग जो बीच में नारे लगा रहे हैं... आपको बसपा के लोगों से कुछ सीखना चाहिये... बसपा के लोग पार्टी और हमारी बात बहुत शांति से सुनते हैं.
2. फरवरी, 2017 में डिंपल यादव की हंडिया में चुनावी जनसभा चल रही थी. नारेबादी करते कार्यकर्ता मंच के करीब पहुंच गये. डिंपल यादव शांत होने की अपील करती रहीं, लेकिन वे फोटो ले रहे थे और नारेबाजी करते जा रहे थे.
डिंपल यादव ने समझाने की कोशिश की, 'आप चिल्लाते हो... मुझे डर लगता है... शांत हो जाइये.'
जब कोई सुनने को तैयार नहीं हुआ तो थोड़ा धमकाने की भी कोशिश कीं, कल अखिलेश भइया आएंगे, तो मैं उनसे शिकायत करूंगी.
फिर डिंपल यादव ने माइक संभाला और बोलीं, अखिलेश भइया ये देखकर बिल्कुल खुश नहीं होंगे... मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूं... शांत हो जाइये... नहीं तो भाभी नहीं बोलेंगी.
2012 में समाजवादी पार्टी को यूपी विधानसभा चुनावों में जीत मिली तो सपा कार्यकर्ताओं का जोश सातवें आसमान पर पहुंच गया. वे फिर 'बोल मुलामय हल्ला बोल' वाले अंदाज में उत्साहित नजर आने लगे, और मुलायम सिंह यादव से प्रधानमंत्री बनने की बात कर रहे थे, लेकिन शांत होने का नाम नहीं ले रहे थे. फिर थोड़ा प्यार और थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए मुलायम सिंह को बोलना पड़ा, शांत नहीं होगे, और ऐसे ही हंगामा करोगे तो कैसे प्रधानमंत्री बनेंगे. ऐसा लगा जैसे मुलायम सिंह को अपने ही कार्यकर्ताओं का जोश कुछ एक्स्ट्रा लग रहा था.