मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक नूपुर ढींगरा पाइवा एवं शिक्षक और लेखिका आभा एडम्स ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दूसरे दिन 'Soul Eclipse' सत्र के दौरान बच्चों में बढ़ते डिप्रेशन के कारणों समेत कई मुद्दों पर बात की. इस दौरान सत्र में शामिल प्रणवी खांडेकर ने डिप्रेशन से उबरने की अपनी आपबाती बताई. वहीं, सुदीप्तो पात्रा ने बच्चों के मेंटल हेल्थ में माता-पिता की भूमिका पर बात की.
बच्चों में बढ़ते डिप्रेशन पर शिक्षिका और लेखिका आभा एडम्स ने कहा कि टिनएज में डिप्रेशन की नजरिये से देखें तो पिछला दस साल कठिनाइयों से भरा रहा है. अगर बच्चे टूटते हैं तो समाज टूटता है. टिनएज डिप्रेशन की वजह से पिछले 20 वर्षों में बच्चों पर काफी प्रभाव पड़ा है.
कॉन्क्लेव के दौरान उन्होंने कहा कि डिजिटलाइजेशन और कमर्शियलाइजेशन की दौर में बच्चे खुद को लंबा, सुंदर और हमेशा हैप्पी दिखना चाहते हैं. वो चाहते हैं हम ऐसे रहें वैसे रहें, जो संभव नहीं है. लाइफ ऑलवेज हैप्पी मोमेंट नहीं है. खुशी तो बस एक मिथक है. इसके अलावा माता-पिता भी अपनी ख्वाहिश बच्चों पर डाल देते हैं. ये बनना है, वो बनना है. ढेर सारे नंबर लाने हैं, स्कूल में टॉप करना है. माता-पिता बच्चे की क्षमता को परखने में विफल रहते हैं.
डिप्रेशन आते वक्त दरवाजा नहीं खटखटाताः सुदीप्तो
मानसिक स्वास्थ्य और अपने दो बेटों के डिप्रेशन से उबरने की दास्तान सुनाते हुए सुदीप्तो पात्रा ने कहा कि डिप्रेशन आते वक्त दरवाजा नहीं खटखटाता है. वो यह नहीं कहता है कि मैं यहां हूं. डिप्रेशन और एंग्जाइटी से अवेयर रहना और इसके प्रति सेंसेटिव रहना बहुत जरूरी है.
इससे बचने के उपाय पर उन्होंने कहा कि सबसे पहले आप अपने बच्चों को अनुमति दें कि वो बच्चा ही रहें. आप उसके ऊपर भविष्य की बात न थोपें. आप यह नहीं कहें कि यह परीक्षा तुम्हारा भविष्य निर्धारित करेगा जाओ और 99 प्रतिशत ले कर आओ. हमें अपने अंदर सुनने की वो क्षमता होनी चाहिए जो आपका बच्चा आपसे नहीं कह पा रहा है.
नौ वर्ष की उम्र डिप्रेशन झेल चुकी प्रणवी ने सुनाई आपबीती
मनोविज्ञान की छात्रा और नौ वर्ष की उम्र में डिप्रेशन झेल चुकी प्रणवी खांडेकर ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2023 में डिप्रेशन से उबरने की अपनी आपबाती सुनाई.
प्रवणी ने कहा, "डिप्रेशन के दौरान मैं वास्तविकता से काफी दूर थी. कुछ करने से पहले ही गिव अप कर देती थी. पूरी तरह से फ्रस्टेट हो चुकी थी. मैं हमेशा घुटन महसूस करती थी और अंदर हमेशा पेन महसूस होता था. एक साथ ही डरी और थकी महसूस करती थी. कभी मैं खूब फीलिंग महसूस करती, कभी कुछ नहीं. कभी पूरे दिन सोते रहती, कभी कई दिनों तक सो नहीं पाती. मुझे लगता है कि कहीं न कहीं मैं सच्चाई से बचना चाहती थी."
उन्होंने आगे कहा कि यहां तक कि मुझे कभी-कभी खुद पेन की जरूरत लगती थी. तब मैं अपने बॉडी में कुछ चुभा कर देखती थी. मैं अपना बॉडी चेक करती थी कि मैं सही हूं या नहीं.
डिप्रेशन से उबरने पर पूछे गए सवाल का जबाव देते प्रणवी ने कहा कि आज मैं जो भी हूं थेरेपी और मेडिटेशन की वजह से हूं. थेरेपी की वजह से मैंने डिप्रेशन और एंग्जाइटी से लड़ना सीखा.
डिप्रेशन के प्रति गंभीर होना जरूरीः मनोचिकित्सक नुपूर ढींगरा
डिप्रेशन पर बात करते हुए मनोचिकित्सक नूपुर ढींगरा पाइवा ने कहा कि हम डिप्रेशन, स्ट्रेस और एंग्जाइटी को गंभीरता से नहीं लेते हैं. हम इससे निपटने के लिए कई बार टेबलेट लेते हैं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि इसे गंभीरता से लेना जरूरी है. नूपुर ने कहा अगर आप स्ट्रेस और डिप्रेशन को सिरियसली नहीं लेंगे तो वो आपको सिरियसली ले लेगा.