scorecardresearch
 

भारत-सऊदी के दिल मिले, पाकिस्तान का दिल क्यों जले... चीन को भी लगी मिर्ची

भारत और सऊदी अरब के रिश्ते बहुत पुराने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 बार रियाद जा चुके हैं. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस भी 2019 में भारत आ चुके हैं. सऊदी अरब प्रधानमंत्री मोदी को साल 2016 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज चुका है. भारत और सऊदी अरब की दोस्ती का ये कारवां अब एक नई मंजिल की तरफ मुड़ चुका है. जिसमें भारत के साथ सऊदी अरब का रेल कॉरिडोर तो बस शुरुआत है.

Advertisement
X
G20 के बाद भी भारत में रुके हैं मोहम्मद बिन सलमान
G20 के बाद भी भारत में रुके हैं मोहम्मद बिन सलमान

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 11 सितंबर को राष्ट्रपति भवन में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री महामहिम प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान स्वागत किया. उन्होंने क्राउन प्रिंस के सम्मान में एक डिनर भी होस्ट किया. राष्ट्रपति भवन में क्राउन प्रिंस का स्वागत करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि सऊदी अरब भारत के सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदारों में से एक है. उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि पिछले कुछ वर्षों में भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय संबंध काफी मजबूत हुए हैं.

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि आधुनिक दुनिया में, भारत-सऊदी अरब के साझा सांस्कृतिक अनुभव, आर्थिक तालमेल और शांतिपूर्ण और टिकाऊ दुनिया के प्रति साझा प्रतिबद्धता हमें प्राकृतिक भागीदार बनाती है. राष्ट्रपति ने कहा कि भारत-सऊदी अरब साझेदारी का आर्थिक घटक भी हाल के वर्षों में बढ़ा है. उन्होंने कहा कि भारत में कई अलग-अलग क्षेत्रों में सऊदी निवेश बढ़ाने के पर्याप्त अवसर हैं. इसके अलावा राष्ट्रपति ने कहा कि सऊदी अरब ने बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासियों को अपनाया है और उन्हें फलने-फूलने का मौका दिया है. अपनी कड़ी मेहनत और व्यावसायिकता के जरिए, उन्होंने सऊदी अरब के विकास और समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. 

भारत और सऊदी के मजबूत रिश्ते

आपको बताते चलें कि भारत और सऊदी अरब के रिश्ते बहुत पुराने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 बार रियाद जा चुके हैं. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस भी 2019 में भारत आ चुके हैं. सऊदी अरब प्रधानमंत्री मोदी को साल 2016 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज चुका है. भारत और सऊदी अरब की दोस्ती का ये कारवां अब एक नई मंजिल की तरफ मुड़ चुका है. जिसमें भारत के साथ सऊदी अरब का रेल कॉरिडोर तो बस शुरुआत है.

Advertisement

लेकिन भारत और सऊदी अरब के मजबूत रिश्तों की जो तस्वीर सामने आई उस तस्वीर से पाकिस्तान में हंगामा मचा हुआ है. दो देशों की इस करीबी ने चीन को बेचैन कर दिया है. दो देशों की इस केमिस्ट्री ने जियो पॉलिटिक्स का एक बहुत बड़ा संदेश भी दिया है.

G20 में भारत की रणनीतिक जीत

G20 में मिडिल ईस्ट कॉरिडोर को भारत की एक बहुत बड़ी रणनीतिक जीत बताया जा रहा है. जो गेमचेंजर साबित होगा. इस कॉरिडोर को भारत की तरफ से चीन को दिया गया बड़ा जवाब माना जा रहा है. लेकिन ये कॉरिडोर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के सबसे बड़े सपने से जुड़ा है. जिसे पूरा करने के लिए सऊदी अरब के महत्वकांक्षी क्राउन प्रिंस भी कमर कस चुके हैं. मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि मैं आपको G-20 शिखर सम्मेलन के प्रबंधन और उपलब्धियों के लिए बधाई देता हूं. इसमें मध्य पूर्व को जोड़ने वाला इकनॉमिक कॉरिडोर शामिल है. जिसके लिए जरूरी है कि हम इसे वास्तविकता में बदलने के लिए मेहनत से काम करें.

इसका मतलब यही है कि क्राउन प्रिंस चाहते हैं कि ये कॉरिडोर जल्द से जल्द पूरा हो जाए. इसके लिए वो भारत का साथ चाहते हैं. इसीलिए जब G-20 की बैठक में हिस्सा लेने आए सभी बड़े नेता वापस लौट गए हैं. तब मोहम्मद बिन सलमान नई दिल्ली में रुककर भारत से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं.

Advertisement

क्या हासिल करना चाहते हैं मोहम्मद बिन सलमान

ऐसे में सवाल ये है कि G-20 सम्मेलन के बाद मोहम्मद बिन सलमान भारत की इस यात्रा से क्या हासिल करना चाहते है? अपने सबसे बड़े सपने को हकीकत में तब्दील करने के लिए मोहम्मद बिन सलमान भारत को जरूरी क्यों मानते हैं? साल 2030 किस तरह से प्रधानमंत्री मोदी और सऊदी प्रिंस के सपने से जुड़ा है? सऊदी अरब की दो वजह से ही पहचान रही है. पहली तेल और दूसरा इस्लाम. मोहम्मद बिन सलमान इसे बदलना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि उनका देश दुनिया की महाशक्ति बने जिसके लिए भारत का साथ जरूरी है?

ऐसे में जानते हैं कि सऊदी अरब और क्राउन प्रिंस के सबसे बड़े ख्वाब के लिए हिंदुस्तान क्यों जरूरी है. उसे समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे चलना होगा. सऊदी अरब के महत्वकांक्षी क्राउन प्रिंस को सुनना होगा. जो अपने मुल्क ही नहीं पूरे मिडिल ईस्ट का कायाकल्प करना चाहते हैं. तो मोहम्मद बिन सलमान पूरे मिडिल ईस्ट को दुनिया का नया यूरोप बनाना चाहते हैं.

क्या है क्राउन प्रिंस का विजन?

क्राउन प्रिंस ने ये बात 7 साल पहले रियाद में आयोजित हुए फ्यूचर इन्वेस्टमेंट इनिशिएटिव फोरम में कही थी. जहां उन्होंने सारी दुनिया के सामने कहा कि जब तक वो जिंदा है तब तक वो खाड़ी क्षेत्र में आर्थिक बदलाव होते देखना चाहते हैं. सबसे बड़ी बात क्राउन प्रिंस इतना बड़ा बदलाव बिना तेल के कारोबार से करना चाहते हैं, जिसे उन्होंने नाम दिया है, विजन 2030. मोहम्मद बिन सलमान अपने इस लक्ष्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं. उसकी गवाही आंकड़े भी देते हैं. सऊदी अरब का गैर तेल राजस्व तीन गुना बढ़ गया है. सऊदी अरब में आर्थिक और सामाजिक सुधार देखे जा रहे हैं. वहां पर महिलाएं न सिर्फ कार चला रही हैं, बल्कि दावा है कि जल्द ही वहां पर महिलाएं बुलेट ट्रेन चलाती दिखेंगी. 

Advertisement

मोहम्मद बिन सलमान ये सब कुछ मध्य पूर्व का पुराना गौरव लौटाने के लिए कर रहे हैं. इस सपने को पूरा करने में भारत संग रेल कॉरिडोर तो बस शुरुआत है. मोहम्मद बिन सलमान जानते हैं कि मिडिल ईस्ट को अगर यूरोप बनाना है तो भारत बहुत जरूरी है. 

तीसरी बड़ी इकॉनमी बनाने की गारंटी

प्रधानमंत्री मोदी की इस गारंटी पर सऊदी अरब को भी यकीन है. G-20 की बैठक में जिस तरह से बंटी हुई दुनिया को भारत ने एक किया उससे उनका ये विश्वास और भी ज्यादा बढ़ गया है. मोहम्मद बिन सलमान जानते हैं कि आने वाला वक्त भारत का है. वो ये भी जानते हैं कि ऊर्जा के मोर्चे पर किसी भी दूसरे स्रोत को तेल की जगह लेने में कम से कम 20-25 सालों का समय लगेगा और इस दौरान भारत की भी खपत बढ़ेगी.

अभी भारत एक दिन में 25 से 30 लाख बैरल तेल की खपत करता है, जो 15 सालों में बढ़कर अस्सी लाख हो जाएगा. सऊदी अरब इतने बड़े बाजार को छोड़ कर नहीं रह सकता.  इससे भी बड़ी बात, सऊदी अरब तेजी से बदलती दुनिया में अपनी जगह तलाश कर रहा है. वो अब एक महाशक्ति पर निर्भर नहीं रहना चाहता. सऊदी अरब समझ रहा है कि भारत आने वाले वक्त में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ-साथ ग्लोबल साउथ का नेता होकर दुनिया की दमदार महाशक्ति बनने जा रहा है. जिसे वो किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं करना चाहते.

Advertisement

यही वो बातें जो मोहम्मद बिन सलमान को भारत खींच लाई हैं. दुनिया की आंखों में भारत को लेकर विश्वास मोहम्मद बिन सलमान खुद अपनी आंखों से देख चुके हैं. जिस पर दांव लगाकर उन्हें अपना सबसे बड़ा सपना पूरा होता दिख रहा है. इस वक्त सारी दुनिया की मीडिया में हिंदुस्तान की वाहवाही हो रही है. दुनियाभर के जानकार कह रहे हैं कि ये भारत का वक्त है. G20 में जिस तरह से बंटी हुई दुनिया को भारत ने एक सुर में पिरोया है. उसने भारत के आलोचकों को भी बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया है. 

भारत की तारीफ करने से झिझक रहा पाकिस्तान 

आज सारे विश्व के अखबार, टीवी चैनल और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भारत में हुए G20 की खुलकर तारीफ हो रही है. G20 की कवरेज के लिए सारी दुनिया हिंदुस्तान आई. लेकिन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की मीडिया में इसकी जगह एशिया कप की चर्चा है. भारत और पाकिस्तान का मैच होगा या नहीं. ये पाकिस्तान की सबसे बड़ी खबर है. ऐसा इसलिए किया गया ताकि पाकिस्तान के लोगों का ध्यान सऊदी प्रिंस की यात्रा पर न जाए. 

सऊदी ने पाकिस्तान को किया नजरअंदाज

सऊदी अरब को पाकिस्तान अपना मुस्लिम भाई बताता रहा है. लेकिन तमाम खुशामद के बावजूद जब सऊदी प्रिंस पाकिस्तान नहीं आए तो इस बेइज्जती पर पाकिस्तान उबल गया. पाकिस्तान के आर्मी चीफ जानते थे कि अगर सऊदी प्रिंस भारत से ही घर लौट गए तो जनता भड़क जाएगी. इसलिए बताया जाता है कि पाकिस्तान की तरफ से सऊदी प्रिंस के सामने गुहार लगाई गई. लेकिन पाकिस्तान के गिड़गिड़ाने पर भी क्राउन प्रिंस ने अपना मन नहीं बदला.

Advertisement

सरकार ने कहा था कि सऊदी अरब भारत जाते हुए पाकिस्तान में थोड़ी देर रुकेंगे. पहले भी ऐसा होता रहा है. 25 अरब डॉलर के निवेश का जो दावा किया उसमें सऊदी अरब का बड़ा रोल है.

पाकिस्तान नहीं गए सऊदी प्रिंस

पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून में कामरान युसूफ लिखते हैं, 'एक समय ऐसा भी था जब पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय भारत से ज्यादा थी. लेकिन आज हम दुनिया से कर्ज की गुहार लगा रहे हैं. पाकिस्तान का उस समय दुनियाभर में प्रभाव भी बहुत ज्यादा था. इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी की भले ही सऊदी अरब अध्यक्षता करता था लेकिन पर्दे के पीछे से उसे पाकिस्तान चलाता था. दुनिया के नेता जब दक्षिण एशिया की यात्रा पर आते थे तो वे कभी भी पाकिस्तान नहीं आने का साहस नहीं कर पाते थे. वे पहले पाकिस्तान में रुकते थे और फिर भारत जाते थे. सऊदी प्रिंस तो पाकिस्तान आए बिना ही भारत चले गए. वह भी तब जब पाकिस्तान सऊदी अरब को अपना 'मुस्लिम ब्रदर' मानता है.

सलमान को लेने खुद होटल गए थे तत्कालीन पीएम इमरान

यही बात पाकिस्तान की जनता को शूल की तरह खाए जा रही है और वो अपनी ही सरकार पर भड़के हुए हैं. 4 साल पहले सऊदी अरब के प्रिंस आखिरी बार पाकिस्तान गए थे. ये उसके लिए कितनी बड़ी बात थी, उसे आप इसी बात से समझ सकते हैं कि तब के प्रधानमंत्री इमरान खान खुद उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर होटल ले गए थे. वहीं पाकिस्तान की सेना ने अपने लड़ाकू विमानों को उनकी अगवानी में आसमान में तैनात कर दिया था, कुल मिलाकर कोशिश यही थी कि किसी भी तरह मोहम्मद बिन सलमान का दिल जीता जाए, जिससे खुश होकर वो खैरात की बारिश पाकिस्तान पर कर दें.

Advertisement

लेकिन इमरान खान अब जेल में हैं. ये इमरान ही थे जिनकी वजह से सऊदी प्रिंस ने पाकिस्तान से नजरें फेर लीं. दावा किया गया कि इमरान ने अपने मंत्रियों के सामने क्राउन प्रिंस को गाली दी, जिसके बाद मोहम्मद बिन सलमान ने पाकिस्तान को मदद के लिए रुला दिया. इमरान को जेल में बंद करके पाकिस्तान के आर्मी चीफ को लगा होगा कि इससे क्राउन प्रिंस का गुस्सा शांत हो जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

पाकिस्तान में मीडिया को दी गई हिदायत

पाकिस्तान के लोगों तक ये सच न पहुंचे इसके लिए आसिम मुनीर ने अपने मीडिया को खास तौर से हिदायत दी जिसके बाद भारत में होने वाले जी-20 की पाकिस्तान में कवरेज नहीं की गई और इसे अमेरिका और सऊदी अरब के बीच खराब
रिश्तों से जोड़ दिया गया. लेकिन इन तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान सच को छिपाने में कामयाब नहीं हो पा रहा.

भारत में सलमान को देख जल रहा पाकिस्तान

पाकिस्‍तानी पत्रकार ने कहा कि भारत इस बदली हुई परिस्थिति में अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए प्रमुख सहयोगी बन गया. भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लगातार विकास से न केवल पश्चिमी देश बल्कि खाड़ी के वे देश भी बिजनेस करने को मजबूर हो गए जो अब तक पाकिस्‍तान के सहयोगी थे. भारत का बढ़ता प्रभाव जी20 शिखर सम्‍मेलन के दौरान साफ नजर आया. उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तानी भले ही भारत का मजाक उड़ा लें लेकिन वे असलियत को नहीं बदल सकते हैं. भारत जहां तरक्‍की कर रहा है, वहीं पाकिस्‍तान के पास इस संकट से निकलने का रास्‍ता सूझ नहीं रहा है. पाकिस्‍तान ने अगर सूझबूझ दिखाया होता तो वह भी जी20 सम्‍मेलन में वह भी मौजूद होता। कामरान ने कहा क‍ि यह समय पाकिस्‍तान के लिए आत्‍ममंथन का है. तो पाकिस्तान कभी अपने सबसे बड़े फाइनेंसर रहे सऊदी अरब को भारत में देखकर जल रहा है. 

चीन को भी लगा झटका

वहीं भारत के कूटनीतिक दांव से शी जिनपिंग के वन बेल्ड वन रोड प्रोजेक्ट को झटका लगा है. इटली की प्रधानमंत्री जियॉर्जिया मेलोनी ने संकेत दे दिए हैं कि उनका देश BRI से बाहर निकल सकता है. दूसरी तरफ भारत-मध्य पूर्व यूरोप कॉरिडोर के ऐलान ने जहां चीन को झटका दिया, वहीं भारत के लिए संभावनाओं का एक नया रास्ता खोल दिया है.

दरअसल पीएम मोदी से इटली की प्रधानमंत्री जियॉर्जिया मेलोनी की मुलाकात की चर्चा भी इन दिनों जोरों पर है. क्योंकि 9 सितंबर को दोनों नेताओं की मुलाकात हुई और उसी दिन शाम को एक ऐसे प्रोजेक्ट पर 8 देशों की मुहर लग गई जिससे चीन को सबसे बड़ा झटका लगा. चीन की BRI यानी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को भारत-मध्य पूर्व यूरोप कॉरिडोर से जवाब दे दिया है. चीन अभी इस झटके से उबरा भी नहीं था कि इटली की प्रधानमंत्री जियॉर्जिया मेलोनी ने संकेत दे दिया कि इटली यूरोप में चीन की BRI योजना से बाहर निकल सकता है. इटली एकमात्र जी7 देश था जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल हुआ था. अब इटली की पीएम नए कॉरिडोर में शामिल होने पर सभी देशों को बधाई दे रही हैं.

शनिवार 9 सितंबर को ही मेलोनी ने चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग से मुलाकात की थी. अगले दिन ऐसी खबरें सामने आ गईं कि इटली BRI से बाहर आ सकता है. इन खबरों को मेलोनी ने ये कहकर और हवा दे दी कि BRI के बिना भी चीन के साथ अच्छे संबंध संभव हैं.

कॉरिडोर से भारत को क्या लाभ?

अब सवाल ये है कि आखिर क्या है भारत मध्य-पूर्व यूरोप कॉरिडोर जिससे चीन में हड़कंप है? मुंबई से शुरू होने वाला ये नया कॉरिडोर 6 हजार किमी लंबा होगा. इसमें 3500 किमी समुद्र मार्ग शामिल है. मुंबई से यूएई तक कारोबारी रास्ता समंदर से तय होगा. फिर यूएई से सऊदी अरब और जॉर्डन के बाद इजरायल तक रेल लाइन से. ये ईस्ट कॉरिडोर होगा. उत्तरी कॉरिडोर में समंदर और फिर सड़क के रास्ते इटली, फ्रांस और जर्मनी को जोड़ा जाएगा. कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40% समय की बचत होगी. अभी भारत से किसी भी सामान को जहाज से जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं. नए कॉरिडोर से 14 दिन की बचत होगी. यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए आयात-निर्यात आसान और सस्ता होगा.

जहां तक चीन की BRI की बात है तो आपको बता दें कि चीन ने जमीन और समंदर के रास्ते लंबा-चौड़ा प्रोजेक्ट खड़ा करने की उम्मीद दिखाकर कई देशों को इसमें शामिल किया. लेकिन 10 साल से आगे नहीं बढ़ा है. 2019 में जब ये चरम पर था, तब इटली इसमें शामिल हुआ था. हालांकि, तब विपक्ष की नेता मेलोनी ने इसे सबसे बड़ी भूल बताया था. फिर BRI वाले देश कर्ज के जाल में फंस गए. अब तो चीन खुद भी फंस गया है. उसका रियल एस्टेट सेक्टर कर्ज में डूबा है. इन सबकी वजह से चीन का साथ छोड़ अब देश भारत के साथ नए प्रोजेक्ट में शामिल हो रहे हैं.

वैसे चीन की फ्लॉप BRI के मुकाबले में नए कॉरिडोर को खड़ा करने पर हिराशिमा में इसी साल मई में G-7 देशों की बैठक में सहमति बन गई थी. जनवरी में जो बाइडेन ने इसकी पहल की थी और इतनी तेजी से बात आगे बढ़ी कि दिल्ली में नए कॉरिडोर पर समझौता भी हो गया. इससे अमेरिका और भारत ने चीन को झटका दिया है. वहीं इससे बौखलाया चीन कह रहा है कि अमेरिका ने अपनी पुरानी योजना को आगे बढ़ाया है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement