भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के बाद पद संभालने वाले मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने अपने आख़िरी दिन पत्रकारों से खुलकर बात की. रिटायरमेंट के बाद की योजनाओं से लेकर नियुक्तियों, आरक्षण, पर्यावरण, सोशल मीडिया और विवादों पर उन्होंने बेझिझक अपनी राय रखी.
दिल्ली प्रदूषण से लेकर आरक्षण और गवर्नर की भूमिका जैसे महत्वपूर्ण मामलों में आए फैसलों का जिक्र करते हुए उन्होंने माना कि फैसले तो बहुत हैं, पर अमल सबसे मुश्किल हिस्सा है. अपने कार्यकाल की उपलब्धियों, खामियों, कॉलिजियम विवाद, महिलाओं की नियुक्ति और सोशल मीडिया के खतरे पर बेबाकी से राय रखी. गवई ने कहा कि उन्हें अपने काम पर कोई पछतावा नहीं, उन्होंने न्याय देने की पूरी कोशिश की, लेकिन असली चुनौती कोर्ट के आदेशों के कार्यान्वयन (implementation) की है.
महिलाओं की नियुक्ति पर कहा- कॉलिजियम में सहमति नहीं बनी
गवई ने साफ कहा कि उनके कार्यकाल में एक भी महिला जज सुप्रीम कोर्ट नहीं आ सकीं, क्योंकि जिन नामों पर विचार हुआ, उनमें कॉलिजियम सहमति तक नहीं पहुंच सका. ये उनकी सबसे अहम स्वीकारोक्तियों में से एक रही.
'आदिवासियों के लिए काम करूंगा'
उन्होंने फिर दोहराया कि वे कोई पोस्ट-रिटायरमेंट पद स्वीकार नहीं करेंगे. उनका कहना है कि वे अपने क्षेत्र के आदिवासी समुदायों के लिए काम कर रहे डॉक्टरों और एनजीओ के साथ मिलकर सामाजिक कार्य में समय देंगे.
न्यायपालिका में जनता का भरोसा कैसे?
गवई के अनुसार सबसे जरूरी है न्यायपालिका की स्वतंत्रता. कॉलिजियम सिस्टम की आलोचना होती है, लेकिन यही सिस्टम न्यायपालिका को स्वतंत्र रखता है. ट्रांसफर विवाद और आरोपों पर उन्होंने बताया कि कई हाई कोर्ट जजों के ट्रांसफर सीनियरिटी बैलेंस और कुछ शिकायतों/इनपुट्स के आधार पर किए गए.
SC/ST आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' पर उनका बड़ा बयान
न्यायमूर्ति गवई ने अपने विवादास्पद फैसले का बचाव करते हुए कहा कि अगर पहली पीढ़ी आरक्षण से IAS बन गई, फिर अगली पीढ़ी भी उसी आधार पर लाभ ले, क्या यह सही है? जिनके पास सुविधाएं हैं, वे ‘जरूरतमंद’ नहीं रह जाते. उन्होंने दोहराया कि SC/ST में क्रीमी लेयर लागू होनी चाहिए ताकि फायदे असल जरूरतमंदों तक पहुंचें.
गवर्नर की भूमिका पर कही ये बात
उन्होंने कहा कि संविधान में 'उचित समय' की कोई तय परिभाषा नहीं है. कोर्ट सिर्फ संतुलन बनाए रख सकता है कि गवर्नर बिल को हमेशा के लिए लंबित नहीं रख सकते, लेकिन हर मामले में समय अलग हो सकता है.
सोशल मीडिया और AI वीडियो पर चिंता
गवई ने कहा कि सोशल मीडिया पर अक्सर जजों के नाम से मनगढ़ंत बातें फैलाई जाती हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने एक फर्जी AI वीडियो भी देखा जिसमें गलत बातें उनके नाम से जोड़ी गई थीं.
महिला आरक्षण, SC स्टाफ, और पीरियड लीव पर
पीरियड लीव पर आए SC रिसर्च रिपोर्ट को उन्होंने नए CJI पर छोड़ दिया और उम्मीद जताई कि हाई कोर्ट भी इस पर विचार करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट स्टाफ में महिलाओं की कमी होने की बात उन्होंने खारिज कर दी.
कॉलिजियम में मतभेद, जस्टिस पंचोली का मामला
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की असहमति पर उन्होंने कहा कि अगर कोई गंभीर मुद्दा होता तो बाकी चार जज सहमत नहीं होते. उनमें से एक तो उसी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे हैं.
कॉलिजियम सुधार: मनमानेपन से इंटरैक्शन मॉडल तक
उन्होंने याद दिलाया कि जस्टिस खन्ना के समय से उम्मीदवारों से व्यक्तिगत बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई. उन्होंने कहा कि जज के रिश्तेदार होने का मतलब ये नहीं कि उसे योग्य होने पर नियुक्ति से वंचित कर दिया जाए.
कानून बनाया, अब अमल होना चाहिए
गवई ने हंसते हुए बताया कि लुटियंस जोन में भी तेज पटाखे फूटे, जबकि कोर्ट ने सख्त आदेश दिए थे. उनके मुताबिक राज्यों और केंद्र की बैठकें करवाई गईं. स्टेट पॉल्यूशन बोर्ड के पास स्टाफ की भारी कमी है. आदेश तो हैं, लेकिन जमीन पर लागू नहीं हो रहे. मैंने ऑर्डर दिए हैं, कोशिश तो कर रहा हूं… अब देखना है अमल कौन करवाता है.
नियुक्ति का अफसोस? कोई नहीं
उन्होंने कहा कि उन्हें कोई पछतावा नहीं. उन्होंने सबसे व्यक्तिगत रूप से संतोष देने वाला काम कोल्हापुर में महाराष्ट्र हाई कोर्ट की नई बेंच स्थापित करना और इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित नियुक्तियां पूरी करना माना.
हेट स्पीच पर क्या बोले जस्टिस गवई
गवई ने कहा कि हेट स्पीच पर कानून बनाना संसद और कार्यपालिका का काम है. कोर्ट ने अपनी हद तक काम कर दिया है. अपने आखिरी शब्दों में उन्होंने कहा कि जब जज फैसला देता है, तो वो सिर्फ निर्णय नहीं होना चाहिए, वो न्याय देने की कोशिश होनी चाहिए.