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दलितों का आज भारत बंद नहीं, लेकिन देश भर में करेंगे प्रदर्शन

एक तरफ जहां मोदी सरकार के पेश किए एससी/एसटी संशोधन विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा होगी वहीं देशभर में दलित संगठन विरोध-प्रदर्शन करेंगे.

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आंदोलित दलित समाज
आंदोलित दलित समाज

एससी/एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और आरक्षण सहित अन्य मामलों को लेकर आज ऑल इंडिया आंबेडकर महासभा ने 'भारत बंद' को टाल दिया है, लेकिन देश भर के अलग-अलग राज्यों में धरना प्रदर्शन करेंगे. हालांकि, एससी/एसटी संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है. अब इसे राज्यसभा में पेश किया गया है.

ऑल इंडिया आंबेडकर महासभा के अध्यक्ष अशोक भारती ने कहा, 'एससी/एसटी ऐक्ट को लागू करने की हमारी बड़ी मांग पूरी हो गई है. लेकिन दूसरी मांगों को लेकर शांतिपूर्वक तरीके से विरोध प्रदर्शन करेंगे. उन्होंने बताया कि हम लोगों की दुकानें और सड़क बंद नहीं करेंगे.

दिल्ली के जंतर-मंतर पर दलित संगठन अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं. वहीं, ओडिशा के भुनेश्वर में भी हजारों दलितों के उतरने की संभावना है.

अशोक भारती ने बताया कि उत्तर प्रदेश और बिहार में कई शहरों में दलित समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं. मध्य प्रदेश में तो शिवराज सरकार ने धारा 144 लगा दिया है.

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बता दें कि पिछली बार के भारत बंद से सबक लेते हुए मध्य प्रदेश पुलिस इस बार हाई अलर्ट पर है. कई जिलों में प्रशासन ने धारा-144 लगा दिया है. 

पिछली बार दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान मध्य प्रदेश के भिंड सहित कुछ इलाकों में भारी हिंसा हुई थी. इस बार प्रशासन ने हिंसा से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम किए हैं. ग्वालियर  में बुधवार को ही धारा 144 लागू कर दी गयी है, जो 13 अगस्त तक लागू रहेगी. इसके अलावा मुरैना जिले में भी धारा 144 लागू रहेगी.

वहीं भारतीय जनता पार्टी इस मामले पर फूंक-फूंककर कदम रख रही है. क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव है. ऐसे में पार्टी यह नहीं चाहेगी कि दलित वर्ग उनसे नाराज हों. साथ ही वह अगड़े समाज को भी नाराज नहीं करना चाहती है, जो अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए प्रमोशन में आरक्षण पर सरकार का रुख साफ होने के बावजूद भाजपा के साथ बना हुआ है.

हालांकि इस मुद्दे पर भाजाप के अपने सहयोगी भी सरकार पर दबाव बना रहे हैं. कुछ पार्टी के लोग इसे रणनीति भी बता रहे हैं. पार्टी के कई सांसदों का कहना है कि अगड़ी जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उनके पारंपरिक वोटरों ने प्रमोशन में दलितों को कोटा पर विरोध के बावजूद अब तक पार्टी का साथ दिया है.

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आरक्षण और एससी/एसटी कानून सहित अन्य मसलों को लेकर एनडीए के घटक दल भी मोदी सरकार को घेर रहे हैं. इन मुद्दों पर एनडीए में शामिल एलजेपी के नेता राम विलास पासवान सहित अन्य दलित सांसद इस मुद्दे पर सरकार से जवाब मांग चुके हैं.

लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख राम विलास पासवान ने कहा है कि गोयल की नियुक्ति से गलत संदेश गया है. वहीं पासवान के बेटे और लोकसभा सदस्य चिराग पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर गोयल को एनजीटी अध्यक्ष के पद से हटाने की मांग की है. भाजपा के उदित राज जैसे दलित सांसदों ने भी इस मांग का समर्थन किया है.

दरअसल, ये सभी सांसद एनजीटी के अध्यक्ष एके गोयल को हटाने की मांग कर रहे हैं. क्योंकि जस्टिस गोयल सुप्रीम कोर्ट के उन दो जजों में शामिल थे जिन्होंने अनुसूचित जाति एवं जनजाति उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के संबंध में आदेश दिया था.

बता दें कि इसी साल 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है.

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल 2018 को दलित संगठन सड़कों पर उतरे थे. दलित समुदाय ने दो अप्रैल को 'भारत बंद' किया था. केंद्र सरकार को विरोध की आंच में झुलसना पड़ा. देशभर में हुए दलित आंदोलन में कई इलाकों में हिंसा हुई थी, जिसमें एक दर्जन लोगों की मौत हो गई थी.

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