मंगलवार को INDIA ब्लॉक की हुई बैठक का सबसे हैरान करने वाला पहलू ये रहा कि मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया गया.हालांकि INDIA गठबंधन में इस पर व्यापक रूप से सहमति नहीं बन पाई है. लेकिन उनकी जाति, अनुभव और गांधी परिवार से उनकी निकटता की वजह से उनकी प्रस्तावित दावेदारी में वजन और साख दोनों ही दिखता है.
एमडीएमके प्रमुख वाइको के मुताबिक, INDIA की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने खड़गे को गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तावित किया.
इस प्रस्ताव पर खड़गे उत्साहित तो दिखे लेकिन उन्होंने गंभीरता बनाए रखी और प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा- पहले चुनाव जीता जाए, प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार उसके बाद चुना जाएगा.
अब सभी की निगाहें बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पर है. अगर मायावती देश के पहले दलित प्रधानमंत्री के विचार को समर्थन देती हैं तो 2024 के लिए INDIA अलायंस की कहानी को रफ्तार मिल सकती है.
उत्तर प्रदेश वो राज्य है जहां 2014 और 2019 में बीजेपी ने थोक में सीटें जीती थीं, इसलिए अगर एक व्यक्ति, एक सीट और दलित वोट एकमुश्त में पड़ेंगे तो हिन्दी पट्टी से बीजेपी की जोरदार उम्मीदें धूमिल हो सकती हैं.
फाइटर खड़गे तैयार हैं
मजेदार बात यह है कि जब ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने अलायंस के लीडर के तौर पर खड़गे का नाम आगे किया तो ये वेटरेन नेता और कांग्रेस के 88वें अध्यक्ष थोड़े आश्चर्य में दिखे. लेकिन अनिच्छुक नहीं दिखे. सूत्र बताते हैं कि खड़गे ने INDIA ब्लॉक के नेताओं से कहा, "मैं फाइटर रहा हूं, मैंने कभी यह कहकर अपनी राजनीति नहीं की कि मैं गरीब परिवार से हूं या दलित हूं. मैं जीवन भर समानता के पक्ष में खड़ा रहा; मैंने बराबरी के लिए लड़ाई लड़ी है, वो एक जाति के नेता के तौर पर नहीं. मैं पहले मोदी को हराने का प्रयास करूंगा और फिर ये चीजें (प्रधानमंत्री पद का चेहरा) चर्चा और निर्णय के लिए आएंगी."
हालांकि ये सारी उम्मीदें इन बातों पर निर्भर करेगी कि क्या अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने दम पर 100 सीटों का आंकड़ा पार कर पाएगी. INDIA गठबंधन के भीतर और बाहर कई लोग हैं जो महसूस करते हैं कि कांग्रेस का प्रदर्शन 2024 के आम चुनावों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू होगा. क्या खड़गे कांग्रेस को पांच दक्षिणी राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश से बड़ी संख्या में सीटें दिलाने में मदद कर सकते हैं?
खड़गे की ताकत
26 अक्टूबर 2022 की वो तारीख जबसे खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं, उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा है. धीरे-धीरे वो संगठन पर पकड़ मजबूत कर रहे हैं, गांधी फैमिली के लिए वो भरोसेमंद बनते जा रहे हैं और उन्होंने बड़ी विपक्षी पार्टियों के साथ बातचीत का रास्ता खोल दिया है. कर्नाटक और तेलंगाना के नतीजों ने उनके नेतृत्व को भरोसे और वैद्यता की अतिरिक्त चादर दे दी है.
दक्षिण में कांग्रेस का चेहरा बन रहे खड़गे 8 भाषाएं जानते हैं, जिसमें से एक सहज हिन्दी है. देश के सबसे बड़े दलित नेताओं में से एक खड़गे रिकॉर्ड 10 बार लगातार चुनाव जीत चुके हैं.
कांग्रेस के दृष्टिकोण से, खड़गे की सबसे बड़ी उपलब्धि पार्टी के कामकाज में एक हद तक सहजता और सामान्य स्थिति लाना है. एक अनुभवी राजनेता के रूप में, जहां परिवार की साजिशें चलती है, जहां चाटुकारिता का बोलबाला रहता है और जो जगह अतीत में अयोग्य उस्तादों का अड्डा रहा करता था, वहां खड़गे कांग्रेस जैसी विशाल पार्टी में महज एक गुट के नेता नहीं बने हैं.
खड़गे ने बराबरी से काम किया मगर सतर्क रहे. उदाहरण के लिए, खड़गे ने कर्नाटक में उन 'खेलों' का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया जो चुनाव से पहले, उसके दौरान और बाद में उनके गृह राज्य में खेले जा रहे थे. पार्टी महासचिवों रणदीप सिंह सुरजेवाला और जयराम रमेश के बीच खींचतान और प्रतिद्वंद्विता भले ही कांग्रेस की परंपरा का हिस्सा बन गई हो, लेकिन खड़गे ने ऐसी दुश्मनी से पार्टी के हित को नुकसान नहीं पहुंचने दिया.
ये मौके की बात है
चुना हुआ राजनेता, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता, केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री के रूप में खड़गे का अनुभव उन्हें शीर्ष पद के लिए एक आदर्श उम्मीदवार बनाता है.
खड़गे पर वंशवाद के आरोप नहीं चलते हैं और उस क्षेत्र में मजबूती से खड़े हैं जहां भाजपा कमजोर है. वह गठबंधन और समझौते की राजनीति में डार्क होर्स के विजेता के रूप में उभर सकते हैं.
कमजोरियां और परेशानियां
खड़गे की ताकत ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है. यदि उनकी जातिगत पहचान उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य लोगों के तीखे हमले से बचाती है, तो कांग्रेस के भीतर और INDIA ब्लॉक के अंदर ब्राह्मण, पिछड़ा लॉबी के बीच स्वीकार्यता हासिल करना उनके सामने एक बड़ी चुनौती पेश करती है.
खड़गे चाहेंगे कि सोनिया और राहुल गांधी अखिलेश यादव, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की संभावित साजिशों से बचने के लिए उनके चारों ओर एक सुरक्षा घेरा बनाएं.
खड़गे अभी ऊर्जावान हैं लेकिन उनकी उम्र 80 पार है. उनका चुनावी आधार उनके गृह क्षेत्र कलबुर्गी, जिसे पहले गुलबर्गा के नाम से जाना जाता था, तक सीमित होने के कारण, खड़गे पर उनके आलोचकों द्वारा करिश्मा की कमी का आरोप लगाया जाता रहा है. 2019 में वह अपनी ही लोकसभा सीट हार गए।
खड़गे के सामने चुनौतियां ये है कि हो सकता है कि गांधी परिवार पार्टी के अंदर एक शक्ति केंद्र के रूप में उनके उभार को लेकर सहज न हो. इसके अलावा कई कांग्रेस विरोधी पार्टियां उन्हें सपोर्ट नहीं कर सकती हैं.
खड़गे का ट्रंप कार्ड
कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में, खड़गे के पास INDIA गठबंधन के संयोजक के रूप में नीतीश कुमार या ममता बनर्जी के नाम की वकालत करने की ताकत है. एक संयोजक की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि वही INDIA गठबंधन का सचिवालय चलाएगा, चुनाव प्रबंधन तंत्र पर नजर रखेगा और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को अंतिम रूप देगा.
1977, 1989 और 2004 का इतिहास ममता को उम्मीद देता है.
अगर INDIA गठबंधन 2024 में एनडीए को हराने में कामयाब होता है तो अन्य दावेदारों और उम्मीदवारों के लिए, खड़गे की उम्मीदवारी कुछ उम्मीद जगाती है. 1977 में मोरारजी देसाई तस्वीर में कहीं नहीं थे, उन्होंने सतरंगी जनता पार्टी गठबंधन का प्रधानमंत्री बनने के लिए दो शक्तिशाली दावेदारों चरण सिंह और बाबू जगजीवन राम (एक दलित) को हरा दिया.
1989 में, चौधरी देवीलाल को राष्ट्रीय मोर्चा-वाम मोर्चा गठबंधन द्वारा प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था, जब तक कि हरियाणा के इस जाट नेता ने मना नहीं कर दिया और बाद में वीपी सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया.
2004 में कांग्रेस में हर कोई सोनिया गांधी को देश के 13वें प्रधानमंत्री के तौर पर देख रहा था, तभी उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह का नाम आगे आया. क्या चतुर खड़गे मई 2024 में ममता या किसी और को उपकृत करेंगे?