बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद इंडिया टुडे की अंडरकवर रिपोर्टिंग टीम ने पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के ऑपरेटिव्स से संपर्क करने की कोशिश की थी. इस कोशिश में कई हफ्ते लग गए. सही संपर्क ढूंढ़ने, सऊदी अरब, यूएई और कतर के सिम कार्ड हासिल करने और फर्जी पहचान बनाने के बाद ही, जैश के लोगों ने अपनी हार और नुकसान को कबूल किया.
उस वक्त तक जैश-ए-मोहम्मद हमेशा परछाइयों में काम करता था. इसका सरगना मसूद अजहर अपने साप्ताहिक कॉलम एक फर्जी नाम से लिखता था और उसके ऑडियो संदेश भी उसकी आवाज में नहीं बल्कि उसके साथी तल्हा सैफ पढ़कर सुनाते थे. यानी संगठन के अंदर झांकना किसी भी जांच एजेंसी या पत्रकार के लिए लगभग नामुमकिन था.
लश्कर-ए-तैयबा जैसे दूसरे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के विपरीत, जैश का कामकाज पूरी तरह गुप्त रखा जाता था. मोबाइल फोन या इंटरनेट का इस्तेमाल सख्त मना था. जबकि लश्कर प्रमुख हाफिज सईद मीडिया का खूब इस्तेमाल करता था, अजहर हमेशा छिपकर काम करता रहा. जैश की ऑनलाइन मौजूदगी सिर्फ कुछ टेलीग्राम चैनलों और ब्लॉगर साइट्स तक सीमित थी.
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2024 के बाद बदल गया तरीका, हथियार बना WhatsApp
लेकिन 2024 के बाद जैश ने अचानक अपना तरीका बदल दिया, खासकर ऑपरेशन सिंदूर के बाद. 27 जून 2024 को अजहर ने पहली बार सार्वजनिक रूप से किसी शादी में हिस्सा लिया. न सिर्फ वो वहां मौजूद था बल्कि उसकी स्पीच की रिकॉर्डिंग भी हुई, जो बाद में सोशल मीडिया पर लीक हो गई. इंडिया टुडे की ओपन सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम ने फॉरेंसिक एनालिसिस से ये कंफर्म किया कि वह आवाज सचमुच मसूद अजहर की ही थी.
बता दें कि ऑपरेशन सिंदूर में जैश के ठिकानों को भारी नुकसान हुआ था. इसके बाद संगठन ने भारतीय युवाओं तक पहुंचने के लिए एक नया डिजिटल हथियार चुना, जो था WhatsApp.
13,000 से ज्यादा भारतीय फॉलोअर वाले जैश के चैनल
जैश के संबद्ध व्हाट्सऐप चैनल (Markaz Sayyedna Tamim Dari (MSTD) के 13,000 से ज्यादा फॉलोअर हैं. ये चैनल जनवरी 2024 में बनाया गया था और इसमें जैश का रोजाना प्रचार प्रसार होता है. इसमें ऑडियो क्लिप, वीडियो मैसेज और कट्टर विचारधारा वाले बयान पोस्ट होते हैं. एक दूसरा चैनल (Madrasah Sayyidina Zayd Bin Sabit) भी ऑपरेशन सिंदूर के बाद जून 2024 में लॉन्च हुआ था, जिसके करीब 3,000 फॉलोअर्स हैं. ये चैनल लगातार धार्मिक भाषणों और कट्टर इस्लामी जीवनशैली अपनाने की बातें फैलाते हैं।
तुलना करें तो MSTD के टेलीग्राम चैनल पर सिर्फ 188 सब्सक्राइबर हैं, जबकि व्हाट्सऐप पर ये 13,000 से ज्यादा हैं. इंस्टाग्राम और X (ट्विटर) पर उनके अकाउंट भारत में ब्लॉक कर दिए गए हैं लेकिन व्हाट्सऐप चैनल अब भी खुलेआम चल रहे हैं.
डिजिटल जिहाद का नया इकोसिस्टम
इन चैनलों पर अब अजहर के पुराने भाषण, ई-बुक्स, नशीद (जिहादी गीत) और ऑनलाइन लेक्चर आसानी से शेयर किए जा रहे हैं. इस तरह जैश ने बहावलपुर से लेकर भारत के स्मार्टफोन तक अपनी पहुंच बना ली है. अब खुफिया एजेंसियां इन चैनलों और दिल्ली रेड फोर्ट कार बम धमाके (जिसमें 12 लोगों की मौत हुई) के बीच संभावित कनेक्शन की जांच कर रही हैं.
पत्रकार बने टारगेट
जांच एजेंसियों के मुताबिक जैश का नया डिजिटल कैंपेन भारत के पत्रकारों और डिफेंस रिपोर्टर्स को भी निशाना बना रहा है. कई बार जैश ऐसे बयान जारी करता है जो सिर्फ मीडिया का ध्यान खींचने के लिए होते हैं जैसे नई 'विंग' के दावे या 'नए मिशन' के नाम पर फैलाई गई फर्जी सूचनाएं.
परिणाम ये होता है कि कई पत्रकार, यूट्यूबर या OSINT हैंडल अनजाने में जैश के प्रचार को ही आगे बढ़ा देते हैं. खुफिया सूत्रों के अनुसार, जैश ने अब जनरेटिव एआई टूल्स का भी इस्तेमाल शुरू कर दिया है जिससे अंग्रेजी और कभी-कभी हिंदी में भी कंटेंट तैयार होता है ताकि भारतीय यूजर्स को बेहतर तरीके से टारगेट किया जा सके.
‘प्लेटफॉर्म का ढांचा भारत के लिए नहीं बना’
अधिकारियों ने बताया कि व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म अभी भी अमेरिका-केंद्रित सुरक्षा ढांचे पर चलते हैं, जबकि भारत इसका सबसे बड़ा यूजर बेस है. भारत की सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए इन प्लेटफॉर्म्स में पर्याप्त मॉडरेशन नहीं है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आतंकी संगठनों के बारे में रिपोर्टिंग करते समय ये जरूरी है कि हम वही न लिखें जो वो चाहते हैं, बल्कि ये जांचें कि वो क्या छिपा रहे हैं.
लश्कर का नेटवर्क भी सोशल मीडिया में सक्रिय
इसी तरह लश्कर-ए-तैयबा का प्रचार भी भारतीय घरों तक पहुंच रहा है, जहां इसका स्रोत Facebook और अन्य सोशल मीडिया पेज हैं,
जो पाकिस्तान मरकजी मुस्लिम लीग (PMML) नामक संगठन से जुड़े हैं. ये संगठन जमात-उद-दावा (JuD) और लश्कर-ए-तैयबा से संबद्ध है और भारत में आसानी से एक्सेस किया जा सकता है.