केंद्र सरकार ने हाल ही में पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद, भारतीय जल क्षेत्रों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने का फैसला किया है. इस दिशा में एक अध्ययन शुरू करने की योजना बनाई जा रही है जिससे कि सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों के जल का सही इस्तेमाल किया जा सके.
गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई उच्च स्तरीय बैठक में इस मामले पर चर्चा की गई. बैठक में भविष्य की योजना पर विचार किया गया और जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल ने कहा कि भारत यह सुनिश्चित करेगा कि पाकिस्तान को भारत से पानी की एक भी बूंद नहीं मिले.
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बैठक के बाद, मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ निर्देश दिए हैं और इस बैठक का आयोजन उन निर्देशों पर अमल करने के लिए किया गया था. अमित शाह ने इस बैठक में कई सुझाव दिए जिनका प्रभावी इम्पलीमेंटेशन किया जाएगा.
भारत के पास पानी रोकने के लिए पर्याप्त संरचना नहीं!
एक्सपर्ट के मुताबिक, भारत के पास पश्चिमी नदियों के जल को रोकने के लिए पर्याप्त संरचना नहीं है. हालांकि, सरकार ने फ्यूचरिस्टिक योजनाओं पर काम करना शुरू कर दिया है. नदियों के जल प्रवाह को रोकने के लिए चल रही कुछ परियोजनाओं को पूरा करने में 5 से 7 साल लग सकते हैं.
हिमांशु ठक्कर, दक्षिण एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के एक्सपर्ट हैं, वह बताते हैं कि वर्तमान में भारत के पास पर्याप्त नियंत्रण तंत्र नहीं हैं, लेकिन इन परियोजनाओं के पूर्ण होने के बाद स्थिति में सुधार होगा.
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पानी का प्रवाह रोकने के लिए सावधानी बरतने की सलाह!
एक अध्ययन केंद्र के संस्थापक श्रीपाद धर्माधिकारी जैसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने जल प्रवाह को तुरंत मोड़ने की तत्परता पर सावधानी बरतने की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि अभी भारत के पास ऐसा बड़ा ढांचा नहीं है जिससे पाकिस्तान की ओर जल प्रवाह को तुरंत रोका जा सके. पाकिस्तान ने इस फैसले को 'एक्ट ऑफ वॉर' बताया है और इसे लेकर पाकिस्तान की सीनेट में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया है.