बीजेपी के संस्थापक सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का 82 साल की उम्र में निधन हो गया है. वो काफी लंबे समय से बीमार थे और कोमा में थे. राजस्थान के बाड़मेर जिले के एक छोटे से गांव जसोल में जन्मे जसवंत सिंह को पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी का 'हनुमान' कहा जाता था. वो एनडीए सरकार में वित्त, विदेश और रक्षा मंत्री रहे हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक सफर में कई मील के पत्थर स्थापित किए हैं. चाहे पाकिस्तान के साथ से रिश्ते सुधार की बात रही हो या फिर परमाणु परिक्षण के बाद दुनिया के साथ बेहतर संबंध को मजबूत करने की, जसवंत सिंह ने अपना रोल बाखूबी निभाया.
पाकिस्तान के साथ रिश्ता सुधारना
जसवंत सिंह ने अपने राजनीतिक सफर में पाकिस्तान और बंग्लादेश के साथ रिश्ते सुधराने की हरसंभव कोशिश की थी. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच शांति का उनका सपना भी अधूरा ही रह गया है. इसे लेकर कभी उन्होंने कहा था कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक ही मां की सिजेरियन प्रसव से पैदा हुई संतानें हैं, जिनके बीच आपसी रिश्ते बेहतर होने चाहिए. इस दिशा में उन्होंने हरसंभव कोशिश की थी.
2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद जब सारी राजनीतिक पार्टियां पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए एकमत थीं. इतना ही नहीं भारतीय सेना भी सीमा पर तैनात की जा चुकी थी, उस दौरान जसवंत सिंह पर आरोप लगे कि उन्होंने ऐसा न होने देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. उन्हें पता था कि युद्ध से दोनों देशों के रिश्ते कभी सुधर नहीं सकते. मुनाबाव-खोखरापार के बीच थार एक्सप्रेस चलवाकर उन्होंने दोनों देशों के रिश्ते सुधारने की ओर एक कदम बढ़ाया था. यही नहीं पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बस को लेकर पाकिस्तान के लाहौर गए थे.
जुलाई 2001 की आगरा शिखर वार्ता के दौरान जसवंत सिंह एनडीए सरकार के विदेश मंत्री थे. आगरा में अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के चीफ मार्शल लॉ ऑफिसर परवेज मुशर्रफ के बीच वर्ता के दौरान जसवंत सिंह थे. दरअसल, वर्ता के पहले दिन भारत के विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने प्रस्ताव दिया था कि अटल और मुशर्रफ के साथ, दोनों देशों के विदेश मंत्री भी बैठेंगे. इसके बाद दोनों देशों के मुखिया के सहित चार लोगों के बीच बातचीत चली और कोशिश भी की गई, लेकिन सफल नहीं हो सकी.
परमाणु परिक्षण के बाद दुनिया के साथ संबंध बनाना
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 1998 में पोखरण में दो दिनों के अंतराल में 5 परमाणु परीक्षण कर सारी दुनिया को चौंका दिया था. इसके बाद दुनियाभर के तमाम देश भारत के विरोध में खड़े हो गए थे. अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और कई पश्चिमी देशों सहित कई देशों में आर्थिक पाबंदी लगा दी थी. देश में विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटा था. प्रतिबंध के चलते देश की आर्थिक हालत बिगड़ गई थी. ऐसे में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया को जवाब देने के लिए जसवंत सिंह को आगे किया था.
परमाणु परिक्षण किये जाने के बाद भारत-अमेरिका के रिश्तो में जो दरार आई, उसे जसवंत सिंह ने अपने कौशल से भरने की कोशिश की. जसवंत सिंह के तत्कालीन अमेरिकन प्रतिरूप स्ट्रोब टैलबोट के मुताबिक वे एक बेहतरीन वार्ताकार और कूटनीतिज्ञ रहे. जसवंत सिंह के कूटनीतिक कौशल का कमाल था कि 2001 के आते-आते ज्यादातर देशों ने सारी पाबंदियां हटा ली थीं.
विमान हाईजैक के दौरान खुद आगे आए
आतंकियों ने 24 दिसंबर, 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी-814 को हाईजैक कर लिया था. इसमें 176 यात्री और 15 क्रू मेंबर्स सवार थे. कंधार विमान अपहरण कांड के वक्त जसवंत सिंह विदेश मंत्री थे. आतंकियों ने शुरू में भारतीय जेलों में बंद 35 उग्रवादियों की रिहाई और 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग की. सरकार इस पर राजी नहीं हुई और बाद में तीन आतंकियों को छोड़ने पर सहमति बनी. तीन आंतकियों को कंधार छोड़ने भी जसवंत सिंह गए थे.
जसवंत सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि इस फैसले का आडवाणी और अरूण शौरी ने विरोध किया था. लेकिन मौके पर कोई गड़बड़ न हो इसलिए उनका साथ जाना जरूरी था. वे लिखते हैं कि उन्हें मालूम था कि इस फैसले के लिए उन्हें कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा. शुरूआत में जसवंत सिंह भी आतंकियों से किसी भी तरह का समझौता करने के खिलाफ थे. लेकिन बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय के आगे बिलखते अपह्रत यात्रियों के परिजनों को देखकर उनका मन बदल गया.
राजनीतिक जीवन भ्रष्टाचार से पाक रहा
जसवंत सिंह 1960 में सेना में मेजर के पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक के मैदान में उतरे थे. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वह अपने कैरियर के शीर्ष पर थे. वो पांच बार राज्यसभा और चार बार लोकसभा सदस्य रहे. इतना ही नहीं जसवंत ने एनडीए सरकार में वित्त, रक्षा और विदेश जैसे अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली, लेकिन उनके दामन पर एक भी भ्रष्टाचार का दाग नहीं लगा. हालांकि, रक्षा मंत्रालय के बारे में कहा जाता है कि यह ऐसा विभाग है, जिसने भी संभाला उसके दामन पर कालिख जरूर लगी है. वहीं, खुद को लिबरल डेमोक्रेट कहने वाले जसवंत सिंह हमेशा विवादों से घिरे रहे लेकिन उनपर कोई भ्रष्टाचार का आरोप कभी नहीं लगा.
बीजेपी का उदारवादी चेहरा माने जाते थे
जसवंत सिंह भले ही बीजेपी की बुनियाद रखने वाले नेताओं में शामिल रहे हों, लेकिन पार्टी के हिंदुत्व की राजनीति से उन्होंने खुद को दूर रखा था. जयवंत सिंह बीजेपी के उदारवादी चेहरे के तौर पर पूरे जीवन रहे हैं. उन्होंने बीजेपी में रहते हुए अपनी राजनीति अपनी शर्तों पर की. बीजेपी में होते हुए भी वो कभी बाबरी प्रकरण या हिंदुत्व के राजनीतिकरण के पक्षधर नहीं रहे. अपने क्षेत्र और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लोगों का उनको जबर्दस्त आत्मीय समर्थन हासिल था. इसी का नतीजा था कि उनके क्षेत्र के मुसलमान उनके पक्षधर रहे. यहां तक कि कांग्रेस के नेता भी जसवंत सिंह के नाम पर पार्टी से अलग हो जाते थे. एक बीजेपी नेता के लिए इस तरह का समर्थन विरले ही देखने को मिलता है.
जसवंत सिंह जिन्ना पर लिखी अपनी किताब को लेकर बीजेपी से निष्कासित किए गये थे. वे अपनी किताब 'जिन्ना: इंडिया-पार्टीशन, इंडिपेंडेंस' में लालकृष्ण आडवाणी तर्ज पर एक तरीके से जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष होने का सर्टिफिकेट देते नजर आए थे. अपनी किताब में उन्होंने सरदार पटेल और पंडित नेहरू को देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया था. लेकिन ये बातें बीजेपी और आरएसएस की सोच से मेल नहीं खाती थीं, जिसके चलते 2009 में उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.