scorecardresearch
 

नदियां, पहाड़, टूरिज्म और तबाही... हिमाचल-उत्तराखंड की हर साल एक ही कहानी, साल दर साल बढ़ रहा संकट

भारत का हिमालयी इलाका अपनी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रणालियों की वजह से राष्ट्रीय जल, ऊर्जा और खाद्य संबंधों के लिए अहम है. लेकिन बाढ़, बादल फटने, ग्लेशियर झील विस्फोट और भूस्खलन सहित जल-मौसम संबंधी आपदाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है.

Advertisement
X
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में भारी बारिश के बाद उफान पर ब्यास नदी (तस्वीर: PTI)
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में भारी बारिश के बाद उफान पर ब्यास नदी (तस्वीर: PTI)

हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में बारिश का कहर जारी है. पिछले 24 घंटों में सूबे के अंदर लगातार बारिश से जबरदस्त तबाही मची है. 16 जगहों पर बादल फटने, तीन जगहों पर अचानक बाढ़ आने और भूस्खलन होने से करीब पांच लोगों की जान चली गई. बारिश के बाद पैदा हुआ हालात से अब तक कुल 10 लोगों की मौत हुई है. वहीं, करीब 34 लोग लापता हैं.

पिछले 11 दिनों में भारी बारिश की वजह से राज्य को कुल 356.67 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. सूबे का मंडी जिला सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम बचाव कार्य में लगी हुई है. मंडी में पिछले 32 घंटों में रेस्क्यू ऑपरेशन के तहत 316 लोगों को बचाया गया है.

himachal flood
मंगलवार, 1 जुलाई को मंडी जिले में बादल फटने के बाद उफान पर बह रही ब्यास और सुकेती नदियों के संगम पर पंचवक्त्र महादेव मंदिर.(तस्वीर: PTI)

सूबे की 406 सड़कें ब्लॉक

आधिकारिक रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंडी में बादल फटने की कुल 10 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिससे भारी तबाही, जानमाल की हानि और बुनियादी ढांचे और दैनिक गतिविधियों में बड़े स्तर व्यवधान हुआ है. रेवेन्यू डिपार्टमेंट के मुताबिक, राज्य में करीब 406 सड़कें ब्लॉक हो गए हैं, जिनमें मंडी में 248, कांगड़ा में 55, कुल्लू में 37, शिमला में 32, सिरमौर में 21, चंबा में छह, ऊना में चार, सोलन में दो और हमीरपुर और किन्नौर जिलों में एक-एक सड़क शामिल है. इसके अलावा, मंडी जिले में 994 सहित 1,515 बिजली वितरण ट्रांसफार्मर और राज्य में 171 जलापूर्ति योजनाएं बाधित हुई हैं.

Advertisement
Swollen Beas river following heavy rainfall, in Mandi, Himachal Pradesh, Monday, June 30
मंडी में भारी बारिश के बाद नदी का रौद्र रूप (तस्वीर: PTI)

हिमाचल प्रदेश में मंगलवार को कुछ जगहों पर भारी बारिश हुई. मंडी जिले के सैंडहोल में सबसे ज्यादा 223.6 मिमी बारिश हुई. इसके अलावा, पंडोह (215 मिमी), करसोग (160.2 मिमी), कांगड़ा जिले के पालमपुर (143 मिमी), शिमला जिले के चोपाल (139.8 मिमी), मंडी के गोहर (125 मिमी), नारकंडा (67.5 मिमी), कुफरी (65 मिमी), शिमला (55.4), धर्मशाला (29.2 मिमी), सुंदरनगर (26.6 मिमी), नाहन (24.8 मिमी) और बिलासपुर (15.4 मिमी) में बारिश हुई.

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

A post shared by Aaj Tak (@aajtak)

शिमला, सोलन, सिरमौर, कुल्लू, हमीरपुर और मंडी जिलों में अगले 24 घंटों के लिए एक और बाढ़ की चेतावनी जारी की गई है. राज्य के मौसम विभाग के मुताबिक, 7 जुलाई तक पूरे सूबे में भारी से बहुत भारी बारिश जारी रहने की संभावना है. डिपार्टमेंट ने 2 से 7 जुलाई के लिए भारी बारिश का आरेंज अलर्ट जारी किया है.

A vehicle stuck in debris after cloudburst and flash floods at Karsog, in Mandi district, Tuesday, July 1, 2025. Cloudburst and flash floods triggered by heavy rains battered Himachal Pradesh's Mandi district
मंडी के करसोग में बादल फटने के बाद मलबे में फंसी कार (तस्वीर: PTI)

राजधानी शिमला में अधिकतम तापमान 21.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि प्रमुख पर्यटन स्थलों धर्मशाला, मनाली, डलहौजी और कसौली में क्रमशः 27 डिग्री सेल्सियस, 25.1 डिग्री सेल्सियस, 19.7 डिग्री सेल्सियस और 23.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया.

सोलन में अधिकतम तापमान 24.5°C, मंडी (25.6°C), कांगड़ा (24.8°C), चंबा (28.1°C), बिलासपुर (26.4°C), कल्पा (22.3°C), कुफरी (18.6°C), नाहन (26.8°C), भुंतर (28.5°C), सुंदरनगर (25.7°C), नारकंडा (18.7°C) और रिकांगपिओ (27.5°C) रहा.

Advertisement

31.5 डिग्री सेल्सियस के साथ ऊना राज्य का सबसे गर्म स्थान रहा, जबकि लाहौल और स्पीति का केलांग सबसे ठंडा रहा, जहां न्यूनतम तापमान 12.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया.

उत्तराखंड में करवट ले रहा मौसम

उत्तराखंड में आज मौसम में बड़ा बदलाव होने जा रहा है. सूबे के 11 जिलों में बारिश की संभावना है. मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून ने पांच दिन का पूर्वानुमान जारी किया है, जिसके मुताबिक आज यानी 2 जुलाई को उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, पौड़ी, देहरादून, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा और चंपावत में बारिश की संभावना है. 

पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश और बर्फबारी की संभावना है, जिससे तापमान में गिरावट आ सकती है. मैदानी क्षेत्रों में तापमान ज्यादा रहने की संभावना है, लेकिन कुछ इलाकों में आंधी और ओलावृष्टि की संभावना है.

मौसम विज्ञान केंद्र ने प्रदेश के कई जिलों में बारिश और बर्फबारी को लेकर अलर्ट जारी किया है. केंद्र ने सलाह दी है कि लोग घर से निकलने से पहले मौसम की जानकारी लें और जरूरी एहतियात बरतें.

क्यों प्राकृतिक आपदाओं के टारगेट पर रहता है हिमालयी इलाका?

भारत का हिमालयी इलाका अपनी विविध राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रणालियों के कारण राष्ट्रीय जल, ऊर्जा और खाद्य संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन बाढ़, बादल फटने, ग्लेशियर झील विस्फोट और भूस्खलन सहित जल-मौसम संबंधी आपदाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है. मॉनसून के वक्त हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की घटनाएं बढ़ जाती हैं. इस तरह की घटनाएं मॉनसून के वक्त हिमालय की जलवायु परिस्थितियों से जुड़ी हुई है. इस रीजन में मॉनसून की वजह से भारी और लगातार बारिश होती है, जिसमें नमी से भरी हवाएं, विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी से, भूस्खलन, मलबे का प्रवाह और अचानक बाढ़ आती है. इसकी वजह से जान-माल, बुनियादी ढांचे, कृषि, वन क्षेत्र और संचार प्रणालियों को काफी नुकसान होता है. 

Advertisement
uttarakhand kumaun
साल 2024 में उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बाढ़ के हालात (तस्वीर: PTI)

7 फरवरी, 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले में नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूट गया, जिससे अप्रत्याशित बाढ़ आ गई. इस अचानक आई बाढ़ में 15 लोगों की मौत हो गई और 150 लोग लापता हो गए. इन आपदाओं ने उत्तराखंड सहित कई राज्यों में हिमालय की पारिस्थितिकी को बाधित किया है और इन आपदाओं का कारण और परिमाण मानवीय गतिविधियों, जैसे राजमार्गों, बांधों के निर्माण और वनों की कटाई से और भी बदतर हो गया है. 

साल दर साल बढ़ता संकट

अगर उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र में बाढ़ रिकॉर्ड पर नजर डाली जाए, तो इस इलाके में 1970, 1986, 1991, 1998, 2001, 2002, 2004, 2005, 2008, 2009, 2010, 2012, 2013, 2016, 2017, 2019, 2020 और 2021 में तबाही जैसी स्थितियां पैदा हुईं. 

पिछले कुछ दशकों में पश्चिमी हिमालय (WH) इलाके में पश्चिमी विक्षोभ (WD) गतिविधि और वर्षा की चरम सीमा के सिनॉप्टिक पैमाने की बढ़ती प्रवृत्ति मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन का परिणाम है और इन बदलावों को सिर्फ प्राकृतिक बल द्वारा पूरी तरह से समझाया नहीं जा सकता है. यह घटना ऊंचाई वाले पूर्वी तिब्बती पठार के बड़े विस्तार पर देखी जाती है, जहां पश्चिमी हिस्से की तुलना में जलवायु परिवर्तन की प्रतिक्रिया में सतह का अधिक गर्म होना देखा जाता है.

Advertisement

(हिमाचल से अमन भारद्वाज के इनपुट के साथ)

---- समाप्त ----
Live TV

TOPICS:
Advertisement
Advertisement