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मध्य प्रदेश को लेकर इतने एक्टिव क्यों हैं अमित शाह? BJP के सामने क्या हैं चुनौतियां

मध्य प्रदेश में कुछ ही महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं और इसे लेकर भोपाल से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर चल रहा है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के बड़े नेताओं के साथ मैराथन बैठक की है. आखिर मध्य प्रदेश को लेकर अमित शाह इतने एक्टिव क्यों हैं?

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अमित शाह (फाइल फोटोः पीटीआई)
अमित शाह (फाइल फोटोः पीटीआई)

मध्य प्रदेश में इसी साल अक्टूबर-नवंबर तक विधानसभा चुनाव होने हैं. इसको लेकर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक्टिव मोड में है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक महीने के भीतर तीन बार मध्य प्रदेश का दौरा किया. भोपाल से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर चला. एक दिन पहले भी अमित शाह ने मध्य प्रदेश को लेकर मैराथन बैठक की. करीब चार घंटे तक चली इस बैठक में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वीडी शर्मा समेत तमाम बड़े नेता मौजूद थे.

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अमित शाह के मैराथन मंथन में क्या निकला? इस संबंध में अभी कोई जानकारी सामने नहीं आई है लेकिन उनकी सक्रियता को लेकर चर्चा जरूर छिड़ गई है. मध्य प्रदेश में बीजेपी के सामने आखिर क्या चुनौतियां हैं कि अमित शाह जैसे कद्दावर नेता को आगे आकर कमान संभालनी पड़ रही है?

इन चुनौतियों ने बढ़ाई बीजेपी की चिंता

1) सर्वे रिपोर्ट्स

मध्य प्रदेश चुनाव को लेकर अमित शाह की सक्रियता के पीछे राजनीति के जानकार सर्वे रिपोर्ट्स को वजह मानते हैं. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि बीजेपी, बीजेपी से जुड़े संगठन और यहां तक कि तमाम बड़े नेता अपने-अपने स्तर पर सर्वे कर स्थिति का आकलन करते हैं. इन्हीं रिपोर्ट्स के आधार पर पार्टी रणनीति तय करती है. हो सकता है कि सर्वे रिपोर्ट्स में कोई ऐसा फीडबैक मिला हो जिसके बाद केंद्रीय नेतृत्व एक्टिव हुआ हो.

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सर्वे की बात आई तो सी वोटर की भी दो सर्वे रिपोर्ट्स सामने आई हैं. एक रिपोर्ट इस साल की शुरुआत में आई थी, जिसमें बीजेपी और कांग्रेस में नेक-टू-नेक फाइट की बात कही गई थी. दूसरी रिपोर्ट जून के महीने में आई थी. इसमें शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद बनकर उभरे जरूर थे लेकिन कमलनाथ भी उनके ठीक पीछे ही थे.

सी वोटर के सर्वे में 37 फीसदी लोगों ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पहली पसंद बताया था, तो वहीं 36 फीसदी लोगों ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को. शिवराज और कमलनाथ की लोकप्रियता में महज एक फीसदी का अंतर था. अमिताभ तिवारी सी वोटर के सर्वे में शिवराज और कमलनाथ के बीच महज एक फीसदी के अंतर पर कहते हैं कि ये निश्चित रूप से बीजेपी के लिए चिंता की बात है. 

2) बड़े नेताओं की नाराजगी

मध्य प्रदेश में बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती नाराज नेता हैं. डॉक्टर गौरीशंकर शेजवार, गौरीशंकर बिसेन, गिरिजाशंकर व्यास और हरेंद्रजीत सिंह समेत दर्जनों वरिष्ठ नेता पार्टी से नाराज चल रहे हैं. अधिकतर नेताओं की नाराजगी राजनीतिक भविष्य को लेकर अनिश्चितता के कारण बताई जा रही है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों के समर्थन से 15 महीने का वनवास समाप्त कर सत्ता में लौटी बीजेपी की नई सरकार में कई पुराने दिग्गज दरकिनार हो गए. नाराजगी को इससे और हवा मिली.

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अब बीजेपी की कोशिश ऐसे नेताओं को मनाने और फिर से सक्रिय करने की है. जयंत मलैया की नाराजगी का परिणाम दमोह उपचुनाव में देख चुकी बीजेपी 2023 के चुनाव में नेताओं की नाराजगी का खतरा मोल लेना नहीं चाहती.

3) टिकट बंटवारा

बीजेपी एंटी इनकम्बेंसी से निपटने के लिए निवर्तमान विधायकों के टिकट काटने के आजमाए फॉर्मूले पर चलती रही है. बीजेपी अपने सर्वे के आधार पर निवर्तमान विधायकों के टिकट काट जिताऊ उम्मीदवार पर दांव लगाती है. मध्य प्रदेश के पिछले चुनाव में शिवराज सरकार के करीब आधा दर्जन मंत्री चुनाव हार गए थे और पार्टी बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से करीब इतनी ही सीटों के अंतर से पीछे रह गई थी. बीजेपी इस बार पिछले चुनाव की तरह रिस्क नहीं लेना चाहती. चुनाव करीब हैं, ऐसे में पार्टी अब टिकटों को लेकर भी मंथन कर रही है.

टिकट काटने की बात हो या टिकट बंटवारे की, बीजेपी के लिए सबसे अधिक उलझन ग्वालियर-चंबल के साथ महाकौशल क्षेत्र में है. महाकौशल कमलनाथ का इलाका है तो वहीं सिंधिया के साथ आए अधिकतर विधायक ग्वालियर-चंबल से हैं. सिंधिया खेमा नहीं चाहेगा कि उसके विधायकों का टिकट कटे और बीजेपी अगर चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में आए तो सरकार पर उसकी पकड़ जरा सी भी ढीली पड़े.

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4) नए तरह की एंटी इनकम्बेंसी

एंटी इनकम्बेंसी के दो रूप सामने आते रहे हैं. जनता या तो सरकार से नाराज होती है या फिर अपने प्रतिनिधि से. अमिताभ तिवारी कहते हैं कि मध्य प्रदेश में नई तरह की एंटी इनकम्बेंसी भी है. शिवराज का वही चेहरा, सरकार के कामकाज का वही तरीका. लोगों में इसे लेकर नाराजगी है ही, लोग बीजेपी के छोटे-छोटे पदाधिकारियों और उनकी कार्यप्रणाली से भी नाराज हैं.    

5) बूथ लेवल मैनेजमेंट

मध्य प्रदेश बीजेपी के बूथ लेवल मैनेजमेंट का मॉडल रहा है. लोकसभा चुनाव भी करीब हैं ऐसे में बीजेपी बूथ लेवल पर किसी तरह की खामी नहीं छोड़ना चाहती. कांग्रेस आदिवासियों के खिलाफ आपराधिक घटनाओं को मुद्दा बना बीजेपी को घेर रही है तो वहीं ब्राह्मण भी सीधी के पेशाब कांड के आरोपी के घर पर बुलडोजर एक्शन से नाराज हैं. मध्य प्रदेश में बीजेपी को कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है.

चुनाव प्रबंधन में माहिर हैं शाह

अमित शाह को चुनाव प्रबंधन में माहिर माना जाता है. उत्तर प्रदेश जैसे जटिल समीकरणों से भरे राज्य में 2014 चुनाव में बीजेपी ने दमदार प्रदर्शन किया तो उसके लिए भी श्रेय अमित शाह को दिया गया. 2017 के यूपी चुनाव में अमित शाह ने ऐसा व्यूह रचा कि सपा, बसपा के सारे समीकरण ध्वस्त हो गए और बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रही. अब मध्य प्रदेश में बीजेपी के सामने सरकार बचाने की चुनौती है. 

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